नई दिल्ली। भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने नई दिल्ली में मानवाधिकार दिवस समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार दिवस हमें इस पर चिंतन करने का अवसर प्रदान करता है कि मानव होने का क्या अर्थ है और मानव जाति की मूल गरिमा को बढ़ाने में हमारी क्या भूमिका है। हमारे अधिकार हमारी साझा जिम्मेदारी है।
राष्ट्रपति ने आगे कहा कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा उन अधिकारों और स्वतंत्रताओं की एक श्रृंखला की व्याख्या करती है, जिसका हर एक मानव हकदार है। ये अपरिहार्य अधिकार हैं, जो पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करते हैं कि हर एक व्यक्ति जातीयता, लिंग, राष्ट्रीयता, धर्म, भाषा और अन्य विभाजनकारी तत्वों से परे मानवता से जुड़ा हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि घोषणा (मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा) के साथ वैश्विक समुदाय ने बुनियादी मानवीय गरिमा को औपचारिक मान्यता दी है। हालांकि, सदियों से यह हमारी आध्यात्मिक परंपराओं का हिस्सा रहा है। राष्ट्रपति ने इसका उल्लेख किया कि इस साल के मानवाधिकार दिवस की विषयवस्तु समानता
है। उन्होंने बताया कि सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद- 1 में कहा गया है, सभी मानव स्वतंत्र जन्म लेते हैं और सम्मान व अधिकारों में समान होते हैं।
वहीं, गैर-भेदभाव मानव गरिमा के पूर्ण सम्मान के लिए पहली शर्त है, विश्व अनगिनत पूर्वधारणाओं के साथ घिरा हुआ है। दुर्भाग्यपूर्ण रूप से, वे व्यक्तियों की क्षमता को पूरी तरह हासिल करने में बाधा उत्पन्न करते हैं और इस तरह समग्र रूप से यह समाज के हित में नहीं हैं। मानवाधिकार दिवस हमारे लिए सामूहिक रूप से विचार करने और ऐसे पूर्वधारणाओं को दूर करने के तरीके खोजने का आदर्श अवसर है, जो केवल मानवता की प्रगति में बाधा उत्पन्न करते हैं।