नई दिल्ली
मंगल ग्रह के बर्फीले हिस्सों में एलियन जीवन हो सकता है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मंगल ग्रह के आइसकैप यानी बर्फ की चादरों के नीचे जीवन होना चाहिए. साइंटिस्ट ये मानते हैं कि वहां पर फोटोसिंथेसिस जैसी प्रक्रिया हो रही होगी. लेकिन सूखे बर्फ की चादर के नीचे. एक नई स्टडी में यह खुलासा हुआ है.
फोटोसिंथेसिस वह प्रक्रिया है, जिसमें पौधे, एल्गी और साइनोबैक्टीरिया केमिकल एनर्जी पैदा करते हैं. इसके लिए चाहिए पानी और सूरज की रोशनी. धरती के वायुमंडल पर सबसे ज्यादा ऑक्सीजन यहीं से पैदा होता है. लेकिन एक नई स्टडी के मुताबिक मंगल ग्रह पर ध्रुवों के पास बर्फ की मोटी चादर बिछी है. जिसके नीचे जीवन हो सकता है.
वैज्ञानिक ये मानते हैं कि सूरज के रेडिएशन से बचने के लिए बर्फ की चादरों के नीचे जीवन फोटोसिंथेसिस के जरिए या उसके जैसी किसी प्रक्रिया से पनप रहा होगा. जिसे रेडिएटिव हैबिटेबल जोन्स (Radiative Habitable Zones) कहते हैं. फोटोसिंथेसिस को क्या चाहिए. सटीक मात्रा में रोशनी. इससे यह नहीं पता चलता कि मंगल पर जीवन है.
कई स्पेसक्राफ्ट्स के डेटा के आधार पर अनुमान
मंगल पर जीवन होने की उम्मीद है. वैज्ञानिक नासा के मार्स ऑर्बिटर, परर्सिवरेंस रोवर, मार्स सैंपल रिटर्न और एक्सोमार्स जैसे स्पेसक्राफ्ट्स से आए डेटा का एनालिसिस कर रहे थे. वैज्ञानिकों की ये हाइपोथिसिस इन स्पेसक्राफ्ट्स से मिले डेटा के आधार पर बनाई गई है. इसकी पुष्टि तो मंगल ग्रह पर जाकर बर्फ के नीचे जांच करने से ही होगी.
नासा जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के शोधकर्ता औऱ फेलो आदित्य खुल्लर ने कहा कि हम ये नहीं कह रहे हैं कि हमने मंगल पर जीवन खोज लिया है. लेकिन हमारा मानना है कि मंगल ग्रह के धूल वाले सूखे बर्फीले चादरों के नीचे जीवन होने की संभावना है. भविष्य में इसकी जांच हो सकती है.
धरती VS मंगल… कहां क्या है अंतर?
धरती और मंगल ग्रह हैबिटेबल जोन में आता है. यानी सूरज से इनकी दूरी इतनी है कि यहां पर जीवन अच्छे से पनप सकता है. पृथ्वी इस बात का सबूत है. तापमान इतना सही रहता है कि ग्रह पर पानी भी हो सकता है. धरती पर तो है. तरल पानी का समंदर. मंगल ग्रह सूखा है. ज्यादातर हिस्सा लाल और ड्राई.
मंगल ग्रह पर गए ज्यादातर स्पेसक्राफ्ट जैसे- क्यूरियोसिटी, परर्सिवरेंस रोवर ने वहां सूखी नदियों के बेसिन, झीलें, नदियों का शाखाएं देखी हैं. हो सकता है कि करोड़ों साल पहले कभी वहां पानी रहा हो. इस बात की पुष्टि तो मंगल के चारों तरफ उड़ान भरने वाले मार्स रीकॉन्सेंस ऑर्बिटर ने भी की है. लेकिन मंगल ग्रह ने अपना पानी खो दिया.
मंगल ग्रह पर अल्ट्रावायलेट रेडिएशन बहुत ज्यादा है. जो कि जीवन के लिए खतरनाक है. ऐसे में वहां पर जटिल कोशिकाओं वाले जीवन की संभावना कम है. आदित्य ने बताया कि धरती की तरह मंगल ग्रह पर ओजोन जैसा कोई सुरक्षा कवच नहीं है. इसलिए वहां पर 30 फीसदी ज्यादा रेडिएशन होता है.
कितनी बर्फ है मंगल ग्रह पर?
मंगल ग्रह पर बर्फ की चादर बहुत है लेकिन प्रदूषित है. डेटा एनालिसिस से पता चलता है कि मंगल ग्रह पर 2 से 15 इंच तक बर्फ की चादर है. जिसमें 0.1 फीसदी धूल भी मिली है. यानी मार्शियन डस्ट. प्रदूषण मिक्स होने की वजह से बर्फ चादर की मोटाई कहीं-कहीं 7 से 10 फीट भी हो सकती है. ऐसे में इसके नीचे जीवन पनपने की संभावना बढ़ जाती है. क्योंकि यहां पर सूरज के रेडिएशन का असर कम हो जाता है.