कटनी
नगर निगम के पूर्व जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों ने नगर सुधार न्यास के लिए बनाई गई 25 योजनाओं में साठगांठ करके किस तरह खेल खेला उसके प्रमाण अब सामने आने लगे हैं। इसे मिली भगत कहें या फिर लापरवाही 1985 से 1995 के बीच कई भू स्वामियों की जमीन नगर निगम द्वारा मुआवजा देकर अधिपथ्य में ली गई। जिनमें से कई जमीनों का आंशिक भुगतान बचा था। उनमें अधिकारियों एवं कर्मचारी और रसूखदारों की मिली भगत से बड़ा खेल हो गया। अब इस मामले की शिकायत मुख्यमंत्री तक पहुंच चुकी है। मामला उजागर होने के बाद अफसर की कार्यवाही के कारण सफेद पोशाें के पसीने छूटने लगे हैं।
यह है मामला
नगर सुधार न्यास वर्तमान समय में जिसे नगर पालिक निगम के तौर पर जाना जाता है इसके द्वारा पूर्व में आम जनता को रियायती दरों पर आवासीय भूखंड उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से योजना क्रमांक 1 से लेकर 25 तक भूखंड चिन्हित किए गए। आज इन योजनाओं का बुरा हाल है। अधिकांश योजनाओं में नगर निगम के अफसर एवं भू माफियाओं तथा पूर्व जन प्रतिनिधियों ने साठगांठ करके एक बड़ा खेल खेला है। बता दें मध्य प्रदेश शासन के पत्र दिनांक 1 अगस्त 1994 के द्वारा नगर सुधार न्यास कटनी का विलय नगर पालिक कटनी में हो गया। विलय के बाद सभी अस्तियों एवं दायित्व नगर निगम की हो गई। ग्राम मुड़वारा, टिकरिया, झिंझरी, अमकूही आदि में बनी योजनाओं में निजी व्यक्तियों की भूमि को चिन्हित कर धारा 71 के अंतर्गत अनिवार्य भू अर्जन किया गया। कई भू स्वामियों को मुआवजे का भुगतान भी 1985 से 1995 के बीच किया गया। जिनका कुछ आंशिक भुगतान बचा था, उनमें अधिकारियों, कर्मचारियों एवं पूर्व जनप्रतिनिधियों ने एक बड़ा खेल खेला।
यह है योजनाओं का हाल
योजना क्रमांक एक बड़ी रोड में धारा 46 का प्रकाशन हुआ न्याय परिषद प्रस्ताव क्रमांक 199, 5 मई 1988 अनुसार योजना छोड़ी गई यहां पर मुआवजे का ही भुगतान नहीं हुआ। योजना क्रमांक 2 जबलपुर रोड शासकीय व निजी भूमि पर बनाई गई थी। भूमि का आधिपत्य प्राप्त करते हुए मुआवजे का भुगतान किया गया था। 140 भूखंडों का आवंटन किया गया। धारा 68 का प्रकाशन 1989 में हुआ। भूमि नगर निगम के नाम करने तहसीलदार के यहां आवेदन हुआ लेकिन निरस्त कर दिया गया। स्थानीय न्यायालय से निर्णय निगम के विरुद्ध पारित होने के बाद मामला उच्च न्यायालय में याचिका क्रमांक 684/21 चला। 140 लोग अपने जमीन पानी के लिए वर्षों से भटक रहे हैं। योजना क्रमांक 3 में 50% विकास कार्य होने हैं। मामला एसडीएम कोर्ट में विचाराधीन है। भू स्वामियों को 33 लाख रुपए मुआवजा दिए जाने वर्ष 2004-5 में प्रकरण चला। 33 लाख रुपए देने आदेश भी हुआ। यहां पर राजस्व अभिलेखों में भूमि नगर निगम में दर्ज नहीं है।
योजना 12 से 16 को देखें
योजना 12 में धारा 46 का प्रकाशन हुआ लेकिन भूमि का अधिग्रहण नहीं किया गया, ना ही विकास कार्य कराए गए। अभिलेखों में भी भूमि दर्ज नहीं हो पाई और इसे भी व्यक्तिगत में शामिल कर लिया गया। योजना क्रमांक 13 में अनिवार्य भू अर्जन कराया गया लेकिन नाम दर्ज नहीं हो पाया। अब मामला न्यायालय में लंबित है। योजना क्रमांक 14 को पूर्ण बताया गया है। जहां पर विकास कार्य कराए जाने का भी उल्लेख है। लेकिन यहां की जमीन की खरीद फरोख्त हो गई। योजना क्रमांक 15 में अनिवार्य अर्जन के साथ भूमि स्वामियों को आशिक मुआवजा दिया गया। भूमि निगम के नाम दर्ज नहीं है। राजस्व कार्यालय एसडीएम कार्यालय में खारिज किए गए नामांतरण आदेश के विरुद्ध नगर निगम ने अपील दायर की है। इसी प्रकार योजना क्रमांक 16 में धारा 46 का प्रकाशन तो हुआ लेकिन विधिवत अर्जन ना होने के कारण कोई कार्य नहीं हुए।
इन योजनाओं का भी बुरा हाल
योजना क्रमांक 17 शासकीय व निजी भूमि पर बनाई गई। शासकीय भूमि 2.12 हेक्टेयर शेष निजी भूमि 3.523 पर बनाई गई। शासकीय भूमि पर विकास कर भूखंडों का आवंटन किया गया। निजी भूमि पर विकास करना उचित नहीं बताया गया। हाई कोर्ट में दायर याचिका 13369/ 09 निर्णय दिनांक 11 दिसंबर 2015 में अधिग्रहण की कार्यवाही को लेप्स माना गया। शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। योजना क्रमांक 18 में पूरे में वृक्षारोपण किया जाना बताया गया है। योजना क्रमांक 19 में दुकान व कार्यालय का निर्माण करना बताया गया है। योजना क्रमांक 20 में ट्रांसपोर्ट नगर है जो अब तक शिफ्ट नहीं हो पाया है।
यहां भी खेल
योजना क्रमांक 21 में धारा 46 का प्रकाशन हुआ लेकिन भूमि अधिग्रहण नहीं हुआ। ना ही विकास कार्य हुए। मुआवजा भी नहीं दिया गया। इसे भी 2020 का आदेश बताकर व्यपिगत करने की कार्यवाही की गई। योजना 22 में धारा 46 का प्रकाशन हुआ। यहां भी ना तो विकास कार्य हुए और ना ही मुआवजा दिया गया और व्यपिगत करने की कार्यवाही कर दी गई। योजना 23, 24 और 25 में भी योजना 22 की तरह स्थिति है।
सीएम तक पहुंची शिकायत
योजनाओं की जमीन पर जमकर हुई गड़बड़ी खरीद फरोख्त के मामले को लेकर पूर्व निगम अध्यक्ष व वर्तमान पार्षद संतोष शुक्ला ने सीएम से शिकायत करते हुए मामले की गंभीरता से जांच कराने की मांग की है। मांग रखी है कि कलेक्टर की निगरानी में उच्च स्तरीय जांच दल गठित कर आधुनिक पद्धति रोवर मशीन से सीमांकन कराया जाए। जमीन को सुरक्षित कराया जाए। योजनाओं में आवंटित प्लाट धारकों को उनके प्लाटों का भौतिक कब्जा दिलाया जाए। योजनाओं की भूमियों को खुर्द करने एवं कराए जाने में दोषियों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही की जाए।