नई दिल्ली
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों से साफ-साफ कहा है कि सर्विलांस रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज कराने के नाम पर किसी को भी बार बार थाने नहीं बुलाया जा सकता है। हाई कोर्ट ने नागरिकों के मौलिक अधिकार, उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करने और वैध निगरानी सुनिश्चित करने के लिए सर्विलांस रजिस्टर में एंट्री की सख्ती से व्याख्या करने और उन्हें सीमित करने को कहा है।
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा कि निगरानी के नाम पर किसी की भी व्यक्तिगत गरिमा से समझौता नहीं किया जाना चाहिए और निगरानी रजिस्टर में एंट्री और निगरानी नियमों को नियंत्रित करने वाले पुलिस अधिकारियों द्वारा इसमें आवश्यक सावधानी और देखभाल बरतनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि नागरिकों की निजता सुनिश्चित कराने और मौलिक अधिकारों का सम्मान करने के लिए पुलिस को सर्विलांस रजिस्टर में एंट्री को सीमित करना चाहिए। हाई कोर्ट जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ पंजीकृत ए-क्लास ठेकेदार से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने जम्मू के गांधी नगर पुलिस स्टेशन के सर्विलांस रजिस्टर नंबर-10 में अपना नाम शामिल करने के खिलाफ राहत देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में संविधान के अनुच्छेद 226 का इस्तेमाल करते हुए निगरानी रजिस्टर से उसका नाम हटाने और जम्मू-कश्मीर पुलिस नियम 1960 के तहत हिस्ट्री शीट को रद्द करने का निर्देश देने के लिए परमादेश की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे 2009 में धारा 302/34/201/120-बी आरपीसी और 3/25/27 शस्त्र अधिनियम के तहत एक एफआईआर में फंसाया गया था। हालाँकि, सत्र अदालत ने उन्हें बरी कर दिया और 2020 में पुलिस के आरोप पत्र खारिज कर दिया। बावजूद, इसके उसका नाम सर्विलांस रजिस्टर में बना रहा। जम्मू और कश्मीर पुलिस नियम 1960 के प्रासंगिक प्रावधानों का हवाला देते हुए,विशेषकर नियम 698, जो निगरानी रजिस्टर नंबर-10 से संबंधित है, अदालत ने कहा कि पुलिस को अपराध रोकने के लिए सर्विलांस रजिस्टर की एंट्री और किसी व्यक्ति की निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान करने के बीच संतुलन बनाना चाहिए।
मामले में जस्टिस वानी ने नियम 699 पर प्रकाश डाला, जो सर्विलांस रजिस्टर में एंट्री और रद्दीकरण को नियंत्रित करता है और इस बात पर जोर दिया और कहा कि रजिस्टर एंट्री सत्यापन योग्य तथ्यों के आधार पर की जानी चाहिए, न कि केवल मान्यताओं या व्यक्तिगत राय के आधार पर। कोर्ट ने नियम 702 का हवाला देते हुए हिस्ट्री शीटर के मामलों के लिए आवश्यक सावधानी बरतने और उसके हरेक पहलू की जांच करने का आदेश दिया।