बिलासपुर। उच्च न्यायालय में पूर्व पुलिस अधीक्षक अशोक कुमार शर्मा ने याचिका प्रस्तुत कर बताया कि यचिकाकर्ता सब इंसपेक्टर से इंसपेक्टर पद पर 1 जून 2001 से पदोन्नति की पात्रता रखता था। लेकिन पुलिस विभाग के उच्च अधिकारियों ने उसे लघुशास्ती आरोपित कर पदोन्नति से वंचित कर दिया। जबकि लघुशास्ती आरोपित किये जाने पर पदोन्नति की पात्रता बनी रहती है। लेकिन पूर्व उच्च अधिकारियों ने दीर्घशास्ती मानकर प्रमोशन से वंचित कर दिया। फिर उच्च न्यायालय के आदेश से 23 मार्च 2007 को सब इंसपेक्टर से इस्पेक्टर पद पर पदोन्नति 1 जून 2001 से दी गई , लेकिन काम नहीं वेतन नहीं के आधार पर वेतन बढ़ोत्तरी नहीं की गई। जबकि यह गलती उच्च अधिकारियों की थी। अशोक कुमार शर्मा ने उच्च न्यायालय में अपने अधिवक्ता संदीप दुबे के माध्यम से याचिका दायर कर विभिन्न उच्चतम न्यायालय के न्याय दृष्टांतों को बताया कि उसे पुलिस विभाग ने जानबूझ कर दीर्घशास्ती किया है। राज्य सरकार के वकील ने अपने जवाब में कहा कि पुलिस के जारी जीओपी के अनुसार जिस अधिकारी के खिलाफ अपराधिक प्रकरण या विभागीय जांच से बरी हुआ हो उसे काम नही वेतन नहीं के सिद्धांत पर नोशनल पदोन्नति दी जाती है। इसलिये इन्हें पदोन्नति तो दी गई किंतु वित्तीय लाभ नही। उच्च न्यायालय में प्रकरण की अंतिम सुनवाई करते हुए न्यायाधीश संजय के अग्रवाल दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात् आदेश दिया कि विभिन्न उच्चतम न्यायालय के न्याय दृष्टांतो को देखने के पश्चात एवं पुलिस विभाग के जी. ओ.पी के अनुसार याचिकाकर्ता का प्रकरण ऐसा नहीं था कि उसके खिलाफ अपराधिक प्रकरण या विभागीय जांच हो, उसे सिर्फ लघुशास्ती दिया गया जो कि पदोन्नति पर बाधा नही है। अत: पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया जाता है कि याचिकाकर्ता के द्वारा संपूर्ण दस्तावेत के प्रस्तुत करने के पश्चात उस पर उचित निर्णय देकर 1 जून 2001 से वित्तिय लाभ दिया जाए।