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बाबा बागेश्वर पर हमलावर क्यों नहीं हो पा रही तेजस्वी यादव की पार्टी?

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नई दिल्ली। बाबा बागेश्वर इन दिनों बिहार में दरबार लगाए हुए हैं। दावा है कि यहां 8-10 लाख लोग पहुंच रहे हैं। यह संख्या अतिरेक हो सकती है। अगर इसे 2-3 लाख भी मान लिया जाए तो आज के इस दौर में यह इतिहास लिखने जैसा है। बात हिंदूत्व की हो तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) खुद को इससे अलग क्यों रखती, जिसने कुछ ही महीने पहले रामचरितमानस विवाद पर नीतीश कुमार के डिप्टी तेजस्वी यादव की पार्टी को जमकर घेरा था। बीजेपी के काम को आसान लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने कर दिया, जब उन्होंने बाबा के खिलाफ तल्ख बयान दिया था। उम्मीद के मुताबिक बीजेपी के तमाम बड़े नेता इस दरबार में पहुंचे। उनमें केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, राज्यसभा सांसद सुशील मोदी, लोकसभा सांसद रविशंकर प्रसाद, प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी सहित तमाम दिग्गज इस मंच पर आरती की थाल पकड़े हुए दिखे।
दरबार तो धार्मिक है, लेकिन पाटलिपुत्र की इस धरती पर इसके सियासी निहितार्थ भी हैं। बिहार में बीते कुछ महीने पहले तेजस्वी यादव की सरकार में शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को लेकर विवादित बयान दिया था। पूरी आरजेडी इस मामले पर काफी आक्रामक दिखी। नीतीश कुमार को भी इस पूरे प्रकरण में डिफेंसिव होना पड़ गया था। हालांकि, उनकी पार्टी जेडीयू ने इसका विरोध जरूर किया था। आरजेडी और शिक्षा मंत्री का विरोध कर रही बीजेपी इसके बाद से ही एक बड़े मौके की तलाश कर रही थी, जो इस मुद्दे से मेल खाता हो। यही कारण है कि बीजेपी ने बाबा बागेश्वर के दरबार में हाजिरी लगाने में देरी नहीं की।
बाबा बागेश्वर बीजेपी के लिए कितने फायदेमंद?
प्रचंड गर्मी वाले मई के महीने में बाबा बागेश्वर के दरबार में उमड़ी भीड़ आज के समय में किसी राजनीतिक दल के लिए भी जुटाना आसान नहीं है। बीजेपी ने इसके महत्व को समझा और तमाम दिग्गजों को मंच पर उतार दिया। दिल्ली की बुरारी लोकसभा सीट, जहां पूर्वांचल का दबदबा है, से सांसद मनोज तिवारी फ्लाइट से लेकर दरबार स्थल तक बाबा की परछाई की तरह दिख रहे हैं। उन्होंने बाबा की कार की ड्राइवरी तक करने में कोई संकोच नहीं किया।
भाजपा की राजनीति के लिए मुफीद हैं बाबा बागेश्वर
आरजेडी की तुलसी दास वाली राजनीति के जवाब में बीजेपी बाबा बागेश्वर के दरबार में हाजिरी लगाकर सामाजिक गोलबंदी का परीक्षण कर सकती है। जिस तरह सुशील मोदी सहित बीजेपी के तमामत बड़े नेता उन्हें पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कहकर संबोधित कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि बाबा बागेश्वर के जरिए बीजेपी बिहार की सवर्ण जनता को संबोधित करना चाहती है। पटना के सियासी गलियारों में यह भी चर्चा है कि इस पूरे कार्यक्रम के पीछे भूमिहारों का दिमाग है। इसके अलावा बाबा के दरबार में सर्वजातीय भीड़ उमड़ रही है और बाबा खुद को हनुमान का उपासक बताते हैं। यह भी बीजेपी की राजनीति के लिए काफी मुफीद है। बाबा बागेश्वर बीजेपी की घोषित-अघोषित लाइन के आसपास ही अपनी बात रखते हैं। हाल ही में उन्होंने बजरंग दल पर बैन का विरोध किया था।
बाबा बागेश्वर के बिहर आगमन से इस बात का भी टेस्ट हो जाएगा कि आरोजेडी उनपर किस हद तक हमलावर होती है। लालू और तेजस्वी की पार्टी तुलसीदास वाले विवाद से अप्रत्यक्ष रूप से हिंदू धर्म के सबसे बड़े प्रतीक पुरुष श्रीराम के जीवनीकार पर हमला कर चुकी है। इससे आगे अगर राजनीति ध्रुवीकरण की तरफ बढ़ती है तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। गौर करने वाली बात यह भी है कि आरजेडी ने भी अपने तीखे तेवर मंद कर दिए हैं।