नई दिल्ली। कोरोना की वजह से पिछले साल 7.7 करोड़ लोग गरीबी के गर्त में गिर गए। सारी दुनिया पर इसका असर पड़ा है लेकिन सबसे ज्यादा मार उन देशों पर पड़ी जो विकासशील या गरीब हैं। वो भारी ब्याज वाले कर्ज के कारण इसके दुष्प्रभावों से उबर नहीं पा रहे हैं। धनी देश कम ब्याज पर कर्ज लेकर गिरावट से उबर सकते हैं। लेकिन गरीब देशों के लिए इस संकट से उबरना मुश्किल होगा, क्योंकि उन्हें उंची ब्याज दर पर ऋण मिला था। उन्होंने अपना कर्ज चुकाने में ही अरबों डॉलर खर्च किए।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में 81.2 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में रह रहे थे। ऐसे लोग रोजाना 1.90 डॉलर या उससे भी कम राशि कमा रहे थे। 2021 तक ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 88.9 करोड़ हो गई। यह संख्या यूक्रेन में जारी युद्ध से पड़ने वाले प्रभाव से पहले की है। रिपोर्ट कहती है कि विकासशील देश अपने राजस्व का 14 फीसदी हिस्सा ऋण पर लगने वाला ब्याज को चुकाने में खर्च करते हैं, जबकि अमीर मुल्कों के मामले में यह आंकड़ा महज 3.5 फीसदी है।
यूएन की उप महासचिव अमीना मोहम्मद के अनुसार जलवायु परिवर्तन और कोविड स्थिति को और बदतर बना रहा है। यूक्रेन के युद्ध का वैश्विक प्रभाव भी है। यूक्रेन युद्ध की वजह से 1.7 अरब लोगों को खाने, ईंधन और उर्वरकों की उंची कीमतें चुकानी पड़ रही हैं। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि इसके चलते 2023 के अंत तक 20 प्रतिशत विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति जीडीपी 2019 से पहले के स्तर पर नहीं लौटेगी।
ओमीक्रोन पर नजर रखे हुए है डब्ल्यूएचओ
उधर, डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि वह कोरोना वायरस के ओमीक्रोन वेरिएंट के स्वरूपों पर नजर रख रहा है। इनमें प्रतिरक्षा प्रणाली से बच निकलने की क्षमता के साथ अतिरिक्त म्यूटेशंस होते हैं। बीते दिन एक अपडेट में कहा गया है कि ओमीक्रोन दुनियाभर में संक्रमण का कारण बना हुआ है। वो बीए.1, बी.2, बीए.3 के साथ-साथ अब बीए.4 और बीए.5 समेत ओमीक्रोन के तमाम वेरिएंट्स पर नजर रख रहा है। इसमें बीए.1/बीए.2 का मिलाजुला एक्सई वेरिएंट भी शामिल है।