मथुरा। मथुरा जिले के जैंत थाना क्षेत्र में नाबालिग से दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में अपर सत्र व विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट विपिन कुमार के न्यायालय ने शुक्रवार दोषी को मृत्यु दंड दिया। आरोप पत्र दाखिल होने के 26 दिन के अंदर न्यायालय ने ये निर्णय सुनाया। दोषी पर 45 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया गया है। घटना के 57 दिन बाद ही ये निर्णय आ गया।
13 अक्टूबर को हुई थी वारदात
इस केस की सरकार की ओर से पैरवी कर रहीं स्पेशल डीजीसी पाक्सो कोर्ट अलका उपमन्यु ने बताया कि पीड़िता की मां ने थाना जैंत पर रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि इसी वर्ष 13 अक्टूबर को की शाम गांव निवासी सतीश (30) उनकी 10 वर्षीय बेटी को घुमाने के बहाने ले गया। बेटी की दुष्कर्म के बाद हत्या कर शव को पीएमवी पालीटेक्निक कालेज के पास जंगल में फेंक दिया। पुलिस ने अगले दिन आरोपित को जेल भेज दिया। 14 नवंबर को पुलिस ने सतीश के विरुद्ध आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया। सुनवाई अपर सत्र व विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट विपिन कुमार के न्यायालय में हुई। कोर्ट ने मुकदमे में गवाही और साक्ष्यों के आधार पर अभियुक्त को दोषी माना।
फांसी पर तब तक लटकाया जाए जब तक मृत्यु न हो जाए
दोष सिद्ध होने के बाद शुक्रवार को सतीश को मृत्युदंड दिया। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि सतीश को फांसी के फंदे पर तब तक लटकाया जाए, जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए। न्यायालय ने ये भी कहा है कि दंड का आदेश, तब तक निष्पादित नहीं किया जा सकेगा, जब तक उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पुष्टि न कर दी जाए। अल्का उपमन्यु ने बताया कि निर्णय की प्रति उच्च न्यायालय इलाहाबाद को मृत्युदंड की पुष्टि के लिए भेजी जाएगी। दोषी द्वारा दिए जाने वाले अर्थदंड में 80 प्रतिशत धनराशि मृतका के माता-पिता को दी जाएगी। पीड़िता की मां और पिता ने कहा कि इतनी जल्दी हमें न्याय मिला है, उसके लिए हम सभी का आभार प्रकट करते हैं। अभियुक्त के वकील योगेश तिवारी ने कहा कि अभियुक्त ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया था,इसलिए यह सजा हुई है। हम हाईकोर्ट में आगे की कार्रवाई के बारे में विचार कर रहे हैं।
बेटी की हत्या के बाद खाना भी नहीं उतरता था गले
शुक्रवार को दस वर्ष की बेटी की दुष्कर्म के बाद हत्या के आरोपित सतीश को न्यायालय ने फांसी की सजा सुनाई, तो न्यायालय परिसर में मौजूद उसके माता-पिता की आंखों से खुशी के आंसू छलक उठे। बोले, हमें बिल्कुल यकीन नहीं था, लेकिन इतनी जल्दी न्यायालय निर्णय देगा। जब बेटी की हत्या हुई, आज तक ठीक से खाना गले के नहीं उतरा। अब कलेजे को ठंडक मिली है। जिस वक्त सतीश को फांसी की सजा सुनाई गई, उस वक्त पीड़िता के माता-पिता कोर्ट परिसर में ही मौजूद थे। दो दिन पहले सतीश को न्यायालय ने दोषी माना था और सजा पर निर्णय सुरक्षित रख लिया था। ऐसे में ये तय था कि उसे सजा मिलेगी, लेकिन कितनी, इसे लेकर माता-पिता भी संशय में थे। दोपहर करीब 12 बजे जैसे ही न्यायालय ने फांसी की सजा सुनाई, पीड़िता की मां कोर्ट परिसर के बाहर बिलखने लगी।
बार-बार बेटी का चेहरा घूम रहा सामने
बेटी का चेहरा बार-बार उसकी आंखों के सामने घूमने लगा। पिता उन्हें ढांढस बंधाते और फिर रो पड़ते। बोले, हमें बिल्कुल यकीन नहीं था कि इतनी जल्दी निर्णय होगा। लेकिन सबकी मेहनत रंग लाई और इसका निर्णय हो गया। अब हमारे कलेजे को ठंडक मिलेगी और हमारी बेटी की आत्मा को शांति।
जुर्म स्वीकारना बना मजबूत आधार-बनाए गए थे बीस गवाह
दुष्कर्म के बाद बहच्ची की हत्या का निर्णय न्यायालय पहुंचने के बाद महज 26 दिन में निर्णय आ गया। पुलिस ने पूरे मामले में बीस गवाह बनाए थे, इसमें मुख्य दस गवाहों की न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। इनकी गवाही के साथ ही दोषी सतीश का जुर्म स्वीकारना भी सजा का मजबूत आधार बन गया। इस मामले में हर दिन सुनवाई की गई। करीब 12 तारीखें न्यायालय में हुईं।
20 गवाह बनाए गए
वादी के अधिवक्ता अनवर हुसैन ने बताया कि पुलिस ने इस मामले में 20 गवाह बनाए थे। इनमें से 10 लोगों की गवाही अदालत में हुई। जिन 10 लोगों की गवाही अदालत में हुई उनमें बच्ची के माता-पिता, तहरीर लिखने वाला, हेड कांस्टेबल कमल सिंह, पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक डा. स्वतंत्र सक्सेना, डा. ललित, महिला सिपाही पूनम, अभियुक्त के दो पड़ोसी और अंत में जैंत थाना प्रभारी निरीक्षक अरुण पंवार के बयान अदालत में दर्ज हुए।
अनवर हुसैन ने बताया कि अभियुक्त ने लोअर मजिस्ट्रेट के सामने दिए कलमबंद बयानों में अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था। यही फांसी की सजा के लिए सबसे मजबूत आधार बना, जिसे अदालत ने दुर्लभतम अपराध की श्रेणी में मानते हुए अभियुक्त को प्राण निकलने तक फांसी पर लटकाए रखने के आदेश दिए हैं।