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गोशाला और नगरपालिका के लिए प्रोटोकॉल बनाने की तैयारी की जा रही, यहां गिद्धों को पशुओं के शव परोसे जाएंगे

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रायपुर
वन विभाग ने गिद्धों के संरक्षण को बढावा देने के लिए कोडरमा में गिद्ध भोजनालय बनवाया है। यह जिले के तिलैया नगर परिषद के अंतर्गत गुमो में बनाया गया है। यहां गिद्धों को पशुओं के शव परोसे जाएंगे। इसको लेकर गोशाला और नगरपालिका के लिए प्रोटोकॉल बनाने की तैयारी की जा रही है। पशु शवों को गोशाला और नगरपालिका इलाके से लाया जाएगा। लेकिन इससे पूर्व यह सुनिश्चित किया जाएगा कि शव हानिकारक दवाओं से मुक्त है। प्रोटोकॉल तैयार होते ही रेस्तरां शुरू हो जाएगा।

वन प्रमंडल पदाधिकारी सूरज कुमार सिंह ने कहा कि गिद्ध रेस्तरां कोडरमा में गिद्धों की घटती आबादी को बढ़ाने का प्रयास है। भोजनस्थल पर बांस की बाड़ लगाई गई है, ताकि कुत्ते या सियार जैसे अन्य जानवर प्रवेश न करें और शवों को न खाएं। कोडरमा में पहले गिद्ध बहुतायत में पाए जाते थे। लेकिन प्रतिबंधित दवा डाइक्लोफेनाक के कारण गिद्धों की संख्या कम होने लगी है। यह दवा सूजन और बुखार के लक्षणों के इलाज के लिए पशुओं को दी जाती थी। बताते हैं कि डाइक्लोफेनाक-दूषित ऊतकों के संपर्क में आने के कुछ ही दिनों के भीतर गिद्धों के गुर्दे खराब हो जाते हैं और वे मर जाते हैं। इसके इस्तेमाल से कोडरमा में यह पक्षी लगभग गायब हो गये थे। दो दशक से गायब होने के बाद इस इलाके में गिद्ध पिछले कुछ साल से फिर दिखने लगे हैं। साल 2019 के पूर्व एक भी गिद्ध यहां नहीं दिखते थे। बाद में उन्हें झुमरीतिलैया समेत अन्य इलाकों में फिर से देखा गया। साल 2022 में वन प्रभाग के बेसलाइन सर्वेक्षण में कोडरमा में कुल 138 गिद्ध पाए गये थे। साल 2023 में मार्च में इनकी संख्या 145 हो गई। साल 2024 का सर्वे जारी है।

क्या कहते हैं डीएफओ
डीएफओ सूरज कुमार सिंह बताते हैं कि वन विभाग ने गिद्धों को विलुप्त होने से बचाने के लिए कोडरमा जिले में रेस्तरां स्थापित किया है। गिद्ध रेस्तरां में गोशालाओं और नगरपालिकाओं की ओर से जमा किए गए पशुओं के शवों को परोसा जाएगा। एक हेक्टेयर जमीन पर गझंडी रोड गुमो में रेस्तरां खोला गया है। यह स्थान पक्षियों के भोजन स्थल के रूप में प्रचलित है। इस तरह के एक और रेस्तरां का विस्तार चंदवारा प्रखंड के बडकी करौंजिया में करने की योजना है।

विलुप्त होने का मंडरा रहा है खतरा
झारखड में गिद्धों की छह प्रजातियां पाई जाती है। इनमें जिप्स बेंगलेंसिस, जिप्स इंडिकस, जिप्स हिमालयन्स, इजिप्शियन, साईनेरियर और रेड हेडेड गिद्ध। इनमें से चार प्रजातियां जिप्स बेंगलेंसिस, जिप्स इंडिकस, जिप्स हिमालयन्स और इजिप्शियन गिद्ध कोडरमा में देखे गए हैं। सभी प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। हजारीबाग में 2008 में हुए सर्वे के अनुसार सिर्फ 150-200 के बीच गिद्ध पाए गए और उनके पांच बच्चे भी देखे गये थे। 2010 में इनकी संख्या 200-250 के बीच पाई गयी और 13 बच्चे देखे गए। 2013 में इनकी संख्या 250-300 के बीच होने का अनुमान लगाया गया। 2014 से 2019 तक इनकी संख्या लगभग 350 से 450 होने का अनुमान था। 2021 सर्वे के अनुसार इनकी संख्या लगभग 400 के आस-पास होने का अनुमान है। इनके घोसले सिर्फ हजारीबाग और कोडरमा में देखे जा रहे हैं।

गिद्धों का क्या है महत्व
गिद्ध मांसाहारी होते हैं और मृत पशुओं को खाकर धरती को साफ रखने, पर्यावरण को शुद्ध रखने का कार्य करते हैं। गिद्ध सड़े-गले मृत पशुओं को खाकर कई तरह की महामारी जैसे कॉलरा, एन्थ्रैक्स, रैबीज आदि से बचाते हैं। गिद्ध आहार शृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी है। ये हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखकर जैव-विविधता में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

 

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