Home छत्तीसगढ़ गांव में ही मिला रोजगार, दिव्यांग रामनंदन अपना जीवन रहा संवार

गांव में ही मिला रोजगार, दिव्यांग रामनंदन अपना जीवन रहा संवार

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रायपुर। बारहवी पास होने के पश्चात रोजगार हासिल कर पाना दिव्यांग रामनंदन के लिए आसान नहीं था। रोजगार नहीं होने से न तो उसके पास आमदनी का कोई जरिया था और न ही स्वरोजगार के लिए इतने पैसे की वह कुछ धंधा कर सके। वह अपने गांव से शहर आकर काम भी नहीं कर सकता था, क्योंकि शहर में आकर काम करना उसके लिए एक बड़ी चुनौती से कम नहीं थी। एक दिन जब उन्हें मालूम हुआ कि मनरेगा से उन्हें योग्यता के अनुसार काम मिल सकता है तो दिव्यांग रामनंदन ने देरी नहीं की। उन्हें महात्मा गांधी नरेगा में मेट का काम मिला। अपने कार्यों को बखूबी अंजाम देने वाले रामनंदन रोजगार पाकर अपना घर चला पा रहा है।
सरगुजा जिले के अम्बिकापुर विकासखण्ड के ग्राम पंचायत चठिरमा निवासी रामनंदन पिता शिवप्रसाद उम्र 52 वर्ष ने बताया कि शहर आकर कुछ काम ढूंढना और शहर में ही रहकर काम कर पाना उसके लिए बहुत मुश्किल था। एक पैर से दिव्यांग होने की वजह से वह ज्यादा मेहनत वाला काम भी नहीं कर सकता है। वह लगातार काम के तालाश में था। इसी बीच जब उन्हें अपने ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक वीरसाय से मालूम हुआ कि मनरेगा अंतर्गत कार्यस्थलों पर 12 वीं तक शिक्षा होने के कारण मेट का कार्य मिल सकता है तो उन्होनें अपना नाम मेट पद के लिए दिया। मेट के रूप में काम मिल जाने के बाद रामनंदन रोजगार से जुड़ पाया। अब मनरेगा से मिलने वाली मजदूरी से वह अपने दो बच्चों की पढ़ाई एवं परिवार के भरण पोषण में खर्च उठा पाता है।
रामनंदन ने बताया कि मनरेगा से उन्हें अपने घर के पास ही कार्य मिला है। रोजगार गारंटी में 100 दिवस का कार्य करता है। उनकी बेरोजगारी को मनरेगा ने दूर किया। रोजगार सहायक वीरसाय बताते है कि ग्राम पंचायत के महात्मा गांधी नरेगा में चलने वाली सभी कार्यों में रामनंदन को प्राथमिकता से कार्य दिया जाता है और वह मेट के साथ-साथ मजदूरों को पानी पिलाने का भी कार्य करते हैं। कारोना काल से रामनंदन कोविड-19 से बचाव हेतु सभी मजदूरों को जागरूक -करते हुए हाथ धुलाने व हमेशा मास्क लगाए रहने की अपील ने दिव्यांग रामनंदन की अपनी अलग पहचान बनाई है वहीं कार्यस्थल पर अन्य मजदूरों के साथ भी वह लोकप्रिय है।