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विश्व दिव्यांग दिवस विशेष : दिव्यांगो के लिए एक प्रेरणा है शशि निर्मलकर

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सुधीर “आज़ाद” तम्बोली
एक दशक से दिव्यांग विद्यार्थियों के जीवन को दिशा देने का कर रही कार्य
“दिव्यांग होने के बावजूद यदि जुनून व हौसला हो तो दिव्यांगता को भी प्रेरणा में बदला जा सकता है जिससे स्वयं के साथ अन्य दिव्यांग का जीवन संवर सकता है और यही साबित कर रही है छत्तीसगढ़ प्रदेश की एक समर्पित समाजसेवी युवती जो करीब एक दशक से दिव्यांगों के लिए निस्वार्थ निःशुल्क कार्य कर रही है। कोरोना काल के दौरान भी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद संस्था को सफलता पूर्वक आगे बढ़ाने में डटे रही जिसके फलस्वरूप संस्था के दो दिव्यांग बच्चों ने एवरेस्ट बेस कैंप में भी तिरंगा लहराया है।”
आज अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए कार्य कर रही एक ऐसे शख्सियत के बारे में पढ़िये जिससे लोगो को सीखना चाहिए कि हम समाज के लिए क्या कर सकते है ।
सुश्री शशि निर्मलकर दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए कार्यरत संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन में सचिव है। संस्था के द्वारा दिव्यांग आवासीय विद्यालय छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के रुद्री में संचालित है जहां वर्तमान में 46 विद्यार्थी शिक्षा दीक्षा ग्रहण कर रहे है। सुश्री शशि निर्मलकर स्वयं दिव्यांग है इसलिए दिव्यांगों की मनोदशा, दिव्यांगों की समस्या और उनकी जरूरत को बहुत बेहतर समझती है इसलिए ही उनके संस्था के बच्चों ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को साबित किया है।
सुश्री शशि निर्मलकर का जन्म धमतरी जिले के ग्राम भुसरेंगा में हुआ है। पिता श्री अरुण कुमार निर्मलकर परिवारिक समाजिक पेशे से जीवन यापन करते है व माता जी श्रीमती प्रेमिन निर्मलकर ग्रहणी है। सुश्री शशि 4 भाई बहनों में तीसरे नम्बर की है। सुश्री शशि ने अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्राम भुसरेंगा में पूरी की जिसके पश्चात उच्च शिक्षा कुरूद में ग्रहण किया और पॉलिटेक्निक की शिक्षा छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पूरी की, शशि बताती है कि शिक्षा के लिए उनके परिवार ने पूरा सहयोग किया। पढ़ाई होने के बाद जिला कार्यालय में उनकी नौकरी दैनिक वेतन भोगी में हो गई और एक सामाजिक संस्था में उनकी नियुक्ति हुई थी जो दिव्यांगजनो के लिए कार्यरत थी।
सुश्री शशि बताती है कि उस संस्था में जुड़कर कार्य करने के दौरान उनको लगा कि दिव्यांगों के लिए और बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है और हम बहुत कुछ कर सकते है।
उसी दौरान संस्था को संभालने वाली लक्ष्मी सोनी दीदी के साथ परिचय के बाद दिव्यांगों के लिए और कुछ सार्थक करने को लेकर चर्चा होती थी पर उस संस्था में काम करते वह संभव नही लगा जो हम वाकई दिव्यांग लोगों के लिए करना चाह रहे थे क्योंकि उस संस्था में रहकर हम लोग वह सब नहीं कर पा रहे थे जो दिव्यांग विद्यार्थियों के जीवन में बड़ा बदलाव ला सके क्योंकि दूसरे के अधीनस्थ रहकर काम करना थोड़ा मुश्किल था क्योंकि उस संस्था के प्रमुख हमें जितना बोलते थे हमको उतना ही करना होता था। एक वक्त के बाद लक्ष्मी दीदी से जो विचार विमर्श होता था उसको साकार रूप देने का निर्णय लिया तब लक्ष्मी सोनी दीदी के साथ मिलकर और अन्य लोगो को अपने साथ जोड़कर हमने एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन की शुरुआत की फिर 2016 में ग्राम डांडेसरा के एक पुराने भवन में संस्था के आवासीय विद्यालय संस्था की शुरुआत की,उन शुरुआती दिनों में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन मेहनत रंग लाई फिर धीरे-धीरे हमें बहुत से लोगों का सहयोग मिलना शुरू हुआ फिर हम लोगो ने आसपास के गांवों में से दिव्यांग बच्चो की जानकारी जुटानी शुरू की और अपने आवासीय विद्यालय में रहकर पढ़ने सीखने की व्यवस्था को प्रचारित किया जिसके बाद दिव्यांग बच्चो की संख्या विद्यालय में बढ़ते गया। दिव्यांग बच्चो की रुचि अनुसार खेल कूद, गायन, नृत्य व अन्य प्रतिभाओं को तराशने व मंच देने का हमने मन में ठान कर रखा था जो काम हमने सोचा था उसमें हम लोग सफल होते गये।सुश्री शशि भरपूर आत्मविश्वास से कहती है कि यदि सभी दिव्यांग बच्चो को उनकी रुचि और उनके क्षमता अनुसार कार्य के लिए प्रेरित करें, उन्हें तैयार करें, सुविधाएं उपलब्ध कराये और बेहतर प्रशिक्षण दिया जाये तो वह हर क्षेत्र में सफलता अवश्य अर्जित कर सकते है।
सुश्री शशि निर्मलकर के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाली श्रीमती लक्ष्मी विकास सोनी कहती है कि आज हमारे संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन के बच्चे शशि से प्रेरित होकर बहुत सारी उपलब्धियों को हासिल किए,अपने परिवार, गांव, जिले प्रदेश व देश को गौरवान्वित कर रहे है। हमारे संस्था एक्ज़ेक्ट फाउंडेशन के बच्चे देश प्रदेश में ही नहीं विश्व में भी अपना परचम लहरा चुके हैं इसके पीछे शशि निर्मलकर की समर्पण भावना है जो एक मिसाल है। शशि सभी लोगों को एक संदेश देना चाहती है की दिव्यागंता कोई कमजोरी नहीं है,कोई भी व्यक्ति दिव्यांग शरीर से होता है बस नाकि मन से और अगर कोई भी व्यक्ति यदि ठान ले और जी जान लगाकर प्रयत्न करें तो कुछ भी कर सकता है।इसका जीता जागता उदाहरण हमारी साथी शशि निर्मलकर स्वयं है, सलाम है उसके साहस को जिसके सकारात्मक सोच से हमारी संस्था के बच्चों को उपलब्धियां मिल रही है और वह अपने भविष्य को संवारने के लिए लगे हुए है। शशि निर्मलकर दिव्यांग लोगो के लिए एक प्रेरणा है जो दिव्यांगों के जीवन को संवारने में लगी है।