Home देश सुप्रीम कोर्ट का फैसला-मध्य प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को होगा फ्लोर टेस्ट

सुप्रीम कोर्ट का फैसला-मध्य प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को होगा फ्लोर टेस्ट

139
0

विधानसभा कार्यवाही की वीडियो रिकार्डिंग होगी
विश्वास मत हाथ उठाकर किया जाए
बागी विधायकों को कर्नाटक के डीजीपी सुरक्षा मुहैया कराएं
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश विधानसभा में कल यानि 20 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ये फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक अस्थिरता खत्म करने के लिए फ्लोर टेस्ट जरुरी है।
कोर्ट ने कहा कि पूरे विधानसभा की कार्यवाही की वीडियो रिकार्डिंग होगी। कोर्ट ने 20 मार्च की शाम 5 बजे तक फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर बागी विधायक आना चाहते हैं तो उन्हें कर्नाटक के डीजीपी सुरक्षा मुहैया कराएं। कोर्ट ने कहा कि विश्वास मत हाथ उठाकर किया जाए।
सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री कमलनाथ की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह एक अलग ही मामला है। इसमें किसी ने राज्यपाल के सामने यह दावा नहीं किया है कि उसके पास बहुमत है। अरुणाचल प्रदेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को गलत बताया था। तब राज्यपाल ने सत्र बुलाने के साथ उसकी कार्रवाई पर भी निर्देश दिए थे। सिब्बल ने कहा कि कुछ विधायक सदन में नहीं आएंगे। सरकार गिर जाएगी। विधायक नई सरकार में कोई पद ले लेंगे। क्या आप ऐसा उदाहरण स्थापित करेंगे? चलिए, मान लिया कि विधायक बंधक नहीं, आज़ाद हैं। तो फिर विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव क्यों नहीं लाता? विधायक सामने क्यों नहीं आते? मुख्यमंत्री उनकी सुरक्षा का वचन दे रहे हैं।
सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि सिर्फ फ्लोर टेस्ट-फ्लोर टेस्ट का मंत्र जपा जा रहा है। स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में दखल देने की कोशिश हो रही है। सुप्रीम कोर्ट भी स्पीकर के विवेकाधिकार में दखल नहीं दे सकता है। सिंघवी ने कहा कि विधायक बागी हो गए हैं। सदन छोटा हो गया है। 16 लोगों के बाहर रहने से सरकार गिर जाएगी। नई सरकार में यह 16 कोई फायदा ले लेंगे। उन्होंने कहा कि कोर्ट को स्पीकर के लिए कोई समय तय नहीं करना चाहिए। स्पीकर को समय देना चाहिए। लेकिन फिर भी आप कह दीजिए कि उचित समय मे स्पीकर तय करे तो वह 2 हफ्ते में तय कर लेंगे। तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर विधायक वीडियो कांन्फ्रेंसिंग से बात करें तो क्या स्पीकर फैसला ले लेंगे? इसका सिंघवी ने नकारात्मक जवाब दिया।
सिंघवी ने कहा कि कोर्ट के बिना आदेश के स्पीकर दो हफ्ते में इस्तीफे या अयोग्यता पर फैसला कर लेंगे। इस्तीफे और अयोग्यता पर बिना फैसला हुए, फ्लोर रेस्ट नहीं होना चाहिए। सिंघवी ने कहा कि अगर विधायक बंधक नहीं हैं तो राज्यसभा चुनाव लड़ रहे दिग्विजय सिंह को अपने वोटर से मिलने क्यों नहीं दिया गया? सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल फ्लोर टेस्ट कराने की जरूरत बताई। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम हॉर्स ट्रेडिंग को बढ़ावा नहीं देना चाहते। इसलिए जल्दी फ्लोर टेस्ट ज़रूरी होता है। सिंघवी ने कहा कि जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो उस दौरान कोर्ट ने कभी भी फ्लोर टेस्ट का आदेश नहीं दिया है। यह मामला भी ऐसा ही है।
सिंघवी ने कहा कि कर्नाटक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के अधिकारों को अहमियत दी थी। कोर्ट ने इस्तीफों पर फैसला लेने की कोई समय सीमा भी तय नहीं की थी। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने यह भी कहा था कि विधायक सदन की कार्रवाई में जाने या न जाने का फैसला खुद ले सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक के आदेश स्पीकर के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देता कि वो कब तक अयोग्यता पर फैसला ले लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि फ्लोर टेस्ट न हो। कर्नाटक के मामले में अगले दिन फ्लोर टेस्ट हुआ, कोर्ट ने विधायकों की अयोग्यता के मामले को लंबित होने की वजह से फ्लोर टेस्ट नही टाला था ।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत जो उभरता है, उसमें अविश्वास मत पर कोई प्रतिबंध नहीं है क्योंकि स्पीकर के समक्ष इस्तीफे या अयोग्यता का मुद्दा लंबित है। इसलिए, हमें यह देखना होगा कि क्या राज्यपाल उसके साथ निहित शक्तियों से परे काम करेंगे या नहीं। दूसरा सवाल ये है कि यदि स्पीकर राज्यपाल की सलाह को स्वीकार नहीं करता है, तो राज्यपाल को क्या करना चाहिए। एक विकल्प यह है कि राज्यपाल अपनी रिपोर्ट केंद्र को दे।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक बात बहुत स्पष्ट है कि सभी विधायक एक साथ कार्य कर रहे हैं। यह एक राजनीतिक ब्लॉक हो सकता है, हम कोई भी दखल नहीं दे सकते। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि संसद या विधानसभा के सदस्यों को विचार की कोई स्वतंत्रता नहीं है, वे व्हिप से संचालित होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा नियम के मुताबिक इस्तिफा एक लाइन का होना चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर सदन सत्र में नहीं है और यदि सरकार बहुमत खो देती है, तो राज्यपाल को विश्वास मत रखने के लिए स्पीकर को निर्देश देने की शक्ति है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या होगा जब विधानसभा को पूर्व निर्धारित किया जाता है और सरकार अपना बहुमत खो देती है? राज्यपाल फिर विधानसभा नहीं बुला सकते ? चूंकि इसे अनुमति नहीं देने का मतलब अल्पमत में सरकार जारी रखना होगा। जस्टिस चंद्रचूड़ ने सिंघवी से पूछा कि आपके अनुसार राज्यपाल केवल सदन को बुला सकते हैं और फिर इसे सदन पर छोड़ सकते हैं। तब सिंघवी ने कहा कि हां। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने पूछा कि अगर सरकार अल्पमत में है, तो क्या राज्यपाल के पास विश्वास मत कराने की शक्ति नहीं है। तब सिंघवी ने कहा कि नहीं, वह नहीं कर सकते उनकी शक्ति सदन बुलाने के बारे में हैं।
मध्यप्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विधानसभा का सत्र हमेशा पांच सालों के लिए होता है। इसका अभिषेक मनु सिंघवी ने विरोध करते हुए कहा कि यह सामान्य ज्ञान की बात है सदन पांच सालों के लिए होता है सत्र नहीं। सिंघवी ने कहा कि यह एक टेस्ट केस होगा कि क्या राज्यपाल को कोई सरकार अस्थिर करने का अधिकार है।
सिंघवी ने कहा कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, केरल और महाराष्ट्र में राज्य विधानसभाएं कोरोना वायरस की वजह से सस्पेंड कर दी गई हैं। कोर्ट को ये देखना चाहिए कि स्पीकर का फैसला गलत है कि नहीं। यहां तक कि संसद भी काम स्थगित करने पर विचार कर रही है।
सिब्बल ने कहा कि स्वतंत्र इच्छा वाले विधायक सामान्य फ्लाइट में नहीं गए। चार्टर्ड प्लेन में गए। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सबको चार्टर फ्लाइट का शौक होता है । उसके बाद सिब्बल ने कहा कि यह राजनीति का गंदा हिस्सा है। हम सबने इसे ऐसा बना दिया है। हम ज़िम्मेदार हैं। सिब्बल ने विधायकों को चार्टर्ड प्लेन से ले जाने में केंद्र की भूमिका का आरोप लगाया। सिब्बल ने कहा कि विधायकों को हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के हाई सिक्युरिटी क्षेत्र में उतारा गया। तब जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि इन दलीलों के आधार पर कोई संवैधानिक मामला तय नहीं किया जा सकता है।
बीजेपी के वकील रोहतगी ने सिब्बल के बोलते चले जाने पर एतराज़ जताया। रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता हम हैं। पहले दवे 2 घंटे बोले, फिर सिंघवी, और अब सिब्बल। हमें समय ही नहीं मिल रहा हैं। वही बातें दोहराई जा रही हैं। सिब्बल ने कहा कि सरकारिया आयोग और पुंछी कमीशन ने भी कहा कि राज्यपाल सिर्फ सत्र बुला सकते हैं। जब सत्र चल रहा हो तो अविश्वास प्रस्ताव लाता है विपक्ष।
सिब्बल के बाद जब वरिष्ठ वकील विवेक तन्खा ने राज्य सरकार की ओर से बोलना शुरु किया तो रोहगती ने टोकते हुए कहा कि राज्य सरकार का इस केस से क्या लेना-देना। या तो कांग्रेस को या स्पीकर को इस केस से लेना-देना है। तब तन्खा ने कहा कि राज्यपाल का भी इस केस से क्या लेना-देना। तब तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी गई है। तन्खा ने कहा कि राज्यपाल को किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहिए। जब तक इस्तीफा स्वीकार नहीं कर लिया जाता तब तक राज्यपाल ने कैसे समझ लिया कि सरकार अल्पमत में है।
मध्यप्रदेश विधानसभा के मुख्य सचिव की ओर से वकील हरीन रावल ने बोलना शुरु किया। उन्होंने कहा कि मैं प्रतिवादी तीन की तरफ से पेश हुआ हूं। तब रोहगती ने कहा कि प्रतिवादी तीन कौन है। तब रावल ने कहा कि जब उन्होंने हमें पक्षकार बनाया है तो वे बेहतर जानते होंगे कि मैं कौन हूं। इस पर मेहता ने कहा कि ये कोर्ट के धैर्य की परीक्षा लेने जैसा है।
जब रोहतगी तीसरी बार उठे तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि मेरा सवाल है कि आप अविश्वास प्रस्ताव क्यों नहीं पेश करते हैं। रोहतगी ने कहा कि विधानसभा चलाने के लिए राज्यपाल की शक्तियों का सबसे बढ़िया उदाहरण एसआर बोम्मई केस है। बोम्मई केस में कर्नाटक में विधानसभा चल रही थी। रोहतगी ने कहा कि बोम्मई केस में राज्यपाल ने खुद की अल्पमत का फैसला कर लिया था और राष्ट्रपति शासन लगा दी गई थी। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि सवाल ये है कि जब सदन नहीं चल रहा हो तब क्या राज्यपाल सदन का एजेंडा फिक्स कर सकता है। स्पीकर को अभी इस्तीफा स्वीकार करना है। अगर स्पीकर इस्तीफा स्वीकार नहीं करता है तब क्या होगा। राज्यपाल ये फैसला नहीं कर सकते कि विधायकों ने इस्तीफा दिया है या नहीं। क्या कोर्ट राज्यपाल के निष्कर्षों के आधार पर आदेश पारित कर सकती है। तब रोहतगी ने कहा कि स्पीकर दो हफ्ते का समय क्यों लेना चाहते हैं। उनकी मुख्यमंत्री से मिलीभगत है। उन्होंने कहा कि अगर 16 विधायक उनके खिलाफ वोट दे देते हैं तो उनकी सरकार गिर जाएगी। अगर वे नहीं भी आते हैं तो भी सरकार गिर जाएगी क्योंकि फ्लोर टेस्ट सदन में मौजूद सदस्यों की वोटिंग के आधार पर होता है। अगर वे विधायक आते हैं और वे सरकार के पक्ष में वोट देते हैं तब सरकार बच जाएगी।
रोहतगी ने कहा कि पूर्व में ऐसे मामलों में वे आधी रात में कोर्ट आए थे और तुरंत फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की थी। इस मामले में वे दो हफ्ते का समय मांग रहे हैं ताकि वे हार्स ट्रेडिंग कर सकें। रोहतगी ने कहा कि हर रोज हार्स ट्रेडिंग में बदलाव आ रहा है। यह अल्पमत सरकार का असंवैधानिक काम है। कल ही उन्होंने तीन जिले बनाए हैं जबकि वो अर्ध-न्यायिक मामला है।
रोहतगी ने कहा कि मान लें कि ऐसी स्थिति आए जब विधानसभा अस्तित्व में हो लेकिन उसका सत्र नहीं चल रहा हो और 50 विधायक राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दें। राज्यपाल को लगेगा कि सरकार के पास बहुमत नहीं है और वो फ्लोर टेस्ट का आदेश दे सकते हैं। राज्यपाल को ये शक्ति है कि सत्र नहीं चल रहा हो तब भी फ्लोर टेस्ट का आदेश दे सकता है। रोहतगी ने कहा कि एक-एक मिनट महत्वपूर्ण है और एक मिनट की भी देरी हार्स ट्रेडिंग को बढ़ावा देगी। रोहतगी ने कहा कि बागियों ने तय किया है कि वे विधानसभा सत्र में हिस्सा नहीं लेंगे।
रोहतगी ने कहा कि इन्होंने बजट सत्र टाल दिया। बजट जो कि मनी बिल है, गिर जाता तो सरकार गिर जाती। पूरा सदन बैठा था। अचानक 12 बजे कोरोना वायरस आ गया। 10 बजे नहीं आया था। हिंदी में मुहावरा है कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। मैं चाहता हूँ कि कोर्ट जल्द से जल्द फ्लोर टेस्ट के लिए अंतरिम आदेश दे ।
रोहतगी के बाद तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट जल्द आदेश दे। हर बीतने वाला दिन एक अंतर पैदा कर रहा है। मेहता ने कहा कि राज्यपाल प्रथम दृष्टया ये मानते हैं कि सरकार बहुमत खो चुकी है। उन्होंने कहा कि संसद चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट चल रहा है लेकिन विधानसभा कोरोना वायरस की वजह से स्थगित है। वे 15 मिनट का समय क्यों नहीं दे रहे हैं। वे आयोगों के लिए तब नियुक्तियां कर रहे हैं जब कोर्ट में मामला लंबित है। मेहता ने कहा कि लोकतंत्र ये नहीं है कि इस्तीफों पर बैठ जाया जाए और दो हफ्ते का समय मांगा जाए। मेहता ने आज ही अंतरिम आदेश जारी करने की मांग की।
बागी विधायकों की ओर से मनिंदर सिंह ने कहा कि छह मंत्रियों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया। 16 विधायकों का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। दोनों ही स्पीकर के समक्ष उपस्थित नहीं हुए थे। तो 16 लोगों के इस्तीफे पर फैसला लंबित क्यों है। ये अंतर नहीं समझ में आता है। 16 विधायकों पर दसवीं अनुसूची की तलवार लटक रही है। अगर उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं होता है तो उन्हें अयोग्य करार दिया जा सकता है।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल की शक्तियों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। एसआर बोम्मई और रामेश्वर प्रसाद के केस में साफ है कि राज्यपाल की शक्तियों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है। सिंघवी ने कहा कि सरकार जाते ही स्पीकर भी चले जाते हैं । तब कोर्ट में कई वकीलों ने एक साथ नो-नो बोला। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि ऐसा नहीं होता मिस्टर सिंघवी। तब सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल धारा 356 के तहत आदेश पारित कर दें। या तो सरकार बर्खास्त करें या दोबारा चुनाव की सिफारिश कर दें। क्यों नहीं करते ।
पिछले 18 मार्च को सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश कांग्रेस के वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि 16 विधायकों को अवैध रुप से हिरासत में रखा गया है। तब बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने इसे गलत बताया था। मनिंदर सिंह ने कहा था कि कोई हिरासत में नहीं है । दवे ने कहा था कि कोर्ट बाद में विस्तार से मामले की सुनवाई करे ।
18 मार्च को सुनवाई के दौरान मुकुल रोहतगी ने कांग्रेस पर तीखा हमला करते हुए कहा था कि यह 1975 में सत्ता के लिए देश पर इमरजेंसी थोपने वाली पार्टी है। किसी भी तरह सत्ता में बने रहना चाहती है। रोहतगी ने कहा था कि सत्ता के लिए अजीब दलीलें दी जा रही हैं। जिसके पास बहुमत नहीं है वह एक दिन सत्ता में नहीं रह सकता। रोहतगी ने कहा था कि यहां पहले खाली सीटों पर चुनाव की दलील देकर 6 महीने का प्रबंध करने की योजना है। चुनाव करवाना चुनाव आयोग का काम है। यहां इस पर विचार नहीं हो रहा, फ्लोर टेस्ट पर हो रहा है । तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने से पहले स्पीकर का संतुष्ट होना ज़रूरी है।