रायपुर। कोसा एक सदाबहार फेब्रिक है, जो न सिर्फ महिलाओं की पहली पसंद है बल्कि पुरूषों में भी इसका आकर्षण कम नहीं है। कोसा जैसी गरिमा, लावण्य और खुबसूरती किसी और कपड़े में नहीं है। प्राकृतिक और पर्यावरण मित्र होने के कारण यह अन्य कृत्रिम वस्त्रों से बेहतर है। राजधानी रायपुर के तुलसी बाराडेरा में 23 से 25 फरवरी तक लगने वाले राष्ट्रीय कृषि मेले में रेशम विभाग द्वारा डिजाईनर कोसा वस्त्रों की विशाल प्रदर्शनी लगाई जाएगी। यहां कोसा वस्त्रों की बिक्री भी की जाएगी।
छत्तीसगढ़ वन बाहुल्य क्षेत्र है तथा यहां कोसा के उत्पादन योग्य वृक्ष साल, साजा और अन्य वृक्षों की बहुतायत होने के कारण बहुतायत पर कोसा सिल्क के कोकुन मिल जाते हैं। जिन्हें मुख्यत: ग्रामीणों तथा आदिवासियों द्वारा पेड़ से उतार कर संग्रहण किया जाता है। इसके अतिरिक्त शासन द्वारा सेरीकल्चर विभाग के माध्यम से कोसे की खेती भी की जा रही है। बुनकरों को स्थानीय संग्राहकों तथा सेरीकल्चर विभाग के माध्यम से कोसा उपलब्ध होता है। जिसका धागाकरण और रंगाई करने के पश्चात् वस्त्रों की बुनाई करते है।
छत्तीसगढ़ के कोसा के वस्त्र विश्व प्रसिद्ध है, विशेषकर रायगढ़ और चांपा की साडिय़ां अपनी गुणवत्ता और विशिष्ट डिजाईन के कारण जाने जाते हैं। यहां के उत्पादित वस्त्रों की मांग भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनियां में है। कोसा वस्त्र बहुत मजबूत और लंबे समय तक चलने वाला वस्त्र है। प्रत्येक धुलाई के पश्चात् इसका चमक बढ़ जाती है। कोसा वस्त्र शरीर के अनुकूल होते हैं, ये गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में पहने जा सकते है। इनको पहनने से स्कीन को कोई एलर्जी नहीं होती, जिनकी त्वचा संवेदनशील होती है, वह भा धारण कर सकते हैं। कोसा वस्त्र उत्पादन से किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता, अपितु पर्यावरण का संरक्षण होता है। इसके अतिरिक्त यह निम्न आय वर्ग के लोगों, इनके संग्राहकों, किसानों व हाथकरघा बुनकरों के आय का प्रमुख स्त्रोत भी है।
राष्ट्रीय कृषि मेला में रायगढ़ एवं चांपा के कोसा वस्त्र, कोसा साड़ी, कोसा धोती, कोसा शॉल, कोसा गमच्छा, कोसा स्ट्रोल, कोसा दुपट्टा, कोसा रेडिमेट शर्ट, कोसा कुर्ता, कोसा ब्लाउज इत्यादि के साथ-साथ कॉटन के रेडिमेड शर्ट, कुर्ता, बैग इत्यादि का प्रदर्शन तथा विक्रय हाथकरघा संघ द्वारा किया जाएगा।