पटना
लोकसभा चुनावा 2024 में बिहार के चितौड़गढ़ कहे जाने वाले औरगाबाद संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार सुशील सिंह आठवीं बार किस्मत आजमा रहे हैं वहीं उनके सामने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) उम्मीदवार पूर्व विधायक अभय कुशवाहा चुनौती बनकर खड़े हैं। सूर्यनगरी औरंगाबाद संसदीय सीट से सुशील कुमार सिंह ने सात बार अपनी किस्मत आजमायी है। सुशील कुमार सिंह ने इस सीट से चार बार चुनाव जीत चुके हैं, वहीं उन्हें तीन बार हार का सामना भी करना पड़ा है।पूर्व सांसद रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह के पुत्र सुशील कुमार सिंह ने पहली बार वर्ष 1996 औरंगाबाद सीट पर समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में जनता दल के वीरेन्द्र नारायाण सिंह ने जीत दर्ज की। कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह दूसरे नंबर पर जबकि समता पार्टी उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1998 में सुशील कुमार सिंह ने समता पार्टी के टिकट पर इस सीट पर जीत दर्ज की।
वर्ष 1999 में सुशील कुमार सिंह ने औरंगाबाद संसदीय सीट पर जनता दल यूनाईटड (जदयू) के टिकट पर चुनाव लड़ा। जदयू उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह को स्व. सत्येन्द्र नारायण सिंह की पुत्रवधु कांग्रस उम्मीदवार श्यामा सिंह ने पराजित कर दिया। वर्ष 2004 में सुशील कुमार सिंह ने चौथी बार इस सीट से चुनाव लड़ा, हालांकि इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।भारतीय पुलिस सेवा से सेवानिवृत स्व. सत्येन्द्र नारायण सिंह के पुत्र कांग्रस प्रत्याशी निखिल कुमार ने जदयू प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह को पराजित कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के ‘हाथ’ को जनता का ‘साथ’ नहीं मिला। कांग्रेस इसके बाद कभी औरंगाबाद की सत्ता पर काबिज नहीं हुयी। इसके बाद सुशील कुमार ने वर्ष 2009 में पांचवी बार चुनाव लड़ा और जदयू के टिकट पर जीत हासिल की। सुशील कुमार सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) उम्मीदवार शकील अहमद खान को शिकस्त दी। कांग्रेस प्रत्याशी निखिल कुमार तीसरे नंबर पर रहे।
2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) चुनाव मैदान में थी तब जदयू इससे अलग चुनाव लड़ रही थी।सुशील सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह ने छठी बार औरंगाबाद से चुनाव लड़ा और कांग्रेस उम्मीदवार निखिल कुमार को पराजित किया। जदयू उम्मीदवार बागी कुमार वर्मा तीसरे नंबर पर रहे। निखिल कुमार को लगातार दूसरी बार मात मिली।वर्ष 2014 में सुशील कुमार सिंह ने पहली बार भाजपा का ‘कमल’ यहां खिलाया। वर्ष 2019 में सुशील कुमार सिंह ने सातवीं बार चुनाव लड़ा। उन्होंने एक बार फिर भाजपा के टिकट पर ही जीत के करिश्मे को दोहराया।
सुशील कुमार सिंह औरंगाबाद सीट से आठवीं बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं, वहीं इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडी गठबंधन) में शामिल राजद ने टेकारी के पूर्व विधायक अभय कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है। अभय कुशवाहा ने हाल ही में जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के गया जिला अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर राजद की सदस्यता ग्रहण की है। अभय कुशवाहा पहली बार लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
औरंगाबाद संसदीय सीट को ‘बिहार का चित्तौड़गढ़’ या ‘राजपूतों का गढ़’ कहा जाता है।औरंगाबाद सीट पर बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री अनुग्रह नारायण सिंह के पुत्र और छोटे साहब के नाम से मशहूर सत्येंद्र नारायण सिंह का दबदबा रहा है। औरंगाबाद सीट से सत्येंद्र नारायण सिंह पांच बार, उनकी पुत्रवधु श्यामा सिंह और पुत्र निखिल कुमार ने एक-एक बार जीत हासिल की है।वर्ष 1957 में औरंगाबाद संसदीय सीट अस्तित्व में आयी।सत्येन्द्र नारायण सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ृा और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी उम्मीदवार राम स्वरूप सिंह को पराजित किया और सांसद बने। इससे पूर्व वर्ष 1952 में हुये पहले आम चुनाव में सत्येन्द्र नारायण सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर गया (पश्चिम) लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंचे। औरंगाबाद जिला पहले इसी संसदीय क्षेत्र का हिस्सा था। वर्ष 1962 के चुनाव में स्वतंत्र पार्टी की उम्मीदवार ललिता राज लक्ष्मी ने कांग्रेस प्रत्याशी रमेश प्रसाद सिंह को मात दी। वर्ष 1967 में कांग्रेस के मुद्रिका सिंह ने इस सीट पर जीत दर्ज की। इसके बाद 1971 में हुए चुनाव में जब कांग्रेस दो भागों में बंट गई, तब सत्येंद्र नारायण ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन-एनसीओ)में जाने का फैसला किया। उन्होंने एनसीओ उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और कांग्रेस के प्रत्याशी मुद्रिका सिन्हा को हराकर जीत हासिल की।
वर्ष 1977 में सत्येन्द्र नारायण सिंह भारतीय लोक दल (बीएलडी), 1980 में जनता पार्टी (जेएनपी) और 1984 में कांग्रेस की टिकट पर जीत दर्ज कर सांसद बने। वर्ष 1984 सत्येन्द्र नारायण सिंह ने पूर्व सांसद और जनता पार्टी उम्मीदवार शंकर दयाल सिंह को पराजित किया था।सत्येंद्र नारायाण सिंह ने यह साबित कर दिया था कि चाहे वह किसी भी दल से चुनाव लड़े उन्हें औरंगाबाद से हराना किसी भी पार्टी के लिए इतना आसान नहीं है। सत्येंद्र नारायण सिंह 11 मार्च 1989 से 06 दिसंबर 1989 तक बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर श्यामा सिंह ने चुनाव लड़ा हालांकि उन्हें जनता दल के रामनरेश सिंह ने पराजित किया। वर्ष 1991 में सत्येन्द्र नारायण सिंह ने फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा जहां उन्हें जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़ रहे राम नरेश सिंह से हार का सामना करना पड़ा। सत्येन्द्र नारायण सिंह को पहली बार औरंगाबाद सीट पर हार का सामना करना पड़ा। 1996 में सत्येन्द्र नारायण सिंह कांग्रेस की टिकट पर चुनावी रणभूमि मैदान में उतरे, लेकिन जनता दल के वीरेंद्र कुमार सिंह से हार गए। इस हार के बाद उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। वर्ष 1989, 1991 और 1996 में जनता दल ने औरंगाबाद सीट पर राज किया और तीनों लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा।कांग्रेस के लिए लगातार तीन बार हारना एक बड़ा झटका था।
नक्सल प्रभावित औरंगाबाद संसदीय सीट पर लोगों की निगाहें लगी हुई हैं। औरंगाबाद सीट पर हुये चुनाव में अधिकतर बार सत्येन्द्र नारायाण सिंह और रामनरेश सिंह के परिवार का कब्जा रहा है। दोनों परिवार के लोगों को आम जनता विजयी भव का वरदान देती रही है। भाजपा के निवर्तमान सांसद सुशील को चार बार सफलता मिली, जबकि तीन बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार उनका मुकाबला राजद के अभय कुशवाहा से है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह का मुकाबला हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के उपेन्द्र प्रसाद से हुआ था। सुशील कुमार सिह ने हम के उपेन्द्र प्रसाद को हराकर चौथी बार जीत दर्ज की थी।वर्ष 2019 लोकसभा के चुनाव में हम उम्मीदवार के फेवर में नारा प्रचलित हुआ था चित्तौड़गढ़ को ध्वस्त करना है…। इस नारे ने समस्त राजपूत जाति को भाजपा के उम्मीदवार सुशील सिंह की तरफ मोड़ दिया। और इसका फायद भाजपा उम्मीदवार सुशील सिंह को हुआ। इस बार महागठबंधन का नारा बदल गया: चित्तौड़गढ़ के सम्मान में।
कांग्रेस की परंपरागत सीट रही औरंगाबाद से इस बार नागालैंड और केरल के पूर्व राज्यपाल और पूर्व सांसद निखिल कुमार को प्रत्याशी नहीं बनाए जाने को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में मायूसी है। औरंगाबाद संसदीय सीट पर छोटे साहब सत्येन्द्र नारायाण सिंह और उनके परिवार के लोगों ने अरसे तक राज किया और वे चितौड़गढ़ के सिंहासन औरंगाबाद संसदीय सीट पर पर विराजमान हुये। हाल के वर्षो में सियासी समीकरण कुछ ऐसे बने की,पिता सत्येन्द्र नारायाण सिंह की विरासत को आगे ले जा रहे निखिल कुमार के चितौड़गढ़ का किला फतेह कर उसके सिंहासन पर विराजमान होने के बात तो दूर उन्हें दो बार से इस सीट पर कांग्रेस के टिकट से भी मरहूम होना पड़ा है।
भाजपा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जनहित के कार्यों, मोदी की गारंटी और क्षेत्र के विकास के लिए किए गए कार्यों को चुनाव प्रचार में जोरशोर से उठा रहे हैं। वहीं, इंडी गठबंधन के अभय कुशवाहा अपनी चुनावी सभाओं में महंगाई, बेरोजगारी और क्षेत्र के पिछड़ापन को लेकर भाजपा की आलोचना कर रहे हैं। औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र कुल छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। जिसमें तीन गया और तीन औरंगाबाद जिले में हैं। औरंगाबाद जिले में कुटुंबा, औरंगाबाद और रफीगंज जबकि गया गया जिले में गुरूआ इमामगंज और टिकारी विधानसभा क्षेत्र हैं।रफीगंज और गुरूआ विधानसभा क्षेत्र पर राजद का जबकि औरंगाबाद और कुटुंबा पर कांग्रेस का कब्जा है। वहीं, इमामगंज और टिकारी विधानसभा क्षेत्र में हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के विधायक हैं।
लोकसभा चुनाव 2023 में औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र से भाजपा, राजद और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) समेत नौ उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इस क्षेत्र में करीब 18 लाख 69 हजार मतदाता है।इनमें करीब नौ लाख 77 हजार पुरुष और आठ लाख 92 हजार महिला मतदाता शामिल हैं,जो 19 अप्रैल को इन नौ उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में लॉक कर देंगे। सुशील कुमार सिंह औरंगाबाद की सियासी पिच पर एक बार फिर से भाजपा का ‘कमल’ खिलाने की कोशिश में हैं, वहीं राजद उम्मीदवार अभय कुश्वाहा औरंगाबाद की सरजमीं पर अपनी पार्टी राजद का ‘लालटेन’ पहली बार रौशन करने की फिराक में हैं। देखना दिलचस्प होगा कि औरंगाबाद की आम जनता किसका राजतिलक कर उसे सम्राट बनाकर औरंगाबाद सीट के सिंहासन पर विराजमान करती है।