बिलासपुर
राजधानी के जग्गी हत्याकांड मामले में हुई सुनवाई के बाद हाईकोर्ट का निर्णय जारी होने से स्पष्ट हुआ है कि, याचिका खारिज होने के बाद तीन पुलिस अधिकारियों समेत छह लोगों की पांच साल की सजा कायम रहेगी, इन्हें जिला कोर्ट से पूर्व में 5 साल की सजा सुनाई गई थी। शेष सभी आरोपियों को आजीवन कारावास से दंडित किया गया था, उनकी अपील खारिज होने पर इनकी उम्रकैद की सजा बरकरार रहेगी।
गत 4 जून 2003 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष राम अवतार की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मामले में दो तत्कालीन सीएसपी और एक थाना प्रभारी समेत कुल 31 लोगों को अभियुक्त बनाया था। आरोपियों में बुल्टू पाठक और सुरेंद्र सिंह सरकारी गवाह बन गए थे। रायपुर के मौदहापारा थाने के तहत हुई इस वारदात को बाद में सीबीआई जांच के लिए सौंप दिया गया था। सीबीआई जांच के बाद चालान पर साक्ष्यों के साथ सत्र न्यायालय ने आरोपियों को अलग -अलग कारावास की सजा दी थी, जिसे आरोपियों ने निरस्त करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
आजीवन कारावास से दण्डित आरोपी-
शिवेंद्र सिंह परिहार, विनोद सिंह राठौर , राकेश कुमार, अशोक सिंह भदौरिया, रविन्द्र सिंह, नरसी शर्मा, सत्येन्द्र सिंह, विवेक सिंह, लाला भदौरिया, सुनील गुप्ता, अनिल पचौरी व हरीशचंद्र को आईपीसी की धारा 302 के तहत सेशन कोर्ट ने आजीवन कारावास कि सजा सुनाई थी। इन सबकी अपील हाईकोर्ट ने खारिज की है, इससे इन सबकी उम्रकैद की सजा कायम रहेगी।
5 साल की सजा प्राप्त आरोपी-
इस मामले में तत्कालीन पुलिस अधिकारियों राकेश चन्द्र त्रिवेदी, वीके पाण्डेय, अमरीक सिंह गिल को धारा 120 बी और आईपीसी 193 के तहत 5 साल की सजा दी गई थी। इसी तरह सूर्यकांत तिवारी, जामवंत, श्याम सुन्दर, विनोद सिंह, विश्वनाथ राजभर, अविनाश को आईपीसी 120 बी और धारा 193 में 5 साल और एक हजार जुमार्ने की सजा सुनाई गई थी। इन सबकी अपील रद्द होने से अब इनकी यही सजा यथावत रहेगी।