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राजनीतिक उठा-पटक के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रावत ने दिया इस्तीफा

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देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। उन्होंने मंगलवार को राजभवन जाकर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना त्यागपत्र सौंपा। इस्तीफ़े के बाद मीडिया से उन्होंने कहा कि ये फ़ैसला पार्टी ने सामूहिक रूप से लिया है। उन्होंने बताया कि भाजपा के सभी विधायकों की बैठक बुधवार को होगी.इस्तीफ़े की वजह पूछने पर उन्होंने कहा कि इसका जवाब दिल्ली से मिलेगा।
पिछले कुछ दिनों से उनके पद छोड़ने के कयास लगाए जा रहे थे। इससे पहले भाजपा विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने बताया था कि मुख्यमंत्री केंद्रीय नेतृत्व के संपर्क में हैं और पार्टी अध्यक्ष से भी उनकी बातचीत हुई है।
साल 2000 में गठन के बाद से उत्तराखंड आठ मुख्यमंत्री देख चुका है। 70 सदस्यों वाली उत्तराखंड विधानसभा में इस समय भाजपा के 56 विधायक हैं और कांग्रेस के पास 11 एमएलए हैं। विधानसभा में दो स्वतंत्र विधायक भी हैं जबकि एक सीट खाली है।
इससे पहले मार्च 2016 में भी हरीश रावत सरकार को गिराने का प्रयास किया गया था। फिर पिछले साल मार्च महीने में ही विधायकों के एक समूह ने सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ विद्रोह किया था। फिर, पिछले साल मार्च में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर सबको आश्चर्य में डाल दिया, जिसके बाद हिमालयी राज्य में राजनीतिक बवाल मच गया है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ हुए भाजपा विधायक
इस साल भी यह मार्च का महीना ही है कि सीएम ने बजट सत्र के दौरान गैरसैंण को उत्तराखंड का तीसरा मंडल घोषित कर दिया। इस मंडल में कुमाऊं और गढ़वाल के दो दो जिलों को सम्मिलित किया गया है। चमोली, रुद्रप्रयाग, अल्मोड़ा और बागेश्वर जिलों को इस मंडल में सम्मिलित किया जाएगा। सीएम रावत ने कहा कि गैरसैण में कमिश्नर और डीआईजी स्तर के अधिकारी बैठेंगे।
माना जाता है कि रावत के इस फैसले से कुमाऊं के भाजपा विधायक खासे नाराज हैं और राज्य में राजनीतिक संकट की स्थिति बन गई है। मार्च का उत्तराखंड की राजनीति के साथ विशेष संबंध है क्योंकि यह वह महीना है, जब प्रत्येक चुनाव के बाद नई सरकार का गठन होता है। इसके अलावा प्रदेश का बजट सत्र – जो आमतौर पर मार्च में पारित होता है – महत्वपूर्ण हो जाता है।
पहाड़ी राज्य में राजनीतिक हलचल
इसे संयोग ही कहें, 2016 में बजट सत्र के दौरान हरीश रावत सरकार को अपने ही विधायकों से बगावत का सामना करना पड़ा था। पांच साल बाद यह फिर से बजट सत्र के दौरान है कि त्रिवेंद्र रावत को अपनी ही पार्टी के विधायकों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पर्यवेक्षकों छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और दुष्यंत कुमार गौतम को देहरादून भेजा। राजनीतिक बवाल के बीच विधानसभा सत्र जल्दबाजी में खत्म हो गया।
देहरादून में केंद्रीय पर्यवेक्षकों के साथ बातचीत में भाजपा विधायकों ने साफ तौर पर कहा था कि त्रिवेंद्र रावत की अगुवाई में 2022 का चुनाव होगा तो भाजपा के लिए जीत में मुश्किल होगी। वहीं, भाजपा के दोनों पर्यवेक्षकों ने अपनी रिपोर्ट हाई कमान को सौंपी, जिसमें त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदले जाने की बात कही। इसके बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने त्रिवेंद्र रावत को सीएम की कुर्सी छोड़ने का फरमान दिया।