बर्लिन। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के यूरोप दौरे का आज दूसरा दिन है और अपने दौरे के पहले दिन पीएम मोदी यूरोप के आर्थिक इंजन माने जाने वाले देश जर्मनी में थे, जहां से उन्होंने पूरी दुनिया को अलग अलग संदेश दिया है, लेकिन मुख्य तौर पर पीएम मोदी ने चीन, रूस और भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को लेकर काफी कुछ बातें कही हैं। वहीं आज प्रधानमंत्री मोदी एक और यूरोपीय देश डेनमार्क के दौरे पर होंगे।
आज डेनमार्क में पीएम मोदी
जर्मनी का दौरा खत्म कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक और प्रमुख यूरोपीय देश डेनमार्क के दौरे पर होंगे, जहां राजधानी कोपेनहेगन में उनका स्वागत किया जाएगा। इससे पहले डेनमार्क की प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडरिकसन अक्टूबर में भारत के दौरे पर आईं थीं, जिसमें भारत और डेनमार्क के बीच आर्थिक समझौते के साथ साथ शिक्ष के क्षेत्र में कई समझौते किए गये थे। वहीं, डेनमार्क दौरे के दौरान पीएम मोदी डेनमार्क की महारानी मार्ग्रेथ II से भी मुलाकात करेंगे। जिसे बाद पीएम मोदी नार्डिक देशों के नेताओं से मुलाकात करेंगे, जिसमें फिनलैंड और स्वीडन की प्रधानमंत्री शामिल हैं। यूरोप यात्रा के पहले दिन, पीएम मोदी ने जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ के साथ मुलाकात की थी, वहीं पीएम मोदी ने जर्मनी में भारतीय समुदाय को संबोधित किया था। वहीं, पीएम मोदी की मुलाकात जर्मनी के शीर्ष उद्योगपतियों के साथ भी हुई। पीएम मोदी उस वक्त यूरोपीय देशों के दौरे पर हैं, जब यूक्रेन युद्ध चल रहा है।
भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन
भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन के दूसरे संस्करण में भाग लेंगे। इसके अलावा, पीएम मोदी भारत-डेनमार्क व्यापार मंच में भी शिरकत करेंगे और यूरोपीय राष्ट्र में भारतीय समुदाय के सदस्यों को संबोधित करेंगे। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची द्वारा साझा किए गए विवरण के अनुसार, 200 से अधिक डेनिश कंपनियां ‘मेक इन इंडिया’ और अन्य सरकारी मिशनों को बढ़ावा देने में लगी हुई हैं। वहीं, भारतीय मूल के लगभग 16,000 लोग डेनमार्क में रहते हैं। पीएमओ के एक बयान में पहले कहा गया था कि, यूरोप में रहने वाले करीब 10 लाख लोग, जिनकी जड़ें भारत में हैं, वो जर्मनी में रहते हैं।
बर्लिन से रूस को संकेत
यूक्रेन युद्ध के लिए भारत ने अभी तक रूस की निंदा नहीं की है, लेकिन भारत बार-बार शांति समझौते की तरफ लौटने की अपनी बातों पर कायम है और भारतीय प्रधानमत्री ने बर्लिन से एक बार फिर से रूस को यही संकेत दिए हैं और साफ कहा है, कि लड़ाई लड़कर कोई भी देश जीतने वाला नहीं है। वहीं, जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ ने कहा कि, रूस ने यूक्रेन और उसकी नागरिक आबादी पर हमला करके अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।
जी-7 में भारत को आमंत्रण
वहीं, जर्मन चांसलर ने पीएम मोदी की इस बात से सहमति जताई है, कि ‘हिंसा के उपयोग के माध्यम से सीमाओं को नहीं बदला जाना चाहिए” और “हिंसा के साथ-साथ राष्ट्रों की संप्रभुता को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए”। स्कोल्ज़ ने कहा कि उन्होंने मोदी को जी -7 बैठक में आमंत्रित किया है जो जून के अंतिम सप्ताह में जर्मनी में होगी। हालांक, प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे तौर पर रूस का नाम अपने संबोधन में वहीं लिया, लेकिन उन्होंने साफ तौर पर रूस को संकेत देते हुए कहा कि, ‘इस युद्ध में कोई जीतने वाली पार्टी नहीं होगी, सभी को (अंजाम) भुगतना होगा’।
पीएम मोदी ने गिनाई चिंताएं
इसक साथ ही पीएम मोदी ने युद्ध की वजह से उपजे हालातों को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि, ‘यूक्रेन संघर्ष से उत्पन्न उथल-पुथल के कारण तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं, दुनिया में खाद्यान्न और उर्वरकों की भी कमी है। इसने दुनिया के हर परिवार पर बोझ डाला है, लेकिन विकासशील और गरीब देशों पर इसका असर और भी गंभीर होगा। भारत इस संघर्ष के मानवीय प्रभाव से बहुत चिंतित है। हमने अपनी ओर से यूक्रेन को मानवीय सहायता भेजी है। हम खाद्य निर्यात, तेल आपूर्ति और आर्थिक सहायता के माध्यम से अन्य मित्र देशों की मदद करने की भी कोशिश कर रहे हैं’। वहीं, जर्मन चांसलर स्कोल्ज़ ने कहा कि, ‘मैं व्लादिमीर पुतिन से अपनी अपील दोहराता हूं, कि इस मूर्खतापूर्ण हत्या को समाप्त करें। अपने सैनिकों को तुरंत वापस ले लें’। जर्मन चांसलर जब ये बातें कह रहे थे, उस वक्त उनके बगल में प्रधानमंत्री मोदी भी मौजूद थे।
बर्लिन से चीन को संदेश
रूस को संकेत देने के बाद बर्लिन से पीएम मोदी ने चीन को भी संदेश दिया है और भारत और जर्मनी… दोनों ने एक साथ खुले इंडो-पैसिफिक की स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाई है, जहां चीन अपना वर्चस्व साबित करना चाहता है। इंडो-पैसिफिक पर बोलते हुए जर्मन चांसलर स्कोल्ज़ ने कहा कि, ‘जो स्पष्ट है वह यह है कि इंडो-पैसिफिक सबसे गतिशील वैश्विक क्षेत्रों से संबंधित है। और साथ ही, यह कई संघर्षों और चुनौतियों का सामना कर रहा है’। दोनों देशों की तरफ से जारी किए गये एक ज्वाइंट स्टेटमेंट में कहा गया है कि, ‘ ‘दोनों पक्षों ने हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर सहित सभी समुद्री क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीएलओएस) 1982 के अनुसार निर्बाध वाणिज्य और नेविगेशन की स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित किया है’। वहीं, जर्मन चांसलर ने कहा कि, ‘भारत की गिनती बड़ी आबादी वाले देशों में की जाती है, साथ ही इसकी भूमिका और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसकी हिस्सेदारी के कारण भी’।
जर्मनी में भी निशाने पर कांग्रेस
जर्मनी में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कांग्रेस पर भी कटाक्ष किया और उन्होंने एक बार फिर इस बात पर प्रकाश डाला कि उनकी भाजपा सरकार यह सुनिश्चित कर रही है, कि देश के लोगों तक अधिकतम लाभ पहुंचे। भारतीय समुदाय के 1600 से अधिक लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “वो कौनसा पांजा था जो 85 पैसे घीस लेटा था।” पीएम मोदी, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की उस टिप्पणी का जिक्र कर रहे थे, जिसका उल्लेख अतीत में सुप्रीम कोर्ट ने भी किया है, कि देश की कमाई का एक छोटा सा हिस्सा ही लोगों की जेब तक पहुंचता है। देश के विकास से लोगों को लाभ मिले यह सुनिश्चित करने की अपनी उपलब्धि को उजागर करने के लिए भाजपा द्वारा इस टिप्पणी का कई बार हवाला दिया गया है।
दुनिया का पेट भरेगा भारत
बर्लिन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि, इस वक्त पूरी दुनिया गेहूं सकट से जूझ रही है, लेकिन भारत के किसान दुनिया भर के लोगों की पेट भरने के लिए काम कर रहे हैं। वहीं, पीएम मोदी ने स्टार्ट्सअप को लेकर भी काफी अहम बातें कही हैं। उन्होंने कहा कि, ‘नया भारत अब केवल सुरक्षित भविष्य के बारे में नहीं सोचता, बल्कि जोखिम लेता है, नवाचार करता है, इनक्यूबेट करता है’। उन्होंने कहा कि, ‘मुझे याद है, 2014 के आसपास हमारे देश में केवल 200-400 स्टार्टअप हुआ करते थे। लेकिन आज भारत में 68 हजार से ज्यादा स्टार्ट-अप हैं और दर्जनों यूनिकॉर्न हैं।” राज्यों को एक साथ लाने के सरकार के प्रयासों पर जोर देते हुए, प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर और हमला किया और कहा कि, ‘पहले देश एक था, लेकिन दो संविधान थे। लेकिन उन्हें एकजुट होने में इतना समय क्यों लगा? सात दशक हो गए हैं, और इतने वक्त में देश में एक संविधान लागू किया जा सकता था, लेकिन अब हमने इसे लागू कर दिया है’।