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पन्ना के रूद्रसिंह किसी हीरे से कम नहीं, 51 लाख ‘राम-राम’ शब्दों से लिखी रामचरितमानस

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जीवन से हार चुके सिंह का राम नाम से हुआ ऊर्जा का संचार
रामचरितमानस के अलावा हनुमान चालीसा और गीतावली सहित लिखे 10 ग्रंथ
नई दिल्ली।
मध्य प्रदेश का पन्ना जिला हीरे की खदान के लिए जाना जाता है। पन्ना निवासी रूद्रसिंह यादव को अगर हम उस खदान का हीरा कहें तो यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि उन्होंने रामचरितमानस, हनुमान चालीसा एवं गीतावली सहित 11 ग्रंथों को सिर्फ ‘राम-राम’ शब्दों से लिखा है। रामचरितमानस लिखने में ‘राम-राम’ शब्दों का 51 लाख बार प्रयोग किया है।
रूद्रसिंह यादव का मानना है कि आस्था का मूल ‘अहसास और विश्वास’ है। जिस क्षण व्यक्ति को परमेश्वर के प्रति आस्था का भान हो जाता है, वही उसका सांसारिक जीवन में दूसरा जन्म होता है। जिसे जीवन के नश्वर चरित्र का आभास होने पर भगवान राम के नाम की धुनी रमाने की इच्छा जागृत होती है। इसी राम नाम के लेखन से उनके जीवन में पुन: ऊर्जा का संचार हुआ है। आज वह अपने विश्वास के बल पर अन्य लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं।
रूद्रसिंह ने बताया कि उन्हें राम नाम की याद तब आई, जब वह अपने जीवन से निराश हो चुके थे। एक चोट से रीढ़ की हड्डी के फ्रैक्चर होने और इसके काफी इलाज के बाद भी ठीक होने की उम्मीद जब खो दी थी, उस समय उनके मन में भगवान राम के प्रति भक्ति भाव जागृत हुआ।उन्होंने वर्ष 1990 से रामचरितमानस को राम-राम शब्दों से पिरोना शुरू किया और देखते ही देखते उन्होंने चार वर्षों में रामचरितमानस के सातों कांड को 1700 पृष्ठों में कलमबद्ध कर लिया।
सिंह द्वारा लिखी रामचरितमानस की विशेषता यह है कि मानस की सभी चौपाई और दोहे ‘राम-राम’ शब्दों से लिखे गए हैं। एक पृष्ठ में लगभग तीन हजार बार राम-राम शब्दों का प्रयोग किया गया है। इस हिसाब से लगभग 51 लाख राम-राम शब्दों से यह रामचरितमानस तैयार हुई है, जिसमें 300 चित्रों को भी राम-राम शब्दों से ही बनाया गया है।
बकौल रूद्रसिंह, इस दौरान जैसे-जैसे आस्था को बल मिलता गया, शारीरिक पीड़ा भी छूमंतर होती गयी और फिर तन-मन दोनों पूर्णत: स्वस्थ हो गये। इसके बाद सिंह ने भगवान राम और कृष्ण के चित्रों को उनके नामों से सजाने की मुहिम शुरू की।
रामचरितमानस लिखने की प्रेरणा के सवाल पर रूद्रसिंह बताते हैं कि वह पेशे से शिक्षक थे और 1998 में उन्हें राष्ट्रीय अवार्ड मिला। वर्ष 2011 में सेवानिवृत्त होने के बाद वे गरीब बच्चों को मानस और राम-कृष्ण की कथा सिखाने में समय व्यतीत करने लगे। इस दौरान एक घटना में चोट लगने से वह बिस्तर तक सीमित हो गए। तब उन्हें लगा कि अब उनका बचना मुश्किल है तो क्यों न इस जीवन को राम के प्रति समर्पित किया जाए। तभी से उन्होंने राम और कृष्ण लेखन का कार्य शुरू किया और आज भी वो क्रम जारी है।
रूद्रसिंह ने बताया, “शुरू में मेरे जहन में रामचरितमानस की चौपाई ‘मंत्र महा मुनि विषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअंक भाल के।’ और ‘राम नाम अवलंबन एकू…।’ थी। इन्हीं चौपाइयों के जरिए भगवान शिव काशी के मुक्ति दाता बन गए तो क्यों न मैं भी इन्हीं को प्रेरणा मानकर राम नाम में लीन हो जाऊं। संसार में राम नाम से मुर्दा इंसान भी जाग उठता है, मैं तो सिर्फ उम्मीद से हारा था। राम नाम से शक्ति मिली और मैं लग गया राम की इच्छा पूर्ति में।”
अपनी कृतियों के बारे में रूद्रसिंह बताते हैं कि उन्होंने अब तक रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, वैराग्य संजीवनी और गीतावली समेत 11 ग्रंथ लिखे हैं। इसके अलावा श्रीमद्भगवद्गीता के नौ अध्याय भी पूरा कर चुके हैं। इस दिशा में काफी लोग उनकी मदद को आगे आए। इसमें मुख्यरूप से साहित्यकार संदीप कुमार और डालमिया सीमेंट के प्रमुख मृदु हरि डालमिया का नाम शामिल है, जिन्होंने मेरी कोशिश को आर्थिक संबल दिया। एक चित्र के लिए 200 रुपये का खर्च आता है और इन चित्रों की संख्या करीब छह हजार थी। ऐसे में हरि डालमिया के दो लाख रुपये की मदद ने मुझे हौंसला दिया।
भविष्य की योजनाओं को लेकर सिंह कहते हैं कि हमें आज के बारे में सोचना चाहिए आने वाला कल तो राम की इच्छा से ही चलेगा, फिरभी उनका प्रयास हजारों की संख्या में चित्र बनाने का है जिसे बाद में वेबसाइट पर डाला जाएगा। इस लेखन का परिवार पर पड़े प्रभावों के बारे में सिंह ने कहा, “आज मेरा पूरा परिवार राममय श्रद्धा में डूबा हुआ है। मेरी एक पोती आर्टिस्ट है और दूसरी कथावाचक। दोनों दामाद भी आस्था के इसी कार्य से जुड़े हैं। मैं सपरिवार भगवद्भक्ति के प्रचार कार्य में पूरी शिद्दत से लगा हूं। इस दौरान कई कार्यक्रम नि:शुल्क करने की भी अपनी योजना है।”