• खनिज रियायत नियम-2016 नियम क्रमांक 12(1)(आई) के तहत प्री-एंप्शन प्रावधान को लागू किया जाए तो खनिज संकट का समाधान संभव
• कर्नाटक में लागू है यह नियम, राज्य के उद्योगों को मिल रही है पहली प्राथमिकता
• खनिज पदार्थों की पर्याप्त उपलब्धता होगी तो दाम भी कम हो सकते हैं
• कच्चे माल के बजाय बने-बनाए सामान के निर्यात में छत्तीसगढ़ सक्षमः वीआर शर्मा
रायगढ़। जिन्दल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) के चेयरमैन एवं पीएचडी चेम्बर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज़ की मिनरल्स एंड मेटल्स कमेटी के को-चेयरमैन श्री नवीन जिन्दल ने आज कहा कि छत्तीसगढ़ में खनिज रियायत नियम-2016 नियम क्रमांक 12(1)(आई) के तहत प्री-एंप्शन अर्थात फ़र्स्ट राइट प्रावधान को लागू किया जाए तो मौजूदा खनिज संकट का समाधान संभव है। इस प्रावधान में राज्य सरकारों को छूट दी गई है कि वे अपने प्रदेश के उद्योगों को पर्याप्त आपूर्ति के लिए खनिज पदार्थों को अन्य राज्यों एवं विदेश जाने से रोक सकें । कर्नाटक में यह प्रावधान लागू है, जहां के उद्योगों को खनिजों के आवंटन में पहली प्राथमिकता मिल रही है।
श्री जिन्दल कल ऑनलाइन आयोजित छत्तीसगढ़ माइनिंग समिट में छत्तीसगढ़ के उद्योगों के विकास की संभावनाओं पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें तो उद्योगों की राह आसान हो जाएगी। पिछले एक साल में ओडिशा में लौह अयस्क के दाम 500 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 350-400 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं। उद्योगों को कच्चे माल के संकट का सामना करना पड़ रहा है। प्री-एंप्शन प्रावधान लागू किये जाएं तो खनिज की पर्याप्त उपलब्धता रहेगी और दाम भी कम रहने की संभावनाएं बनेंगी। प्रदेश सरकार को देखना चाहिए कि जो उद्योग उनके यहां लोगों को रोजगार दे रहे हैं, राजस्व संकलन में कर, रॉयल्टी आदि के माध्यम से योगदान कर रहे हैं, उन्हें पर्याप्त खनिज पदार्थ उपलब्ध हो। छत्तीसगढ़ में पर्याप्त लौह अयस्क, कोयला और अन्य खनिज संसाधन हैं। उन्होंने कोयला मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव एम. नागराजू का धन्यवाद किया जो उद्योगों की समस्याओं को सरकार के समक्ष रखते रहे हैं। उन्होंने मिनरल्स एंड मेटल्स कमेटी के चेयरमैन अनिल चौधरी का भी धन्यवाद करते हुए कहा कि उनके अनुभव का लाभ उद्योगों को मिल रहा है।
इस अवसर पर जेएसपीएल के प्रबंध निदेशक वी.आर. शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ से लगभग 85 प्रतिशत लौह अयस्क अन्य राज्यों को भेज दिया जाता है। राज्य के उद्योगों के लिए मात्र 15 प्रतिशत लौह अयस्क अपर्याप्त है। यहां भिलाई स्टील प्लांट और जिन्दल स्टील एंड पावर लिमिटेड बड़े पैमाने पर स्टील का उत्पादन करते हैं।छत्तीसगढ़ में प्राइवेट सेक्टर औद्योगिक़ इकाइयों को लगभग 20 मिलियन टन लौह अयस्क प्रति वर्ष की ज़रूरत है।इसके अलावा अनेक मंझोले और लघु स्तर के स्टील उद्योग हैं। इन्हें पर्याप्त मात्रा में खनिज पदार्थ उपलब्ध हो तो 2025 तक उत्पादन दोगुना होना संभव है। उन्होंने कहा कि 2030 तक 300 मिलियन टन स्टील उत्पादन के राष्ट्रीय लक्ष्य में छत्तीसगढ़ 60 मिलियन टन का योगदान कर सकता है। हमारा प्रयास तो यह होना चाहिए कि हम कच्चे माल के बजाय बने-बनाए सामान बाहर भेजें, जिससे राज्य को भारी राजस्व लाभ भी होगा।
श्री शर्मा ने सुझाव दिया कि कोयला अन्य राज्यों में भेजने के बजाय बिजली उत्पादन के अलावा उसके विविध उपयोग सुनिश्चित किये जा सकते हैं। राज्य में कोयले से गैस और फिर उर्वरक बनाने के उपक्रम पर काम किया जाए तो कृषि क्षेत्र को भी लाभ होगा।
समिट में केंद्रीय कोयला मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव एम. नागराजू, पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय अग्रवाल, उपाध्यक्ष प्रदीप मुल्तानी व साकेत डालमिया, मिनरल्स एंड मेटल्स कमेटी के चेयरमैन अनिल चौधरी, को-चेयरमैन रवि गुप्ता, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के छत्तीसगढ़ चैप्टर अध्यक्ष शशांक रस्तोगी, स्वप्निल गुप्ता आदि ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन सहायक महासचिव योगेश श्रीवास्तव ने किया।
क्या है खनिज रियायत नियम-2016 नियम क्रमांक 12(1)/(आई)
इस नियमावली के माध्यम से राज्य सरकार को अधिकार दिया गया है कि वे प्रदेश में विद्यमान खनिज आधारित उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर पहले खनिज संसाधन उपलब्ध कराएं और उसके बाद ही शेष संसाधन को बाहर भेजें। राज्य सरकार इसके लिए प्री-एंप्शन प्रावधान लागू कर सकती है।
छत्तीसगढ़ में क्या है स्थिति
छत्तीसगढ़ में एनएमडीसी ही एकमात्र मर्चेंट माइनर है। उसकी लौह अयस्क उत्पादन क्षमता 37.8 मिलियन टन सालाना है लेकिन उसने पिछले वर्ष मात्र 25.65 मिलियन टन ही उत्पादन किया, जिससे राज्य सरकार को भी राजस्व की हानि हुई। आलोच्य अवधि में एनएमडीसी ने कुल 27 मिलियन टन लौह अयस्क का डिस्पैच किया, जिसमें से 89 प्रतिशत राज्य के बाहर भेजा गया और मात्र 11 प्रतिशत राज्य में विद्यमान उद्योगों को उपलब्ध कराया गया। यही वजह है कि राज्य के उद्योगों को खनिज संसाधनों के संकट का सामना करना पड़ रहा है और वे अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर पा रहे।
बैलाडिला डिपॉजिट-13 से अभी उत्पादन शुरू नहीं
छत्तीसगढ़ में विद्यमान स्टील उद्योगों को लौह अयस्क उपलब्ध कराने के लिए एनएमडीसी और सीएमडीसी ने संयुक्त रूप से बैलाडिला डिपॉजिट-13 से लौह अयस्क उत्पादन का उपक्रम अपने हाथ में लिया लेकिन अभी इसमें उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है। इस खदान की क्षमता लगभग 10 मिलियन टन सालाना है। अगर एनएमडीसी पूरी क्षमता से उत्पादन करे और बैलाडिला में भी उत्पादन शुरू हो जाए तो छत्तीसगढ़ में लौह अयस्क की उपलब्धता 20-22 मिलियन टन सालाना हो जाएगी। इससे राज्य के उद्योगों को पर्याप्त खनिज उपलब्ध हो सकेगा और सरकार को भी कर एवं रॉयल्टी के रूप में भारी राजस्व की आय होगी।