नई दिल्ली
AAP (Aam Admi Party) चौतरफा घिरी हुई है. कथित शराब घोटाले (Liquor Scam Case) के सिलसिले में दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) से ED की निर्धारित पूछताछ से पहले 2 नवंबर को दिल्ली के मंत्री राज कुमार आनंद के ठिकानों पर ईडी ने छापा मारा. वहीं, अरविंद केजरीवाल ने ईडी के सामने पेश नहीं होने का फैसला लिया और विधानसभा चुनाव के मद्दनेजर प्रचार करने के लिए मध्य प्रदेश चले गए.
इस हफ्ते की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिससे पार्टी के लिए मामला और खराब हो गया.
पार्टी के सूत्रों का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व अरविंद केजरीवाल की संभावित गिरफ्तारी सहित "किसी भी स्थिति" से निपटने के लिए तैयारी कर रहा है.
औरों से ज्यादा तो AAP नेताओं की तरफ से ही अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की आशंका जतायी जा रही है. ऐसी आशंका तब भी जता दी गयी थी, जब अरविंद केजरीवाल को अप्रैल, 2023 में सीबीआई ने पूछताछ के लिए दफ्तर बुलाया था.
तब तो अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी की आशंका जताते हुए आम आदमी पार्टी के दिल्ली संयोजक गोपाल राय ने पार्टी दफ्तर में आपात बैठक भी बुलाई थी. गिरफ्तारी की सूरत में आम आदमी पार्टी के एक्शन प्लान पर चर्चा के लिए हुई बैठक में राष्ट्रीय सचिव, जिलाध्याक्ष और तमाम पदाधिकारी शामिल हुए थे. दिल्ली की मेयर और डिप्टी मेयर को भी बैठक में बुलाया गया था.
एक बार फिर आतिशी, सौरभ भारद्वाज, गोपाल राय, दिलीप पांडेय और संदीप पाठक जैसे AAP नेताओं का कहना है कि आम आदमी पार्टी को खत्म करने के लिए केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करना चाहती है.
और अब नये सिरे से केजरीवाल की गिरफ्तारी की स्थिति में आम आदमी पार्टी की कोर टीम आपदा प्रबंधन में जुट गयी है. अरविंद केजरीवाल के करीबी और भरोसेमंद नेताओं से सलाह मशविरा चल रहा है. विचार विमर्श के लिए कुछ विधायक और सलाहकारों की टीम को शामिल किया गया है.
विचार विमर्श और बैठकों के जरिये ये समझने की कोशिश हो रही है कि अरविंद केजरीवाल की गैरमौजूदगी में वो कौन नेता हो सकता है जो दिल्ली के मुख्यमंत्री की कमान संभाल सके – और राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को केजरीवाल की तरह मजबूत नेतृत्व दे सके.
अरविंद केजरीवाल की संभावित गिरफ्तारी को लेकर आम आदमी पार्टी के नेता तो सिर्फ आशंका जता रहे हैं, सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के मामले में ऐसा लगता था जैसे अरविंद केजरीवाल चैलेंज कर रहे थे कि गिरफ्तार करके दिखाओ – और तीनों ही मामलों में जांच एजेंसियों ने अरविंद केजरीवाल के चैलेंज को बगैर शोर शराबे के स्वीकार कर लिया.
साथी नेताओं की तरह इस बार अरविंद केजरीवाल भी उसी मोड़ पर खड़े नजर आ रहे हैं, और इसीलिए चाहते हैं कि कोई ऐसी वैसी बात हो तो उसके लिए पहले से ही पुख्ता इंतजाम कर दिया जाये – आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने से लेकर अब तक पहली बार उसके अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.
केजरीवाल किसे सौंपेंगे मुख्यमंत्री की कुर्सी?
मुश्किल ये है कि अरविंद केजरीवाल का दाहिना और बायां हाथ माने जाने वाले मनीष सिसोदिया और संजय सिंह दोनों ही जेल में हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी के पास अरविंद केजरीवाल की जगह लेने वाले नेताओं के रूप में कम ही विकल्प बचे हैं.
अप्रैल, 2023 में भी जब सीबीआई ने पूछताछ के लिए अरविंद केजरीवाल को तलब किया था, आम आदमी पार्टी ऐसी तैयारी कर रही थी. बताते हैं कि तब अरविंद केजरीवाल की जगह लेने को लेकर गोपाल राय और संजय सिंह के नाम पर गंभीरता से विचार विमर्श हुआ था.
चूंकि अरविंद केजरीवाल पूछताछ के बाद सीबीआई दफ्तर से सकुशल लौट आये, और उनके खिलाफ कहीं कोई नामजद रिपोर्ट भी दर्ज नहीं हुई इसलिए सब सामान्य हो गया था. अब एक बार फिर वैसा ही विचार विमर्श चल रहा है.
खास बात ये है कि नये सिरे से विचार विमर्श में भी गोपाल राय का नाम एक भरोसेमंद और मजबूत दावेदार के रूप में उभर कर सामने आया है. दरअसल, गोपाल राय रामलीला आंदोलन के जमाने से ही अरविंद केजरीवाल के साथ कदम कदम पर बने हुए हैं. वो दिल्ली AAP के संयोजक होने के साथ साथ पार्टी की पावरफुल पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी के सदस्य भी हैं.
अन्य दावेदारों में राम निवास गोयल और आतिशी के नाम की चर्चा है. बीजेपी विधायक रहे रामनिवास गोयल ने 2014 में आम आदमी पार्टी का दामन थामा था, और फिलहाल वो दिल्ली विधानसभा के स्पीकर हैं. आतिशी की आम आदमी पार्टी के शिक्षा क्षेत्र में किये गये कामों में प्रमुख भूमिका रही है – और मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद उनको डिप्टी सीएम तो नहीं बनाया गया लेकिन ज्यादातर जिम्मेदारियां जरूर दी गयी हैं.
अंतिम फैसला अरविंद केजरीवाल को ही लेना है – और निश्चित तौर पर ये काम प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर के लिए घर से निकलने से पहले ही कर लेना होगा.
कौन बनेगा AAP का राष्ट्रीय संयोजक
पंजाब जैसे तो नहीं लेकिन हाल के चुनावों की तरह ही आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा का चुनाव भी लड़ रही है. चुनावों की जिम्मेदारी तो संदीप पाठक और पंकज गुप्ता जैसे नेताओं को पहले ही दे दी गयी है, लेकिन कमान तो अरविंद केजरीवाल अपने हाथ में ही रखते हैं – चुनाव प्रचार में भी अकेले चेहरा भी हैं.
विधानसभा चुनावों से तो आम आदमी पार्टी को भी कोई खास उम्मीद नहीं होगी, लेकिन उसके बाद 2024 के आम चुनाव की तैयारी भी करनी है. बाकी तैयारियां अपनी जगह हैं, सबसे जरूरी INDIA गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ तालमेल और सीटों का बंटवारा है. खासतौर पर दिल्ली और पंजाब में सबसे बड़ा पेच फंस रहा है, जहां सीटों को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में कड़ी प्रतियोगिता है.
आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से भी ज्यादा महत्वपूर्ण पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक का पद है. अरविंद केजरीवाल के जेल चले जाने पर आम आदमी पार्टी को एक ऐसे नेता की जरूरत होगी जो ये सारे काम कर सके.
क्या AAP को INDIA गठबंधन का साथ मिलेगा?
अब तक सिर्फ दिल्ली सेवा बिल के मुद्दे पर ही पूरे विपक्ष को अरविंद केजरीवाल के साथ खड़े देखा गया है. मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद विपक्ष के 9 नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संयुक्त पत्र लिखा था. बाद में केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन भी उसमें शामिल हो गये थे – लेकिन केजरीवाल को कांग्रेस का सपोर्ट नहीं मिला था. बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ता तो विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.
कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने सिसोदिया का नाम लिये बगैर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बदले की कार्रवाई का हथियार बताया था, लेकिन दिल्ली कांग्रेस की तरफ से याद दिलायी जाने लगी कि ये वही सिसोदिया हैं जो भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर तबके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम का इस्तीफा मांगा करते थे.
मुसीबत के वक्त राजनीति में भी दोस्त ही काम आते हैं. अरविंद केजरीवाल के सियासी दोस्त तो जेल जा चुके हैं. विपक्षी गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ अरविंद केजरीवाल का दोस्ताना सिर्फ स्वार्थ का ही लगता है. जब काम पड़े तो दोस्त, वरना किसी को कुछ नहीं समझते.
विपक्षी खेमे की बात करें तो अरविंद केजरीवाल को लेकर अब तक ज्यादा फिक्र पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ही देखने को मिली है. कांग्रेस की बैठकों में अरविंद केजरीवाल को शामिल किये जाने की वो जबरदस्त पैरोकार रही हैं, लेकिन प्रधानमंत्री बनने के चक्कर में वहां भी राजनीतिक रिश्ता ही बचा हुआ लगता है.
अव्वल तो अरविंद केजरीवाल के गिरफ्तार होने से दिल्ली सरकार के कामकाज पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है – क्योंकि वो तो शुरू से ही चीफ मिनिस्टर विदाउट पोर्टफोलियो बने हुए हैं. फिर भी सारे ही नीतिगत मामलों में अंतिम फैसला तो मुख्यमंत्री का ही होता है. जाहिर है कैबिनेट के फैसलों पर दस्तखत भी तो अरविंद केजरीवाल के ही होते होंगे. रही बात आने वाले आम चुनाव को लेकर सीटों के तालमेल की, तो कमजोर आम आदमी पार्टी के लिए मोलभाव करना काफी मुश्किल हो सकता है.