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जिसकी मति भगवान को स्वीकार ले वही हरि कृपा और हरि इच्छा है : मैथिलीशरण जी

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रायपुर। कथा में जाना एक प्रकार का सत्संग हैं। इसका तात्पर्य ऐसे व्यक्ति का साथ मिल जाना जिससे जीवन में सत्संग आ जाता है। जो चित्त में आनंद ला देता है। जो मन की कामना पूरी करे वह हमारा व्यावसायिक स्वरूप है और जिसमें माया का प्रवेश न हो वह सत्संग है। यहां जड़ता नहीं होती,चैतन्य को देखता है। जो-जो आपने चाहा वह मिल गया और जब सब चला जाए उसके बाद जो बचे वही सत्संगी है। व्यक्ति की जीवन एक धारा है जिसमें हरि इच्छा व हरि कृपा बह रही है। भव का एक नाम संसार है और शिव का नाम भी भव है। भव में,वैभव में पराभव में भी जो शिव को देखता है,जो मूल में शिव को देखे। मतलब व्यक्ति में स्वरूप का ज्ञान करा दिया जाए वही सत्संग है।
रामकिंकर विचार मिशन रायपुर द्वारा महाराजा अग्रसेन कॉलेज आॅडिटोरियम में आयोजित रामकिंकर प्रवचन माला में श्री मैथिलीशरण जी महाराज (भाईजी) ने बताया कि जो भगवान को स्वीकार कर ले वही मति है बाकी सब कुमति है। जो प्रेम में अनुबंध करता है बहुत ही घातक होता है और यहीं सत्संग की जगह कुसंग आ जाता है। जो भगवान के आचरण को स्वीकार कर लेती है वही मति सुमति होती है। संसारी व्यक्ति अपना प्रतिबिंब अपने रूप में देखता है और जो प्रतिबिंब में भी राम को देखता है वही सत्संगी है। जिसकी मति भगवान को स्वीकार ले वही हरि कृपा और हरि इच्छा है।
बरसाती पानी लेकर आने वाली नदियों का मूल से कोई आधार नहीं होता है,समुद्र से जिसका संबंध होगा वही मूल है। भक्ति भाव क्या है? भादों की नदी की तरह कितनों के जीवन में बह रही है। लेकिन जो प्रतिकूल में था वही उद्गम में था और वही मूल से जुड़ा हुआ व्यक्ति है। मूल में ही सत्संग है। रावण ने बड़े बड़े अनुष्ठान किया लेकिन सत्संग कभी नहीं किया। अच्छी बातें भी जब बुरी लगे तो जान लें सर्वनाश तय है।
सारा जीवन राममय हो जायेगा यदि आपका मूल,उस मूल से जुड़ा रहेगा। जीवन का प्रमाण क्या है ..? जितनी शक्ति संचित हो जाती है मतलब जितनी खर्च की आपको जरूरत पड़ती है तब वह मिल जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि संचय करोगे-इक्टठा करोगे तभी तो खर्च करोगे। किसी को आपकी जरूरत नहीं तो मैसेज क्यों आयेगा। हम किसी की जरूरत बने या लोग हमे चाहें. इसके लिए पहले ह्दय में प्रवेश करो,घर में प्रवेश वैसे ही मिल जायेगा। उसके जीवन में असत्य आयेगा ही नहीं जिसने सत्संग किया है.तो जीवन में अशांत कैसे होगा? जीवन में एकाग्रता व संतुलन जरूरी है। हम कौन हैं यही विस्मृत हो गया,जबकि सुख का मूल आधार ही वही है। साधारण व्यक्ति को भी इसकी अनुभूति हो गई तो जीवन में परमानंद है।
रामनवमी-जन्माष्टमी कब मनायें यह ही तय नहीं कर पा रहे हैं
आज तीज त्यौहार की तिथि को लेकर भी संशय की स्थिति बनने लगी है। भाईजी ने इस पर अपनी बातें रखते हुए कहा कि लोग यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि कब मनायें रामनवमी और कब मनायें जन्माष्टमी.? हम तो कहते हैं रोज रामनवमी और रोज जन्माष्टमी हो तो आनंद ही आनंद है। घबराते वे लोग हैं जो चाहते हैं कि पूजा का उत्साह व आयोजन केवल एक ही दिन होना चाहिए।