नई दिल्ली
पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से लक्षद्वीप को टूरिज्म के लिए प्रमोट किए जाने पर मालदीव के मंत्रियों ने आपत्तिजनक बयान दिए थे। इसके बाद भारत और मालदीव के बीच रिश्ते और खराब हो गए हैं, जो मुइज्जू के नेतृत्व में आई नई सरकार के बाद से पहले ही कमजोर लग रहे थे। अब तो दोनों देशों के बीच तनाव ही पैदा हो गया है और भारत ने मालदीव से कहा है कि वह अपने मंत्रियों को बर्खास्त करे, तभी रिश्ते सुधरेंगे। इस तनाव के बीच सोमवार को मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू चीन पहुंच गए हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनका पहला विदेश दौरा है, जिसके लिए उन्होंने चीन को चुना है। इसके मायने निकाले जा रहे हैं।
इस बीच चीन ने भारत को सलाह दी है कि उसे मालदीव और चीन के रिश्तों को लेकर बड़ा दिल दिखाना चाहिए। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने आर्टिकल में लिखा है कि मालदीव और चीन के बीच सहयोग का लंबा इतिहास रहा है। हमारे बीच 1981 में ही आर्थिक कारोबार शुरू हुआ था। इसके बाद दिसंबर 2014 में दोनों देशों के शीर्ष नेताओं की बीजिंग में मुलाकात हुई थी। इस दौरान दोनों देशों के बीच कारोबार और अर्थव्यवस्था पर मीटिंग हुई थी। इसके अलावा 2017 में हमारे बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी हुआ था। चीनी मीडिया ने इसके अलावा बीआरआई का जिक्र करते हुए मुइज्जू की तारीफ की है और कहा कि उन्हें पता है कि चीन से रिश्ते रखकर क्या फायदे हो सकते हैं।
चीनी अखबार ने लिखा- रिश्तों को लेकर बड़ा दिल दिखाए भारत
चीनी अखबार ने लिखा कि मुइज्जू के चीन दौरे की भारतीय मीडिया में काफी चर्चा हुई है। इन रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मुइज्जू के दौरे से पता चलता है कि वह चीन को ज्यादा अहमियत दे रहे हैं। चीन ने कहा कि इससे ऐसा लगता है कि भारत दक्षिण एशिया को अपने प्रभाव को क्षेत्र मानता है, जिसमें मालदीव भी शामिल हैं। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि भारत को लगता है कि मालदीव उसकी ही नीति को अपनाए, जिससे चीन से दूरी बनी रहे। लेकिन उसे यह समझना चाहिए कि मुइज्जू के चीन दौरे का सिर्फ इतना ही अर्थ नहीं है कि मालदीव प्रो-चाइना है और ऐंटी-इंडिया होने जा रहा है।
मुइज्जू ने सत्ता संभालते ही दिया था भारतीय सेना पर बयान
गौरतलब है कि चीन का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब भारत के साथ मालदीव के संबंध निचले स्तर पर हैं। मुइज्जू ने सत्ता संभालते ही कहा था कि भारतीय सैनिकों को यहां से चले जाना चाहिए। उनके इस बयान से ही यह अनुमान लग रहा था कि वह पिछली सरकार की नीतियों से अलग हटते हुए भारत की बजाय चीन को ज्यादा प्राथमिकता देने वाले हैं।