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जीवात्मा को उसके कर्म के अनुसार ही दूसरा जीवन मिलता है: स्वामी परिवाज्रक

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रायपुर

सत्य की खोज के लिए वेदों की ओर लौटना पड़ेगा,सनातन धर्म का मूल वेद ही है और वेद सत्य ज्ञान का पुस्तक है। वृंदावन हॉल में आयोजित आध्यात्मिक चर्चा सत्य की खोज कार्यक्रम का संचालन करते हुए राकेश दुबे ने ने उक्त बातें कही। मुख्य वक्ता स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक ने कहा कि ईश्वर एक है और जीवात्मा को उसके कर्म के अनुसार ही दूसरा जीवन मिलता है।

श्री परिवाज्रक ने कहा कि द्वैत कर्मफल व्यवस्था, ईश्वर और भगवान में अंतर ईश्वर एक है भगवान कई हो सकते हैं। जिसके पास धन है वह धनवान जिनके पास बल है वह बलवान, जिनके पास भाग है वह भागवान। मनुष्य जन्म प्राप्त करने के लिए 84 लाख योनि में भटकने की आवश्यकता नहीं है यह भ्रम है। जिसके जैसे कर्म है उसके अनुसार यदि अच्छे हैं तो अगला जन्म पुन: मनुष्य का मिल सकता है. जो सत्ता सर्वशक्तिमान है सर्व व्यापक है उसका कोई रूप नहीं हो सकता. आत्मा और परमात्मा दोनों चेतन सत्ताएं हैं और प्रकृति जड़ है।

किसी भी प्रकार की दुर्घटना कर्म फल नहीं है और कोई भी कर्म फल दुर्घटना नहीं है न्यायाधीश के द्वारा पूरा मूल्यांकन करने के पश्चात कर्म फल सुनिश्चित किया जाता है। संसार में कुछ लोग आलसी देखे जाते हैं, और कुछ पुरुषार्थी। जो लोग आलसी होते हैं वे परिवार समाज और देश में अव्यवस्थाओं को देखकर सदा दोष ही निकालते रहते हैं और कहते रहते हैं कि देश में ऐसा होना चाहिए समाज में ऐसा होना चाहिए। परन्तु करते-धरते कुछ नहीं। यह आलसी लोगों का लक्षण है। परंतु कुछ लोग पुरुषार्थी होते हैं। वे भी परिवार समाज और देश की स्थिति को देखते हैं। वे इस प्रकार की टीका टिप्पणी नहीं करते, वे इस बात को अच्छी प्रकार से समझते हैं और समझ कर वैसी व्यवस्था बनाने के लिए नियम पूर्वक अनुशासन में रहकर पुरुषार्थ करते हैं, और कुछ न कुछ परिवर्तन लाकर दिखाते हैं। वे ही लोग पुरुषार्थी माने जाते हैं।
कार्यक्रम में राजेंद्र अग्रवाल, देवेश एवं श्रीमती देवेश साहू, पोद्दार, पठानिया,नवीन यादव, अमित साहू, मलखंब वर्मा, श्रीराम शर्मा, शीतल पटेल, नंदकुमार आर्य व अन्य साधकगण प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

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