नई दिल्ली। जहां एक तरफ भारतीय रेलवे आरक्षित ट्रेनों में बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए लोअर बर्थ की उपलब्धता बढ़ाने पर जाेर दे रहा है तो वहीं एक बड़ी लापरवाही के चलते रेलवे को भारी जुर्माना भरना पड़ रहा है। दरअसल ट्रेन में एक बुजुर्ग दंपत्ति को लोअर बर्थ न देने के चलते जिला उपभोक्ता फोरम ने रेलवे पर तीन लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश हुआ है। साथ ही रेलवे को घोर लापरवाही और सेवा में कमी का जिम्मेदार भी ठहराया है।
रेलवे की लापरवाही का यह मामला साल 2010 का है। कर्नाटक के बुजुर्ग दंपत्ति ने सोलापुर से बिरूर जाने के लिए थर्ड एसी में दिव्यांग कोटे से सीट आरक्षित कराई थी। दोनों में से एक के दिव्यांग होने के बावजूद भी रेलवे ने उन्हे लोअर बर्थ आवंटित नहीं की। टीटीई से बार बार निवेदन करने के बावजूद भी उन्हे लोअर बर्थ नहीं दी गई। हद तो तब हो गई जब बुजुर्ग दंपत्ति को सीट के पास नीचे बैठकर यात्रा करनी पड़ी। इतना ही नहीं कोच अटेंडेंट और टीटीई को कहने के बावजूद उन्हे स्टेशन आने की सूचना नहीं दी गई।
बुजुर्ग दंपत्ति ने की मुआवजे की मांग
बुजुर्ग दंपत्ति को गंतव्य स्टेशन बिरूर से करीब सौ किलोमीटर पहले चिकजाजुर में उतार दिया गया जिससे उन्हें बेहद असुविधा हुई। दंपत्ति ने रेलवे के खिलाफ की गई शिकायत में बताया कि ट्रेन चलते समय कोच में छह लोअर बर्थ खाली होने के बावजूद टीटीई ने उन्हें लोअर बर्थ नहीं दी गई। उन्होंने रेलवे पर लापरवाही और सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए मुआवजे की मांग की थी। अब जिला उपभोक्ता फोरम ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए रेलवे को मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही 2500 रुपये मुकदमा खर्च भी देने का आदेश दिया।
रेलवे के नियम के अनुसार, वरिष्ठ जनों, 45 वर्ष या उससे अधिक की उम्र वाली महिलाओं और गर्भवती महिलाओं के लिए रेलगाड़ी के शयनयान, एसी-3 टीयर और एसी-2 टीयर में 12 लोअर बर्थ निर्धारित है। ट्रेन में चल रहे टिकट चेकिंग स्टाफ के पास यह अधिकार है कि वह जरूरतमंद लोगों को लोअर बर्थ अलॉट कर दे और चार्ट में जरूरी एंट्री कर दे। इसके अलावा ट्रेन चलने के बाद अगर लोअर बर्थ खाली हैं और ट्रेन में कोई दिव्यांग, सीनियर सिटीजन या गर्भवती महिला सफर कर रही है और इन्हें अपर/मिडिल बर्थ अलॉट हुई है तो वे खाली पड़ी लोअर बर्थ पाने के लिए टिकट चेकिंग स्टाफ से अपील कर सकते हैं।