लखनऊ। उत्तर प्रदेश चुनाव में पांच चरण बीतने के बाद राजनीतिक दलों के दावे अपनी जगह हैं, लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से नाराज दलित मतदाताओं का रुख चुनावी रोमांच बनाए हुए है। जमीन पर बसपा को मुख्य लड़ाई से बाहर देख रहे बसपा के समर्थक रहे मतदाता बड़ी संख्या में इस बार कहीं सपा और कहीं भाजपा की ओर रुख करते दिख रहे हैं। गैर जाटव दलित मतदाताओं में सेंधमारी की कोशिश भाजपा और सपा दोनो खेमे की ओर से की गई है। जाटव मतदाताओं को साधने के लिए भी कई तरह के जतन किए गए हैं। खासतौर पर जहां सपा के जाटव उम्मीदवार हैं, वहां उम्मीदें काफी ज्यादा हैं। जानकार दलित मतों के रुख को लेकर विभाजित नजर आ रहे हैं।
यूपी में दलित आबादी करीब 21-22 फीसदी है। पॉलिसी थिंक टैंक चेज इंडिया के मानस का कहना है कि भाजपा ने जो मुफ्त अनाज बांटा है, उसका फायदा इस वर्ग को ही ज्यादा मिला है। क्योंकि यही सबसे ज्यादा गरीब तबका है। इसलिए बसपा से अलग जाने वाले दलित वोट का काफी हिस्सा भाजपा ले जा सकती है। पहले भी वह इन मतों में सेंधमारी कर चुकी है। अचूक पॉलिसी थिंक टैंक की अंजना का कहना है गैर-जाटव दलित भाजपा के बजाय कई सीटों पर सपा के साथ गए हैं। साथ ही जिन सीटों पर सपा ने दलित या जाटव उम्मीदवार उतारे हैं, वहां सपा को इसका फायदा मिल सकता है।
जानकारों का मानना है कि जाटवों के बाद सबसे बड़ी दलित आबादी पासियों की है, उनमें सपा के प्रति रुझान देखा जा रहा है। हालांकि, जाटव वोट जो मायावती का पक्का समर्थक माना जाता है उसे लेकर बसपा अभी भी काफी आश्वस्त है। फिलहाल इस बात पर जानकार एकमत हैं कि दलित विभाजित हैं। जाटव के अतिरिक्त अन्य दलित जातियां जैसे पासी, वाल्मिकि, खटिक, कोइरी, गोंड और अन्य भी बहुत जातियां हैं जिनकी संख्या काफी अच्छी है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन समूहों में सेंध लगाई थी। इस बार सपा ने इस पर काम किया है। सपा ने बहुत से दलित उम्मीदवारों को उन्होंने सामान्य सीटों पर भी उतारा है।
यूपी में कुल 86 सीट आरक्षित श्रेणी की हैं, जिनमें 84 अनुसूचित जातियों और दो अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। सपा ने काफी अच्छी संख्या में दलित उम्मीदवार दिए हैं। भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी सहित अन्य दल इन आरक्षित सीटों के लिए अपनी अलग-अलग रणनीति को लेकर सियासी मैदान में उतरे हैं।