नोएडा: एक बुजुर्ग महिला के आसपास आप मुस्कुराते हुए बच्चे और लड़कियां देख रहे है। अंजिना जी की उम्र दादी जैसी हो गई है। लेकिन यहां मौजूद छोटा-बड़ा हर कोई उन्हें मां कहता है। क्योंकि अंजना जी ने इन सभी बच्चों को मां का प्यार दिया है। अंजिना जी दिल्ली से सटे यूपी के नोएडा सेक्टर-12 में ‘साई कृपा’ नाम से एक अनाथालय चलाती है। चाइल्ड सपोर्टर बनने का उनका सफर 38 साल पहले शुरू हुआ था। अपाहिज बच्चे को पीटते हुए देखा तो वह घर ले आई… अंजिना कहती है कि वह शुरू से ही यह काम करना चाहती थी। लेकिन घर में पिता की तबीयत ठीक नहीं थी। इसके लिए उन्होंने पढ़ाई के बाद नौकरी शुरू की। लेकिन फिर पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने मन का काम करने का फैसला किया। अंजिना को याद करते हुए वह कहती है कि वह अपने साथ जो पहला बच्चा लेकर आई थी वह भी अचानक लिया गया फैसला था। वह रास्ते में ही जा रही थी कि उसने देखा कि एक आदमी एक विकलांग बच्चे को मार रहा है। अंजिना ने यह देखा और बच्चे को लेकर उसके पास आई।
अंजना को अनाथों को अपने पास रखने का एक अलग ही शौक था। वह बताती हैं कि एक छोटी बच्ची जो अभी कुछ ही दिन की थी। उसकी हालत बहुत खराब थी और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टर ने कहा कि यह लड़की ज्यादा दिन जीवित नहीं रहेगी और अगर वह जीवित रही तो उसे कुछ विकलांगता हो जाएगी। कई लोगों ने अंजिना को इस बच्चे को गोद लेने से मना किया था।लेकिन वह नहीं मानी और उस बच्चे को ले आई। आज वह लड़की 27 साल की है और बिल्कुल ठीक है।
अंजना ने बच्चों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने बच्चों को बेहतरीन शिक्षा देने की कोशिश की और फिर उन्हें नौकरी भी दिलवाई। कहीं बच्चों की भी शादी हो गई। ऐसी ही एक अनाथ बेटी राधिका बचपन से यहां हैं। राधिका फिलहाल एक बड़े निजी विश्वविद्यालय से फूड टेक्नोलॉजी में ग्रेजुएशन कर रही है और उनका कहना है कि उनका सपना विदेश जाकर मास्टर डिग्री हासिल करने का है और मां ने इसकी व्यवस्था भी कर दी है। राधिका की तरह ही राजेंद्र सिंह 4 साल की उम्र में यहां आए थे। आज वह 39 साल के हो गए हैं। यहीं पर उन्होंने पढ़ाई में डिग्री हासिल की और फिर होटल मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया। राजेंद्र ने कई जगह नौकरी भी की है। लेकिन कोविड के बाद से वह पूरी तरह से इस अनाथालय की सेवा में लगे हुए है वह नए बच्चों को ट्रेनिंग देने का काम भी करता है। इस अनाथालय में कई बच्चे पढ़ने-लिखने में सक्षम हो गए है। लेकिन प्रगति की ओर बढ़ते इन बच्चों ने अब अंजीना राजगोपाल की तरह सोचने का फैसला किया है। ये बच्चे अब हमेशा जरूरतमंद बच्चों के लिए खड़े रहते है।