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शव लेकर बिलखते रहे परिजन , ग्रामीण ने गाँव में घुसने पर लगाई पाबंदी

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कोरोना के खौफ में भूले मानवता , स्वयंसेवी संस्था ने कराया अंतिम संस्कार
कोरबा।
कोरोना वायरस का खौफ मानवता पर भी भारी पड़ गया। अंतिम संस्कार के लिए शव लेकर पहुंचे परिजनों को ग्रामीणों ने गांव में घुसने से मना कर दिया। विषम परिस्थिति में स्वयं सेवी संगठन मदद के लिए आगे आया और शव का अंतिम संस्कार कर शोक संतप्त परिजनों को मदद पहुंचाई.यह वाक्या रजगामार चौकी अंतर्गत ग्राम मातमार की है। यहां निवासरत सुखलाल मंझवार लगभग 20-25 वर्षों से कमाने खाने चला गया था। उसने दो विवाह किया था। उसकी पहली पत्नी मनिहारो बाई अपने एक पुत्र व पुत्री के साथ मायके बेला में रहती है। वहीं दूसरी पत्नी रामकुमारी व तीन छोटे बच्चों के साथ सुखलाल मंझवार कमाने खाने गया था। मृतक की पहली पत्नी से हुई पुत्री रूकमणी ने बताया कि बिलासपुर में 15 दिन पूर्व उसे किडनी की समस्या हुई. कल रात परिजनों ने उसे सिम्स में भर्ती कराया. जहां उसकी मौत हो गई। अंतिम संस्कार के लिए परिजन उसके शव को लेकर गृहग्राम मातमार पहुंचे। जहां गांव के लोगों ने शव लेकर गांव में घुसने से मना कर दिया. ग्रामीणों के इस रवैये से शोक संतप्त परिजनों की परेशानी और बढ़ गई। वे शव लेकर जिला अस्पताल पहुंचे। ऐसे में उनकी मदद के लिए स्वयं सेवी संगठन सामने आया। जिला अस्पताल में वैधानिक कार्रवाई पूरी कर सतनाम नगर रिसदी में परिजनों की मौजूदगी उसका अंतिम संस्कार किया गया। बताया मृतक की पुत्री रूकमणी ने बताया कि किस बीमारी से उसकी मौत हुई है पता नहीं। 20 -25 साल हो गए और अब मौत के बाद गांव में अंतिम संस्कार के लिए पहुंच गए। माना जा रहा है कि लोगों में कोरोना का खौफ इस कदर है कि किसी की मौत को भी संदिग्ध नजरों से देख रहे हैं।
सामाजिक बहिष्कार भी हो सकता है वजह
चूंकि मृतक सुखलाल मंझवार ने दो विवाह किया था। पहली पत्नी के दो बच्चे नानी गांव बेला में रहते हैं। जिसमें से बड़ी पुत्री रूकमणी का विवाह हो चुका है। उसका ससुराल ग्राम गोढ़ी है। वहीं दूसरी पत्नी के साथ वह कमाने खाने गया था। इस विवाह से भी उसके तीन छोटे छोटे बच्चे हैं, जो पिछले कई वर्षों से गृहग्राम मातमार में आना जाना नहीं करता था। कहीं ऐसा तो नहीं कि दो विवाह के कारण उसे ग्रामीणों ने बहिष्कृत कर दिया। फिलहाल माजरा क्या है, यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है।