बिलासपुर
एसईसीएल की गेवरा खदान को आज मौजूदा उत्पादन क्षमता 52.5 मिलियन टन से बढ़ाकर 70 मिलियन टन प्रति वर्ष करने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति मिल गयी है जिससे खदान के एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान बनने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
इस महत्वपूर्ण उपलब्धि में कोयला मंत्रालय की भूमिका बेहद अहम रही। मंत्रालय द्वारा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से लागातार समन्वय बनाकर रिकॉर्ड समय में गेवरा परियोजना को 70 मिलियन टन की पर्यावरण स्वीकृति दिलाने में मदद की जोकि राष्ट्र की ऊर्जा आकांक्षाओं की पूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान देगी। इस अवसर पर एसईसीएल सीएमडी प्रेम सागर मिश्रा ने एसईसीएल टीम को बधाई देते हुए कहा की कोयला मंत्रालय के मार्गदर्शन में कोल इंडिया एवं एसईसीएल टीम ने आज एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। हमारा सपना है कि गेवरा अत्याधुनिक खनन तकनीक से युक्त दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खदान बने और आज मिली यह स्वीकृति इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगी।
एसईसीएल प्रबंधन ने गेवरा खदान के लिए पर्यावरण स्वीकृति हासिल करने में सहयोग के लिए कोयला मंत्रालय को धन्यवाद दिया और कहा कि यह हमारे लिए एक ऐतिहासिक दिन है कि जल्द ही एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान एसईसीएल और छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित होगी। पर्यावर्णीय स्वीकृति प्रदान करने में सहयोग और त्वरित कार्रवाई के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के साथ-साथ केंद्र और राज्य की एजेंसियों और छत्तीसगढ़ सरकार का भी आभार व्यक्त किया।
गेवरा खदान एसईसीएल के मेगाप्रोजेक्ट्स में से एक है और पिछले साल वित्त वर्ष 22-23 में 52.5 मिलियन टन कोयला उत्पादन के साथ ही इसने देश की सबसे बड़ी कोयला खदान बनने का गौरव हासिल किया है। यह खदान लगभग 40 से अधिक वर्षों से देश की ऊर्जा सुरक्षा में अपना योगदान दे रही है। खदान की स्ट्राइक लंबाई लगभग 10 किलोमीटर और चौड़ाई 4 किलोमीटर है। खदान में सरफेस माइनर, रिपर माइनिंग के रूप में पर्यावरण-अनुकूल ब्लास्ट-रहित खनन तकनीक का प्रयोग किया जाता है। खदान में ओवरबर्डन हटाने के लिए 42 क्यू.मि. शोवेल और 240-टन डम्पर जैसी उच्चतम क्षमता वाली दुनिया की सबसे बड़ी एचईएमएम मशीनों का उपयोग किया जाता है। इसमें त्वरित और पर्यावरण-अनुकूल कोयला निकासी के लिए कन्वेयर बेल्ट, साइलो और रैपिड लोडिंग सिस्टम से सुसज्जित फर्स्ट-माइल कनेक्टिविटी भी है।