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सांस संबंधी रोगों से ग्रस्त गंभीर: कोविड के मरीजों को इन दिनों इलाज के लिए धक्के खाने पड़ रहे.

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एशिया: के सबसे बड़े हवाई अड्डे, देश में सबसे महंगी जमीनों के दामों को लेकर चर्चित रहने वाले नोएडा- ग्रेटर नोएडा में कमजोर फेफड़े या सांस संबंधी रोगों से ग्रस्त गंभीर कोविड के मरीजों को इन दिनों इलाज के लिए धक्के खाने पड़ रहे हैं। दरअसल, यहां के सरकारी अस्पतालों में ‘लेवल थ्री’ की व्यवस्था न होने पर अत्यधिक दबाव में आक्सीजन देने का प्रबंध नहीं है।

ऐसे में मरीज भर्ती नहीं किए जा रहे। इसके अलावा जो बड़े निजी अस्पताल हैं वे कम पैसे में मरीजों को विशेष सुविधा नहीं दे सकते क्योंकि इसके लिए अलग से इंतजाम करना होता जिसमें खर्च भी ज्यादा आता है। अब मरीज जाएं तो जाएं कहां। दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में जाने से अच्छा वो सांस की आस में निजी अस्पतालों की ही शर्त मान रहे हैं।

रिकार्ड तोड़ गर्मी के बीच राजधानी की सड़कों पर निकलने को मजबूर महिलाओं के लिए मुफ्त में भी डीटीसी की खटारा हो चुकी बसों में सफर करना किसी जंग लड़ने से कम नहीं। हरी बसें कहीं भी रुक जाती हैं और लाल बसों की एसी खराब है। ऐसे में अधिकतर महिलाओं के लिए डीटीसी बेड़े में चल रही निजी कंपनी की बैगनी रंग वाली बस राहत बनकर उभरी है।

भरी दोपहरी में महिलाएं स्टैंड पर अपनी रूट की इन बसों का इंतजार करती हैं और बैंगनी रंग देखकर राहत की सांस लेती हैं। दरअसल इसकी वजह डीटीसी की अपनी बसों का खस्ता हाल होना है। जिससे रूट की हरी और लाल बसों को छोड़कर निजी कंपनी की बैगनी रंग वाली बसों का इंतजार रहता है। एक यात्री ने ठीक ही कहा- ऐसी सुविधा का मतलब बैगनी रंग वाली बस ही है।

44-45 डिग्री तापमान में हरी बसों के हालात तो अमानवीय है ही लाल बसें भी हांफ रही है। दूसरे यात्री ने महकमा पर कटाक्ष किया, कहा- टिकट तो असाधारण वाली लेंगे और सुविधा साधारण वाली भी नहीं मिल पा रही! डीटीसी की अपनी ज्यादातर बसें जर्जर हो चुकी हैं। यहीं वजह है कि जिन रूट पर बैगनी रंग वाली बसें हैं उनका इंतजार सवारियों को ज्यादा है। और वो राहत वाली बसें साबित हो रही हैं।

गले की फांस

मुंडका हादसा दिल्ली पुलिस से लेकर नगर निगम और अग्निशमन विभाग तक के गले की फांस बनेगा। यहां लापरवाही सबकी दिख रही है और राजनीतिक पार्टियों की तरह आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। लेकिन सभी विभागों में ही छेद है यह खुद भी विभाग के आला अधिकारी जानते हैं। दरअसल दिल्ली में अनधिकृत निर्माण से लेकर अनधिकृत फैक्टरियां चलाने के मामले में इन तीनों विभागों की नजर रहती है। निगम का काम लाइसेंस देना, अग्निशमन का अनापत्ति प्रमाण पत्र और पुलिस का सुरक्षा व्यवस्था से लेकर अवैध गतिविधियों पर ताला लगाने में सहायक बनने का काम है।

अब मुंडका हादसे में तीनों विभागों की पोल खुल रही है। तीनों विभागों ने आंखें मंूंदकर इस तरह की फैक्टरियों को बिना वैध कागजातों से चलने दिया और जब 27 जानें चली गई तो अब अपने-अपने हिसाब से निर्देश निकालकर खानापूर्ति कर रहे हैं। यह जानने वाले भी सभी हैं कि अब खानापूरी हो रही है और विभागों की गलती है, लेकिन बोलने वाला कोई नहीं। मजबूरों के आंसुओं की कीमत बाद में मिल जाए तो भी बहुत है।

राजनीति का चश्मा

शायद, राजनीति का चश्मा सच्चाई छिपा देता है और सिर्फ सिसायत के मद्देनजर फायदे की चीज ही देखना सिखाता है। इसलिए तो किसी भी हादसे पर संवेदनशील बयानों की जगह आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति दिखती है। अब दिल्ली के मुंडका में अग्निकांड हुआ और 27 लोग जलकर मर गए। यहां राजनीतिक पार्टियों का काम होना चाहिए था कि हादसे की कमजोरियों को ढूंढा जाए और उनको दूर किया जाए। लेकिन वही हो रहा है जो पिछले कई सालों से होता आया है। यानी राजनीति।

एक पार्टी दूसरी पार्टी को मामले में दोषी बता रही है। इससे इतना संवेदनशील और गंभीर मुद्दा भी कुछ दिनों बाद भुला दिया जाएगा। जनप्रतिनिधियों का काम भी मुश्किलों को कम करना नहीं बस शोक संदेश जारी करना भर ही रह गया है। विभागों की कमियों को दूर नहीं किया जा रहा है। देखा जाए तो केंद्र के पास पुलिस है, दिल्ली सरकार के पास अग्निशमन दल है और निगम के पास नियम हैं। लेकिन तीनों ही सरकारें अपने-अपने विभागों की कमियों को देख ही नहीं पा रही हैं, क्योंकि उनका राजनीतिक चश्मा दूसरी सरकार के विभागों में गलतियां खोज रहा है।

तेरा-मेरा कूड़ा

कूड़ा राष्ट्रीय समस्या है इसलिए इसको लेकर देश भर में अभियान चल रहा है। एक-एक मोहल्ले और गली में कूड़े को लेकर छोटे-मोटे झगड़े भी होते हैं। पिछले दिनों बेदिल को पूर्वी दिल्ली में एक अलग वाकया दिखा। दरअसल यहां एक इलाके में लोगों के घरों के सामने से बड़ा नाला गुजरता है। कूड़ा वाला आता है और वह कूड़ा लेने के पैसे लेता है। लोग वह देना नहीं चाहते और चुपके से कूड़ा उसी नाले में फेंक देते हंै।

शिकाय मिली तो एक निगम कर्मचारी पड़ताल करने पहुंचा और एक महिला को कूड़ा फेंकते देख लिया। तब गया दोनों में बहस हुई लेकिन कोई कार्रवाई करने की जगह कर्मचारी ने नाले का ही कूड़ा महिला के घर के पास फेंक दिया। महिला भी कम नहीं थीं, उन्होंने कर्मचारी के जाने के बाद उसकी कार्रवाई को धता बताते हुए कूड़ा नाले को लौटा दिया।

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