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चंदन जात्रा पूजा विधान के साथ बस्तर गोंचा पर्व का हुआ आगाज

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जगदलपुर। बस्तर गोंचा पर्व आज से चंदन जात्रा पूजा विधान के साथ प्रराम्भ हो चुका है, यह अनवरत 21 जुलाई देवशयनी एकादशी पूजा विधान के साथ इसका परायण होगा। आज चंदन जात्रा पूजा विधान में शताब्दियों (612 वर्षों) से चली आ रही परंपरानुसार भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बलभद्र स्वामी के विग्रहों की पूजा अर्चना के बाद श्रीमंदिर के गर्भगृह के आसन से नीचे उतार गया। इसके साथ ही ग्राम आसना निवासी महेंद्र जोशी के परिवार में स्थापित भगवान शालिग्राम को श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में लाकर स्थापित करने के बाद इंद्रावती नदी की पूजा अर्चना के साथ के नदी के जल को लाकर भगवान शालिग्राम एवं जगन्नाथ स्वामी, बहन सुभद्रा और बलभद्र स्वामी के विग्राहों को चंदन जात्रा पूजा विधान के तहत विधि विधान के साथ 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों के द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संपन्न कराया गया। इसके साथ ही भगवान जगन्नाथ स्वामी, बहन सुभद्रा और बलभद्र स्वामी का श्रीमंदिर में 15 दिनों तक दर्शन नही हो पायेगा।
360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के जगदलपुर क्षेत्रिय अध्यक्ष विवेक पांड़े ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंदन जात्रा पूजा विधान के पश्चात भगवान जगन्नाथ का 15 दिवसीय अनसर काल की अवधि होती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ होते हैं तथा भगवान के अस्वथता के हालात में दर्शन वर्जित होते हैं। भगवान जगन्नाथ के स्वास्थ्य लाभ के लिए औषधियुक्त भोग का अर्पण कर भगवान जगन्नाथ की सेवा 15 दिनों के अनसर काल में 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के सेवादारों एवं पंडितों के द्वारा किया जायेगा। औषधियुक्त भोग के अर्पण के पश्चात इसे श्रधालुओं में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। विशेष औषधियुक्त प्रसाद का पूण्य लाभ श्रद्धालु अनसर काल •े दौरान जगन्नाथ मंदिर में पहुचकर प्राप्त कर सकते हैं लेकिन दर्शन वर्जित होगा।
उन्होने बताया कि दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भगवान जगन्नाथ अपने श्रद्धालुओं के वर्ष भर स्वस्थता के आशीष हेतु स्वयं अस्वस्थ होकर सभी के स्वास्थ्य के लिए औषधियुक्त भोग ग्रहण कर औषधियुक्त प्रसाद उपलब्ध करवाते हैं। जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु स्वरूप जगन्नाथ स्वामी विश्व के समस्त श्रद्धालुओं के स्वस्थता के लिए आयुर्वेद का औषधियुक्त प्रसाद वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मौसम के परिवर्तन के साथ स्वास्थ्य के लिए प्रसाद के बहाने लाभदायी सिद्ध होता है, अर्थात आस्था के प्रसादरूपी औषधि की उपलब्धता हमारी प्राचीन आयुर्वेद की व्यवस्था के आधार को प्रासांगिक बना देता है। ऐसा महात्म्य है, औसाधियुक्त भोग एवं औषधियुक्त प्रसाद का जिसमे आद्यात्मिक-वैज्ञानिक आयाम इसमें समाहित है।
उन्होने बताया कि भगवान जगन्नाथ के अनसर काल मे दर्शन वर्जित होने के संबंध में जानने के लिए अनसर का साब्दिक अर्थ एवं इसके भावार्थ को समझना होगा। अनसर का साब्दिक अर्थ अन+अवसर = अनवसर होता है। अनवसर का भावार्थ उचित अवसर का नही होना कहलाता है। अर्थात भगवान जगन्नाथ के 15 दिवसीय अनसर काल मे भगवान जगन्नाथ भक्तो के स्वास्थ्य के लिए स्वयं बीमार पड़ते है, बीमार होने पर भगवान जगन्नाथ अस्त-व्यस्त अवस्था मे रहते है, ऐसी अवस्था मे जगत के पालनकर्ता के दर्शन को शास्त्रो व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दोषपूर्ण माना गया है। इसीलिए भगवान जगन्नाथ के दर्शन 15 दिनों तक अनसर काल के दौरान वर्जित होता है।