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इस्तीफा नहीं देंगे राष्ट्रपति गोटबाया ?

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कोलंबो। देश भर में विरोध प्रदर्शनों के बावजूद श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे। श्रीलंका में बड़ी संख्या में लोग विरोध प्रदर्शन कर राष्ट्रपति गोटबाया से आर्थिक संकट से निपटने में विफल रहने के लिए पद छोड़ने का आह्वान कर रहे हैं। श्रीलंका वर्तमान में इतिहास के सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। ईंधन, रसोई गैस के लिए लंबी लाइन, आवश्यक वस्तुओं की कम आपूर्ति और घंटों बिजली कटौती से जनता महीनों से परेशान है। मंत्री जॉन्सटन फर्नांडो ने बुधवार को संसद को बताया कि गोटाबाया राजपक्षे इस्तीफा नहीं देंगे। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, श्रीलंकाई संसद में विपक्ष के आक्रोश के बीच संसद में मुख्य सरकारी व्हिप और राजमार्ग मंत्री ने कहा, “आपको याद दिला दूं कि 6.9 मिलियन लोगों ने राष्ट्रपति के लिए मतदान किया था।”
फर्नांडो ने कहा, “एक सरकार के रूप में, हम स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि राष्ट्रपति किसी भी परिस्थिति में इस्तीफा नहीं देंगे। हम इसका सामना करेंगे।” द्वीप राष्ट्र एक गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। श्रीलंका में ईंधन की कमी, 13 घंटे की बिजली कटौती और बढ़ती मुद्रास्फीति ने लोगों को बुरी तरह प्रभावित किया हुआ है। यह कहते हुए कि शासक के कुप्रबंधन ने संकट को बदतर बना दिया है, देश भर के लोगों ने सड़क पर उतरकर अपने राष्ट्रपति से राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने का आह्वान किया है। श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में एक अप्रैल को लगाया गया आपातकाल मंगलवार देर रात हटा दिया। मंगलवार रात को जारी राजपत्रित अधिसूचना में राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने आपातकालीन नियम अध्यादेश को वापस ले लिया है, जिसके तहत सुरक्षा बलों को देश में किसी भी गड़बड़ी को रोकने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए थे।
श्रीलंका में भी हो सकता है पाक जैसा ड्रामा, सत्ता पर कमजोर हुई राजपक्षे की पकड़
राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के नेतृत्व वाले श्रीलंका के सत्तारूढ़ गठबंधन की मुश्किलें मंगलवार को तब और बढ़ गईं जब नव-नियुक्त वित्त मंत्री अली साबरी ने इस्तीफा दे दिया, वहीं दर्जनों सासंदों ने भी सत्तारूढ़ गठबंधन का साथ छोड़ दिया। डेली न्यूज ने पूर्व राज्य मंत्री निमल लांजा के हवाले से बताया कि इस बीच मंगलवार को सरकार का समर्थन करने वाले 50 से अधिक सांसदों के एक समूह ने तब तक संसद में एक स्वतंत्र समूह के रूप में कार्य करने का फैसला किया जब तक कि सरकार इस्तीफा नहीं देती और सत्ताधारी शक्तियों को एक सक्षम समूह को नहीं सौंपती। पूर्व मंत्री विमल वीरावांसा ने भी घोषणा की कि 10 दलों की सरकार में शामिल सांसद सरकार छोड़ देंगे और स्वतंत्र रहेंगे।
सत्तारूढ़ गठबंधन ने 2020 के आम चुनावों में 150 सीटें जीती थीं और विपक्ष के सदस्यों के पाला बदलने से उसकी संख्या में और बढ़ोतरी हुई थी हालांकि इनमें से 41 सांसदों ने समर्थन वापस ले लिया है। इन 41 सासंदों के नामों की घोषणा उनके दलों के नेताओं ने संसद में की। वे अब स्वतंत्र सदस्य बन गए हैं, जिससे राजपक्षे के खेमे में सासंदों की संख्या 113 से कम हो गई है जो 225 सदस्यीय सदन में बहुमत के लिये जरूरी है। सरकार ने हालांकि दावा किया कि उसके पास साधारण बहुमत है। सरकार के बजट पर हुए अंतिम वोट में सत्ताधारी गठबंधन को 225 में से 157 वोट मिले थे। एसएलपीपी सांसद रोहित अबेगुनावर्धना ने हालांकि कहा कि सरकार 138 सांसदों के समर्थन के साथ पूरी तरह से मजबूत है।
बता दें कि पाकिस्तान में भी कमोबेश इसी तरह की स्थिति है। आर्थिक नीतियों की वजह से महंगाई को कंट्रोल करने में विफल रहने वाले इमरान खान विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव से पहले ही सत्ता से हट चुके हैं और एक बड़ा राजनीतिक ड्रामा जारी है। श्रीलंका में भी ऐसी ही स्थिति बन रही है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की पार्टी का दावा है कि उनके पास बहुमत है लेकिन विपक्ष इससे इनकार कर रहा है। हालांकि देखना होगा कि गोटबाया कब तक विपक्ष को साधे रख सकते हैं।