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वसंत पंचमीः अमेरिका में इंडोनेशिया दूतावास के सामने स्थित है देवी सरस्वती की प्रतिमा

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वाशिंगटन डीसी। दुनिया में अनेक देश हैं, जहाँ के उच्छृंखल धर्मान्ध लोगों ने अपने ही पूर्वजों की पहचान को नष्ट कर दिया, लेकिन कुछ ऐसे देश भी हैं, जिन्होंने इस मामले में अद्भुत मिसाल कायम की है। इसकी ताजा मिसाल है वाशिंगटन डीसी में इंडोनेशियाई दूतावास के सामने स्थापित देवी सरस्वती की प्रतिमा।
दुनिया में कई देश ऐसे भी हैं, जिन्होंने न सिर्फ अपनी संस्कृति व सभ्यता के प्राचीन अवशेषों को मिटाकर अपने इतिहास से मुंह फेर लिया बल्कि विश्व की अनेक महत्वपूर्ण धरोहरों को भी भारी क्षति पहुँचाकर नई पीढ़ी के साथ घोर अन्याय किया है। लेकिन इंडोनेशिया गणराज्य व कंबोडिया जैसे कुछ ऐसे देश भी हैं, जिन्होंने अपनी उदारता व सत्यनिष्ठा का परिचय देते हुए विलक्षण उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने न केवल अपने पूर्वजों की परम्पराओं रीति-रिवाज़ों को सुरक्षित रखा है बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के चिह्नों और प्रतीकों को भी संरक्षित कर आदर्श प्रस्तुत किये हैं।
अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में 175 देशों के राजदूतावास हैं। उन्हीं में से एक इंडोनेशिया का दूतावास भी है, जिसकी इमारत के सामने विद्या की देवी सरस्वती की भव्य एवं विशाल प्रतिमा स्थापित है। श्वेत पत्थर से बनी इस हंसवाहिनी देवी के चरणों में छोटे बालक बालिकाओं को विद्या अर्जित करते हुए दर्शाया गया है। इस प्रतिमा के दोनों ओर दो शिलालेख हैं जो काले ग्रेनाइट पत्थर पर स्वर्णिम स्याही से लिखे गए हैं। वॉशिंगटन डीसी स्थित भारतीय राजदूतावास में भारतीय संस्कृति के शिक्षक डॉ. मोक्षराज के अनुसार इंडोनेशिया गणराज्य के राष्ट्रपति डॉ. एच. सुशीलो बंबांग युधोयोनो ने 25 सितम्बर, 2014 को देवी सरस्वती की इस प्रतिमा का अनावरण किया था ।
देवी की यह प्रतिमा वॉशिंगटन शहर के बिल्कुल मध्य में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है। प्रतिमा स्थल से बाईं ओर लगभग सौ मीटर की दूरी पर भारतीय राजदूतावास एवं दाहिनी ओर पुर्तगाली दूतावास है। यह वॉशिंगटन डीसी का लोकप्रिय क्षेत्र है, जहाँ से एक मील की दूरी पर व्हाइट हाउस तथा इतनी ही दूरी पर पोटोमक नदी है।
गौरतलब है कि इंडोनेशिया सबसे विशाल मुस्लिम आबादी वाला देश है। यहां हिंदुओं की आबादी महज तीन फीसदी है। इंडोनेशिया में बालनीज लोगों के बीच सरस्वती देवी की प्रतिमा की पूजा प्रचलित है। मुस्लिम देश होने के बावजूद इंडोनेशिया ने 16 फीट ऊंची इस मूर्ति को एक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से जोड़ा है। इंडोनेशिया ने अमेरिका के साथ अपने सांस्कृतिक रिश्ते मजबूत करने के लिए यह प्रतिमा भेंट की थी।
वेदों में सरस्वती का स्वरूप
ऋग्वेद के प्रथम मण्डल एवं सामवेद में “पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसु:” मंत्र का उल्लेख है। यहां सरस्वती पद का अर्थ विचारणीय है। “वेदों की ओर लौटो” का नारा देने वाले वेदज्ञ महर्षि दयानंद सरस्वती ने स्वरचित सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में लिखा है कि सृ गतौ धातु से ‘सरस्’ तथा उससे मतुप् और ङीप् प्रत्यय होने से सरस्वती शब्द सिद्ध होता है । “सरो विविधं ज्ञानं विद्यते यस्यां चित्तौ सा सरस्वती” जिसको विविध विज्ञान अर्थात् शब्द-अर्थ -संबंध प्रयोग का ज्ञान यथावत् होवे इससे उस परमेश्वर का नाम सरस्वती है। ज्ञातव्य है कि ‘ब्रह्म चितिरीश्वरश्चेति’ सूत्र से परमेश्वर के तीनों लिंगों में नाम होते हैं । महर्षि दयानंद सरस्वती के विचार अनुसार यद्यपि वेदों में किसी प्रकार की दैवी प्रतिमाओं की पूजा का विधान नहीं है। किंतु, मान्यता है कि वैदिक काल के उपरांत किसी विद्वान् ने विद्या, संगीत, कला, योग-तप को सुंदर चित्रात्मक रूप से अभिव्यक्त करने के लिए सरस्वती देवी के स्वरूप की अभिव्यंजना की है, जो कई सदियों से प्रसिद्ध हो गई है । तब से यह चित्र करोड़ों विद्यार्थियों, संगीतकारों व कवियों के लिए सर्वोच्च आराध्य बन चुका है।
वसंत पंचमी पर आयोज्य अन्य संदर्भ
ऋतुराज वसंत के आगमन पर भारत में सब ओर फूलों से लदे हुए लहलहाते सरसों के खेत भी एक विलक्षण छटा बिखेरते हैं । वसंत पंचमी के इस अवसर पर वीर हक़ीक़त राय का बलिदान दिवस , संस्कृत-दिवस, सरस्वती-पूजन, संस्कृत के विद्वानों का सम्मान तथा आर्यसमाज द्वारा हैदराबाद मुक्ति संग्राम के संदर्भ में अनेक आयोजन किए जाते हैं। हैदराबाद मुक्ति संग्राम में आर्यसमाज व हिंदू महासभा ने मिलकर काम किया था, जिसके अनेक संदर्भ वसंत पंचमी से जुड़े हुए हैं।
डॉ. मोक्षराज कहते हैं कि मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया से हमें भी प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि हम अपनी मूल संस्कृति व पूर्वजों की अमूल्य धरोहरों को सुरक्षित रखकर आगे नई पीढ़ी को सौंप सकें।