इस महीने की दूसरी तारीख को नारद मुनि की जयंती मनाई जाती है। नारद मुनि को भगवान ब्रह्मा का पुत्र माना जाता है। नारद जी भगवान विष्णु के परम भक्त है। नारद मुनि से जुड़ी कई ऐसी कहानियां है। जिनसे जीवन को सुखी बनाना सीख सकते है।
जानिए नारद जी और रत्नाकर डाकू से जुड़ी एक प्रेरक कहानी जिसका संदेश है कि अगर कोई व्यक्ति सही सलाह देता है। तो हमें उसे तुरंत स्वीकार करना चाहिए।
पुराने समय में रत्नाकर नाम का एक डाकू हुआ करता था। वह लोगों को लूट कर परिवार का पालन पोषण कर रहा था। रत्नाकर लूट में मिलने वाला सारा पैसा घर वालों पर खर्च कर देता था। परिवार में सभी लोग बहुत खुश थे।
एक दिन रत्नाकर नारद मुनि से मिले। नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा कि तुम यह डकैती करो, जब तुम्हें इसकी सजा मिलेगी तो क्या तुम्हारे परिवार के लोग भी उस सजा में हिस्सा लेंगे या नहीं।
रत्नाकर को अपने परिवार पर भरोसा था। उन्होंने कहा कि मेरे परिवार के लोग भी मेरी सजा में भागीदार होंगे। मैं अपने घर के लिए ही लूटता हूं।
नारद जी ने कहा कि आप एक बार अपने घर वालों से इस बारे में पूछ लें।
नारद मुनि की बात सुनकर रत्नाकर उनके घर पहुंचे और सभी से पूछा कि क्या तुम लोग मेरी सजा में मेरे साथ भागीदार बनोगे?
रत्नाकर डकैत का घर में किसी ने समर्थन नहीं किया। सभी ने कहा कि परिवार की देखभाल करना आपकी जिम्मेदारी है। आप भी हमारा ख्याल रखें’ लेकिन हम आपकी सजा में भागीदार नहीं होंगे।
घरवालों की ये बातें सुनकर रत्नाकर समझ गए कि किसी के लिए गलत काम नहीं करना चाहिए। बुरे कर्मों का ही बुरा फल मिलता है। इसके बाद रत्नाकर ने गलत करना बंद कर दिया।
इस कहानी से हमें संदेश मिलता है। कि यदि कोई विद्वान व्यक्ति हमें कोई सलाह देता है। तो हमें उसे स्वीकार करना चाहिए। हमारी कई समस्याएं विद्वान लोगों की सलाह मानने से ही समाप्त हो जाती है।