बिलासपुर.
बिलासपुर हाईकोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान के तौर पर ध्वनि प्रदूषण से संबंधित एक महत्वपूर्ण जनहित याचिका मामले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अरविन्द कुमार की युगल पीठ ने सुनवाई की। इस दौरान छत्तीसगढ़ नागरिक संघर्ष समिति की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि छत्तीसगढ़ शासन ने 4 नवंबर, 2019 को प्रत्येक साउंड सिस्टम और पब्लिक एड्रेस सिस्टम में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए साउंड लिमिटर लगाना अनिवार्य किया है।
अधिसूचना के अनुसार कोई भी निर्माता, व्यापारी, दुकानदार या एजेंसी, ध्वनि सिस्टम या पब्लिक एड्रेस सिस्टम को बिना साउंड लिमिटेड (ध्वनि सीमक) के क्रय-विक्रय, उपयोग या इनस्टॉल नहीं कर सकता और ना ही किराए पर दे सकता है। अधिसूचना के अनुसार पुलिस प्राधिकारी, नगर पालिक निगम, नगर पालिक परिषद, नगर पंचायत या पंचायत यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी ध्वनि प्रणाली या लोक संबोधन प्रणाली ध्वनि सीमक लगाए बिना किसी भी शासकीय या गैरशासकीय कार्यक्रम में स्थापित नहीं किया जाएगा या किराए पर नहीं दिया जाएगा। संबंधित एजेंसी द्वारा सभी लाइसेंस में इस शर्त को शामिल किया जाए। अधिसूचना देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि 'प्रावधान सब हैं पर सब कागजों में हैं।' कोर्ट ने मुख्य सचिव से शपथ पत्र मांगा है कि इस अधिसूचना का पालन शब्दशः और भावना अनुरूप क्यों नहीं किया गया है। प्रकरण की अगली सुनवाई 23 फरवरी को होगी। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के तहत बने नियमों का उल्लंघन करने पर पांच साल की सजा या एक लाख रुपये का जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है। अगर नियमों का उल्लंघन जारी रहता है तो प्रतिदिन 5000 रुपये का फाइन और लगाया जा सकता है।