तमिलनाडु। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई दौरान साफ कहा है कि गर्भावस्था के दौरान अगर कोई महिला अपने ससुराल वालों के बजाय अपने माता-पिता के साथ रहती है तो इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता है। साथ ही पति ऐसे केस को ‘क्रूरता’ की श्रेणी में नहीं डाल सकता। यह बात सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की बेंच ने दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह बहुत स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता की पत्नी गर्भवती थी। इसलिए वह अपने माता-पिता के घर गई। यह स्वाभाविक था। याचिकाकर्ता की पत्नी ने भी साफ किया है कि उसकी गर्भावस्था और बच्चे का जन्म बड़ी मुश्किल से हुआ था, ऐसे में अगर उसने बच्चे के जन्म के बाद कुछ और समय माता-पिता के साथ रहने का फैसला किया तो इससे पति को परेशान नहीं होना चाहिए। केवल इस आधार पर तलाक के लिए मामला अदालत में कैसे ले जाया जा सकता है?
पति ने थोड़ा भी इंतजार क्यों नहीं किया
पत्नी को ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है है कि मैं गर्भवस्था के कारण माता-पिता के पास रही थी, लेकिन पति ने थोड़ा इंतजार नहीं किया। उसने सोचा भी नहीं था कि वह एक बच्चे का पिता बन गया है। इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि उसकी पत्नी के पिता का निधन हो गया और उसने तलाक के लिए अदालत में याचिका दायर की।
आखिरकार हो गया तलाक
इस सबसे बावजूद इस दंपत्ति के बीच को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी क्योंकि दोनों का वैवाहिक रिश्ता अब मर चुका है। दोनों 22 साल से ज्यादा समय से अलग रह रहे हैं और पति ने दूसरी शादी भी कर ली थी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि बेहतर होगा कि इस रिश्ते को खत्म माना जाता है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को पूर्व पत्नी को 20 लाख रुपए का मुआवजा देने के लिए कहा।
तमिलनाडु का है पूरा मामला
मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। ये मामला तमिलनाडु का है, जिसमें याचिकाकर्ता ने 1999 में शादी कर ली। इसके कुछ समय बाद ही उसकी पत्नी गर्भवती होने पर अपने माता-पिता के पास चली गई। वहां उनके बच्चे का जन्म अगस्त 2000 में हुआ। फरवरी 2001 में उनके पिता का देहांत हो गया। इस वजह से वह कुछ और समय के लिए अपने ससुराल नहीं लौट पाईं। इसी आधार पर पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की। साथ ही अक्टूबर 2001 में दूसरी शादी की।