भोपाल
भारत में शनिवार, 14 अक्टूबर को जब आश्विन कृष्ण पक्ष (पितृपक्ष) की अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा। इस दौरान भारत में जब सूर्य अस्त हो रहा होगा, उसके कुछ देर बाद रात के अंधेरे में मेक्सिको, सेंट्रल अमेरिका, कोलिम्बिया, ब्राजील आदि पश्चिमी देशों में वलयाकार सूर्यग्रहण की खगोलीय घटना होगी।
ग्रहण के समय रात्रि होने से यह घटना भारत में नहीं दिखेगी। यह जानकारी शुक्रवार को नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने दी। उन्होंने बताया कि सूर्यग्रहण पथ दक्षिणी कनाडा के तट से प्रशांत महासागर में शुरू होगा। पश्चिमी देशों में होने वाला यह सूर्यग्रहण एन्यूलर या वलयाकार सूर्यग्रहण होगा। उन्होंने बताया कि भारतीय समय के अनुसार रात्रि 8 बजकर 33 मिनिट 50 सेकंड पर ग्रहण की घटना आरंभ होगी, जबकि रात 11 बजकर 29 मिनट 32 सेकंड पर यह अधिकतम ग्रहण की स्थिति में होगा। इसके बाद रात्रि 2 बजकर 25 मिनट 16 सेकंड पर यह समाप्त हो जाएगा। उन्होंने बताया कि अक्टूबर में 15 दिन के अंतर से सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण होने जा रहे हैं। इनमें आगामी शरद पूर्णिमा पर पड़ने वाला चंद्रग्रहण भारत में दिखेगा।
सारिका ने बताया कि एक गणितीय अनुमान के अनुसार पश्चिमी देशों में होने जा रही इस खगोलीय घटना का कुछ न कुछ भाग विश्व की लगभग 13 प्रतिशत से अधिक आबादी देख सकेगी, वहीं वलयाकार ग्रहण की स्थिति को केवल 0.41 प्रतिशत आबादी ही देख सकेगी। उन्होंने बताया कि एन्यूलर या वलयाकार सूर्यग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह नहीं ढक पाता है, क्योंकि वह पृथ्वी से दूर होता है। इस स्थिति में चंद्रमा के चारों ओर प्रकाश का एक घेरा बन जाता है। वलयाकार ग्रहण के दौरान कोरोना नहीं दिखाई देता है।
उन्होंने बताया कि इस साल चार ग्रहण हैं, जिसमें पहला सूर्यग्रहण 20 अप्रैल को और पहला चंद्रग्रहण 5 मई को लग चुका है। अब शनिवार को साल का दूसरा सूर्यग्रहण होगा। इसके बाद 8 अप्रैल 2024 को पूर्ण सूर्यग्रहण और 2 अक्टूबर 2024 को वलयाकार सूर्यग्रहण होगा, लेकिन ये भी भारत में दिखाई नहीं देंगे।
उन्होंने बताया कि एक साल में अधिकतम पांच सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण हो सकते हैं। एक साल में न्यूनतम दो सूर्यग्रहण तो होंगे ही, जबकि सामान्य रूप से साल में चार ग्रहण होते हैं। गणितीय अनुमान के अनुसार सन 3000 तक से विगत पांच हजार सालों में 11898 सूर्यग्रहण की गणना की गई है, जिसमें लगभग 35 प्रतिशत आंशिक ग्रहण 33 प्रतिशत वलयाकार ग्रहण, 27 प्रतिशत पूर्णसूर्यग्रहण तथा पांच प्रतिशत हाईब्रिड सूर्यग्रहण हैं।
भारत में शनिवार, 14 अक्टूबर को जब आश्विन कृष्ण पक्ष (पितृपक्ष) की अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा। इस दौरान भारत में जब सूर्य अस्त हो रहा होगा, उसके कुछ देर बाद रात के अंधेरे में मेक्सिको, सेंट्रल अमेरिका, कोलिम्बिया, ब्राजील आदि पश्चिमी देशों में वलयाकार सूर्यग्रहण की खगोलीय घटना होगी।
ग्रहण के समय रात्रि होने से यह घटना भारत में नहीं दिखेगी। यह जानकारी शुक्रवार को नेशनल अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने दी। उन्होंने बताया कि सूर्यग्रहण पथ दक्षिणी कनाडा के तट से प्रशांत महासागर में शुरू होगा। पश्चिमी देशों में होने वाला यह सूर्यग्रहण एन्यूलर या वलयाकार सूर्यग्रहण होगा। उन्होंने बताया कि भारतीय समय के अनुसार रात्रि 8 बजकर 33 मिनिट 50 सेकंड पर ग्रहण की घटना आरंभ होगी, जबकि रात 11 बजकर 29 मिनट 32 सेकंड पर यह अधिकतम ग्रहण की स्थिति में होगा। इसके बाद रात्रि 2 बजकर 25 मिनट 16 सेकंड पर यह समाप्त हो जाएगा। उन्होंने बताया कि अक्टूबर में 15 दिन के अंतर से सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण होने जा रहे हैं। इनमें आगामी शरद पूर्णिमा पर पड़ने वाला चंद्रग्रहण भारत में दिखेगा।
सारिका ने बताया कि एक गणितीय अनुमान के अनुसार पश्चिमी देशों में होने जा रही इस खगोलीय घटना का कुछ न कुछ भाग विश्व की लगभग 13 प्रतिशत से अधिक आबादी देख सकेगी, वहीं वलयाकार ग्रहण की स्थिति को केवल 0.41 प्रतिशत आबादी ही देख सकेगी। उन्होंने बताया कि एन्यूलर या वलयाकार सूर्यग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह नहीं ढक पाता है, क्योंकि वह पृथ्वी से दूर होता है। इस स्थिति में चंद्रमा के चारों ओर प्रकाश का एक घेरा बन जाता है। वलयाकार ग्रहण के दौरान कोरोना नहीं दिखाई देता है।
उन्होंने बताया कि इस साल चार ग्रहण हैं, जिसमें पहला सूर्यग्रहण 20 अप्रैल को और पहला चंद्रग्रहण 5 मई को लग चुका है। अब शनिवार को साल का दूसरा सूर्यग्रहण होगा। इसके बाद 8 अप्रैल 2024 को पूर्ण सूर्यग्रहण और 2 अक्टूबर 2024 को वलयाकार सूर्यग्रहण होगा, लेकिन ये भी भारत में दिखाई नहीं देंगे।
उन्होंने बताया कि एक साल में अधिकतम पांच सूर्यग्रहण और दो चंद्रग्रहण हो सकते हैं। एक साल में न्यूनतम दो सूर्यग्रहण तो होंगे ही, जबकि सामान्य रूप से साल में चार ग्रहण होते हैं। गणितीय अनुमान के अनुसार सन 3000 तक से विगत पांच हजार सालों में 11898 सूर्यग्रहण की गणना की गई है, जिसमें लगभग 35 प्रतिशत आंशिक ग्रहण 33 प्रतिशत वलयाकार ग्रहण, 27 प्रतिशत पूर्णसूर्यग्रहण तथा पांच प्रतिशत हाईब्रिड सूर्यग्रहण हैं।