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अपने से जिस दिन ऊपर उठ जाएंगे जीवन में मिठास आ जाएगी : मैथिलीशरण भाईजी

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रायपुर। जिस दिन अपने से ऊपर उठ जाएंगे जीवन में मिठास आ जाएगी, लेकिन दुनिया के लोग अपने में ही बैठे है, हम बलवान है, हम श्रेष्ठ है, हम धन वाले है। खारे जल की तरह घिरे हुए जीवन से जिस दिन देह का अभिमान हटकर भगवान की चरणों से जुड़ जाएगा उस दिन मिठास ही मिठास है।
मैक कॉलेज आडिटोरियम समता कॉलोनी में श्रीराम कथा समापन दिवस पर स्वामी मैथिलीशरण भाईजी ने बताया कि जब संपूर्ण रुप से अपने आप में परिपक्व नहीं हो जाएंगे, अपनी दृष्टि से सामने वाली की दृष्टि को नहीं पहचानेगे तो उसकी मति को कैसे जानोगे। ठीक वैसे ही जैसे कनज्यूमर की आवश्यकता और उसकी आर्थिक स्थिति को नहीं समझेंगे, सामान कैसे बेचेंगे, आपका प्रोडक्शन सफल नहीं हो पाएगा।
बुद्धि का जो खारापन है उसके कारण उसकी मिठास को नहीं समझ पाते। दूसरों की तुलना में हमेशा अपनी श्रेष्ठता दिखाई पड़ रही है। देहाभिमान से भरे जीवन के खारेपन को कैसे निकाले ताकि जीवन में सुमति आ सके। समुद्र भी भगवान की ही रचना है उसका पानी खारा है लेकिन यही पानी जब वाष्प बनकर ऊपर उठता है और मेघ के रुप में बरसता है तो मिठास आ जाती है। खारेपन को पचाने की क्षमता साधु में ही है। हम अपने में ही बैठे है जिस दिन इससे ऊपर उठ जाएंगे तो जीवन में मिठास ही मिठास है।
भाईजी ने कहा कि मनुष्य हर दिन इसी जुमले में लगे रहता है कि हमने ये किया, वो किया, इतना कार्य किया। कार्योंं के दिन भूल जाएंगे उस दिन भगवान के दर्शन हो जाएंगे। जीवन में अपने को देखिए हम तो केवल दूसरों को दिखाने के लिए करते है इसलिए मति सुमति नहीं बनती। अपना पुरुषार्थ छोड़ा और प्रभु की कृपा मिल गई। हम जिससे मांगते है, आशा करते है पता चलता है कि वह हमसे भी बड़ा भिखारी है। जिस दिन स्वार्थ और परमार्थ भगवान का हो जाता है उस दिन किसी के पास जाकर मांगने की जरुरत नहीं पड़ती है। उसने नहीं कर दिखाया, वह हम कर दिखाएंगे यह परिपक्वता नहीं अहंकार है। हमारी खुशी दूसरे को न मिल जाए, आज की यह सबसे बड़ी बीमारी है, जिसने भगवान को धारित कर लिया, राम की चरणों में एक बार जुड़ गया तो सब कुछ अद्वितीय हो जाएगा, अमृत बरसेगा।
भगवान हृदय में आ गए तो राग-द्वेष सब बाहर निकल जाएगा। दूसरों के पुण्य को नष्ट कर अपने पुण्य को पाने की लालसा-कल्पना में लगे रहते है। भगवान के लिए जो कल्पना करते है वह भावार्थ है और संसार के लिए करते हैं वही कल्पना है। आपका अपना चित्र क्या है? जो उल्टे मार्ग से जा रहे है उन्हें लगता है कि सीधे मार्ग से जा रहे है। आज लोग घरों में भगवान की जगह बाबाओं के चित्र टांग रहे है। धन्य है ऐसे लोग और ऐसे बाबा। जो भगवान से मिलाने की सच्ची शिक्षा और मार्ग बताए वही गुरु हैं। सत्संग में आए श्रोता की प्रशंसा करना संत का धर्म भी है और कर्तव्य भी, यह जान ले कि मति और सुमति की अंतिम कक्षा आनंदमय है। पंचकोषो से ऊपर उठकर भगवान की शरणागति प्राप्त करें।