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प्रवासी श्रमिकों के लिए संबल बनी मनरेगा

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241 प्रवासी श्रमिकों को मिली 11 लाख रूपए से अधिक की मजदूरी
रायपुर।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अपने शुरूआती दौर से ही अकृषि मौसम में जरूतमंद ग्रामीणों को अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध कराने का माध्यम रही है। इससे ग्रामीण अंचल में जनोपयोगी सार्वजनिक परिसंपत्तियों के निर्माण से एक ओर जहां ग्रामीणों को सुविधाएं सुलभ हुई है, वहीं दूसरी ओर इस योजना के माध्यम से मजदूरी के रूप में मिली राशि से जरूमंद ग्रामीणों का जीवनयापन आसान हुआ है। कोविड-19 कोरोना संक्रमण महामारी के दौरान लॉकडाउन की अवधि में रोजी-रोजगार बंद हो जाने की वजह से घर वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों के लिए मनरेगा वरदान साबित हुई।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देशानुसार छत्तीसगढ़ राज्य वापस लौटे श्रमिकों को मनरेगा का जॉब कार्ड दिए जाने के साथ ही उन्हें गांव में ही काम उपलब्ध कराया गया। लॉकडाउन की अवधि में छत्तीसगढ़ राज्य जरूरतमंद ग्रामीणों एवं प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में देश का अग्रणी राज्य रहा। लॉकडाउन की अवधि अप्रैल-मई माह में छत्तीसगढ़ राज्य ने रोजाना 25 हजार से अधिक जरूरतमंद ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में उल्लेखनीय उपलब्धि अर्जित की थी। धमतरी जिले में देश के विभिन्न प्रांतों से लॉकडाउन के चलते वापस लौटे 241 श्रमिकों को उनके गांव में ही मनरेगा के तहत भरपूर काम मिला। इन प्रवासी श्रमिकों ने 5802 मानव दिवस के जरिए 11 लाख 2 हजार 384 रूपए की मजदूरी अर्जित की, जो कोरोना संक्रमणकाल में उनके परिवार के जीवनयापन का सहारा बनी।
धमतरी विकासखंड में 16 प्रवासी श्रमिकों ने मनरेगा के अंतर्गत संचालित कार्यों में 412 दिवस कार्य कर 78 हजार 280 रूपए, कुरूद विकासखंड के 47 प्रवासी श्रमिकों ने 586 दिवस काम कर एक लाख 11 हजार 340 रूपए, मगरलोड विकासखंड के 16 प्रवासी श्रमिकों ने 268 दिन के रोजगार के माध्यम से 50 हजार 920 रूपए तथा नगरी विकासखंड के 162 श्रमिकों 4536 दिवस कार्य अर्जित कर 8 लाख 61 हजार 844 रूपए की मजदूरी हासिल की। प्रवासी श्रमिकों ने मनरेगा के तहत तालाब गहरीकरण, वृक्षारोपण कार्य, मिट्टी मुरूम सड़क, नाला सफाई, धरसा सड़क निर्माण, मिनी स्टेडियम, मिश्रित वृक्षारोपण कार्य, पशुशेड निर्माण, धान चबूतरा निर्माण, निर्मला घाट एवं डबरी निर्माण आदि का कार्य किया।
धमतरी विकासखंड के ग्राम पंचायत सेमरा (बी) के प्रवासी श्रमिक लेखराम ने बताया कि-लॉकडाउन के समय वह उड़ीसा प्रांत के फरसाबुड़ा में भवन निर्माण कार्य में गये थे। लॉकडाउन के दौरान वह अपने गांव लौटे और रोजगार के लिए ग्राम पंचायत में आवेदन लगाया। उन्होंने बताया कि वह तालाब गहरीकरण, सड़क निर्माण एवं पचरीकरण निर्माण में 81 दिन काम किए, जिसके एवज में उन्हें 15 हजार 390 रूपए की मजदूरी मिली, जो संकट के समय में परिवार के जीवनयापन का सहारा बनी।
इसी तरह नगरी विकासखंड के ग्राम पंचायत भोथापारा निवासी राजकुमार ने 65 दिन, जैतपुरी के कृष्णा ने 60 दिन, सांकरा के टाकेश्वर कुमार साहू ने 56 दिन कुम्हड़ा के भागीरथी ने 56 दिन, कोलियारी के शैलन्द्री नेताम ने 56 दिन, बेलरबाहरा के देवकी बाई ने 56 दिन एवं जबर्रा के कमलेश्वर कुमार ने 55 दिन काम कर अपने परिवार का गुजर-बसर करने में सफल रहें। नगरी विकासखंड के ग्राम पंचायत झुंझराकसा निवासी रूपसिंह नेताम ने बताया कि वह जिला जांजगीर चांपा में पिछले 01 साल से जैविक खाद निर्माण कंपनी में काम थे। 22 मार्च 2020 को जब पूरे भारत भर में कोरोना वायरस कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन हुआ, तब वह अपने गांव लौट आए। मनरेगा के तहत उन्हें मेट का काम दिया गया और उन्हें मजदूरी के एवज में 5 हजार 130 रूपए अर्जित किए। झुंझराकसा सरपंच कलेश्वरी मरकाम ने बताया कि-कोरोना वायरस कोविड-19 के मद्देनजर ग्रामीणों को सोशल डिस्टेसिंग का पालन कराते हुए गांव में ही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत् काम दिया गया।