छुरा/गरियाबंद:- सरकार की बिहान योजना महिलाओं को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने की एक योजना है,इस योजना में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिया जाता है। महिलाओं के विकास के लिए संचालित ग्रामीण आजीविका मिशन ‘‘बिहान’’ एक महत्वाकांक्षी योजना हैं। ‘‘बिहान’’ योजना महिलाओं को आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने की एक अनूठी पहल है। इस योजना से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्व-सहायता समूहों को कौशल विकास उन्नयन का प्रशिक्षण दिया जाता है। जिससे महिलाएं स्वरोजगार प्राप्त कर आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें। ‘‘बिहान’’ योजना से जुड़ने वाली महिला स्व-सहायता समूह को आर्थिक रूप से सशक्त बनानें के लिए जिला प्रशासन द्वारा भी भरपूर सहयोग किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें एक निश्चित प्लेटफाॅर्म उपलब्ध कराया जाता है,ताकि वे अपने निर्मित सामग्रियों को आसानी से बिक्री कर सकें। सांथ ही छत्तीसगढ़ सरकार गरीब महिलाओं को आर्थिक रूप से संपन्ना करने के लिए गरीबी मूलक कार्य संचालित कर गांव गांव की स्व-सहायता समूहों को बिहान योजना से जोड़कर रोजगार मूलक कार्य उपलब्ध करा रही है। साथ ही रोजगार के लिए बैंक लोन के माध्यम से राशि उपलब्ध कराने में सहयोग कर रही है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत जिले में संचालित ’बिहान’ योजना से महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम होने के साथ ही मुखरता के साथ सामाजिक जीवन में हिस्सा लेने के काबिल बन रही है।
बिहान योजना से प्रशिक्षण लेकर छुरा क्षेत्र की महिलाएं हो रहीं आत्मनिर्भर
गरियाबंद जिला अंतर्गत विकास खण्ड छुरा में बीआरसी ग्रामीण उद्यमिता परियोजना बिहान छुरा में सुश्री रुचि शर्मा मुख्य कार्यपालन अधिकारी के मार्गदर्शन में बीपीएम SVEP एवम कुडंबश्री नेशनल रिसोर्स पर्सन मेंटर की सहायता से सात दिवस का चूड़ी एवम कंगन का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमे राष्ट्रीय 25 दीदियों शमिल हुई जिसमे 25 दीदी अलग अलग समूह ग्राम दादरगांव,चरोदा,कांसिंघी, बोर्रा बांधा,जनपद सदस्य खिलेस्वरी भी शामिल हुई थी समूह से जुड़ी महिलाओं को रोजगार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना योजना का मुख्य उद्देश्य है सांथ महिलाओं को समूह से जोड़ना लक्ष्य है। ताकि ये महिलाएं समूह में रोजगार के लिए कुछ कार्य करके आर्थिक तंगी दूर कर सकें। सक्रिय महिलाओं को प्रशिक्षण में जोर दिया जा रहा है।मुख्य कार्यपालन अधिकारी सुश्री रुचि शर्मा इनदिनों महिला समूह के क्रियाकलापों पर विशेष नजर रखें हुये हैं शासन के विभिन्य वित्तीय योजनाओं के बारे में जानकारी दे रही है जिससे बैंकों से लोन लेकर आजीविका के साधन तैयार कर महिलाएं आत्मनिर्भर बनें। समूह से जुड़ी महिलाओं को शासन के विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कौशल संबंधी विभिन्न हुनरमंद बनकर आत्मनिर्भर बनने रोजगार के कार्य शुरू करें,ताकि महिलाओं को रोजगार मिले।गौरतलब हो कि विगत दिनों बिहान शाखा के 7 दिवस के प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत विकास खण्ड छुरा के कुसुमबुडा क्लस्टर के तुमगांव की दीदियां द्वारा चूड़ियां और कंगन का निर्माण कार्य शुरू किया हैं जिसे तैयार कर आज जनपद पंचायत छुरा के मुख्य कार्यपालन अधिकारी सुश्री रुचि शर्मा को सप्रेम भेंट देने पहुंची थी जिसे सुश्री शर्मा ने स्वीकार कर पांच जोड़ा कंगन भी स्वयं के खरिदा,वंही तुमगांव की निवासी श्रीमती निर्मल साहू ने बताया कि अभी हम कंगन बना रहे हैं हम 18 दीदियों को बिहान से प्रशिक्षण मिला था हम अभी कंगन निर्माण कार्य मे लगे हैं अभी इतना ही निर्माण कर पाए है हमारे कंगन की बहुत डिमांड हैं और सारे कंगन हांथो हाँथ बिक जाते हैं और अभी हमने ऑनलाईन कच्चा माल की दिल्ली से खरीदी की हैं और हम राजिम के पुन्नी मेला में भी स्टाल लगाकर अपने कंगन की बिक्री भी करेंगे।
जिससे हम अपना परिवार चला सके और अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सके। श्रीमती सुखवती देवी कुसुमबुडा क्लस्टर अध्यक्ष ने बताया कि विकास खण्ड छुरा अन्तर्गत बिहान योजना से विभिन्न कार्यक्रम चल रहे हैं जैसा कि अभी हमारी दीदियों के द्वारा ज्वेलरी डिजाइनिंग व चूड़ियों का निर्माण किया जा रहा हैं दीपावली के समय मटका दिये भी बनाये गए थे सांथ ही पूजा की टोकरी बनाई गई जिसमें पूजा में उपयोग होने बाली संपूर्ण सामग्री रखी होती हैं,सांथ ही दीदीयों के द्वारा कृषि कार्य भी किया जा रहा हैं क्षेत्र में चलती फिरती किराना व्यवसाय भी किया जा रहा हैं तो कुछ दीदियां बैंक सखी के रूप में काम भी कर रही हैं जंहा बैंक नही हैं वँहा दीदियां पहुंच कर ट्रांजेक्शन का काम कर रही हैं।कई दीदियां कपड़ा व्यवसाय से लेकर बड़ी किराना दुकान का भी संचालन कर रही हैं सांथ कई सार्वजनिक कार्यो में दीदियां बड़चड़कर हिस्सा लेती हैं महिलाएं स्व सहायता समूह के माध्यम से जुड़कर स्वयं का व्यवसाय कर रोजगार प्राप्त कर आत्मनिर्भर बन रही हैं जिससे जीवन में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं।
क्या कहते हैं मुख्य कार्यपालन अधिकारी
मुख्य कार्यपालन अधिकारी(डिप्टी कलेक्टर) सुश्री रुचि शर्मा ने मीडिया से चर्चा करते हुये बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान यह एक केंद्र सरकार की योजना है जिसमें महिलाओं को मुख्य रूप से स्वयं सहायता समूह के रूप में गठित करके उन्हें रोजगार और स्वरोजगार से जोड़ना है ताकि वह अपनी आजीविका आसानी से चला सके ग्रामीण आजीविका मिशन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे छत्तीसगढ़ में बिहान जिसे एसआरएलएम स्टेट रूरल लाइवलीहुड मिशन के नाम से भी जाना जाता है। इसे ग्रामीण विकास विभाग, भारत सरकार द्वारा सन 2011 में लॉन्च किया गया था जिसे सन 2016 में दीनदयाल अन्त्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के नाम से जाना जाता है इसका मुख्य उद्देश्य गरीबी को कम करना है। छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत महिला एवं युवतियों को एक SHG (Self Help Group) स्वयं सहायता समूह के रूप में गठित किया जा रहा है और उन्हें प्रेरित कर स्वरोजगार के लिए जोड़ा जा रहा है।
इन समूहों का गठन के लिए राज्य सरकार द्वारा NRLM के अंतर्गत सभी जिलों के जनपद स्तर पर कर्मचारी और अधिकारी नियुक्त किए गए हैं जो उन्हें आवश्यक मार्गदर्शन एवं समूह में किस प्रकार से कार्य किया जाना है सब जानकारी उन्हें प्रदान करते हैं। और समय-समय पर उनकी बैठक लेकर उनकी समस्याओं को जानकर निवारण करते हैं।
सुश्री शर्मा ने आगे बताया कि बिहान बाज़ार समूह के महिलायों को एक प्लेटफार्म व सुविधा प्रदान करता है जिसमे वह अपने बनाये हुए प्रोडक्ट को बेच सकते है।
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य
सुश्री शर्मा ने आगे बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य के प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवारों से कम से कम 1 महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ना।
स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का सर्व भौमिक सामाजिक संगठन करण समुदायिक संस्थाओं का निर्माण
समूह के संघ का निर्माण
प्रशिक्षण एवं कौशल उन्नयन
वित्तीय समावेश बाजार
अधोसंरचना उपलब्ध कराना।
ग्रामीण गरीब परिवार की वार्षिक आय न्यूनतम 100000 से अधिक वृद्धि कराना हैं।
मिशन के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु विभिन्न स्तरों पर क्रियान्वयन का समर्थन प्रदान करने के लिए समर्पित संरचना की व्यवस्था
बिहान के द्वारा दिए जाने वाले प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण संस्थानग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण सस्थान,दीनदयाल उपध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना
स्वयं सहायता समूह है।
एक समान सामाजिक आर्थिक परिस्थिति वाली 10 से 15 गरीब महिलाओं का संगठन। स्वयं सहायता समूह के समस्त महिला सदस्य एक ही पारा मोहल्ला अथवा गांव की होती है। समूह के नेतृत्व हेतु अध्यक्ष एवं सचिव का चयन समूह के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है।समूह के सफल संचालन हेतु समूह के सभी सदस्य नियम तय करते हैं। समूह के नाम से एक बचत खाता बैंक खाता बैंक में खोला जाता है। समूह का दस्तावेजीकरण पुस्तक लेखन प्रशिक्षित पुस्तक संचालक के द्वारा किया जाता है। समूह का गठन का मुख्य उद्देश से परस्पर सहयोग द्वारा गरीबी उन्मूलन एवं महिला सशक्तिकरण है।
स्वयं सहायता समूह का मुख्य पाँच सूत्र हैं
नियमित सप्ताहिक बैठक
नियमित साप्ताहिक बचत
तीन नियमित आंतरिक लेनदेन
नियमित उधार वापसी
सही पुस्तक संधारण अर्थात सही हिसाब किताब रखना है।
सुश्री शर्मा ने आगे बताया कि एक गांव में गठित सभी स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हुई महिला सदस्यों के द्वारा आपसी सहमति से चयनित एक या दो ऐसी महिलाएं जो कि समूह के विकास अथवा गांव के विकास के लिए अपना योगदान एवं समय देने में सक्षम तथा इच्छुक हो उन्हें सक्रिय महिला कहते हैं सक्रिय महिलाओं को समय-समय पर मिशन के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है ताकि वह अपने दायित्वों का निर्वहन सफलतापूर्वक कर सके।समूह के सदस्यों में से ही कोई एक पढ़ी-लिखी सदस्य जिसका चयन समूह के सभी सदस्यों के द्वारा किया जाता है वह पुस्तक संचालक कहलाता है पुस्तक संचालक को मिशन के माध्यम से समय-समय पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है ताकि वह समूह में होने वाले लेन-देन का हिसाब किताब निर्धारित रजिस्टर में लिख सके।
एक संकुल के अंतर्गत आने वाले सभी स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करने एवं समूहों का अंकेक्षण करने वाले को संसाधन पुस्तक संचालक कहा जाता है संसार पुस्तक का चयन निम्नलिखित मापदंडों के आधार पर किया जाता है-स्वयं सहायता समूह के पुस्तक संचालकों में से ऐसे पुस्तक संचालक जिनको 75 बैठक लिखने का अनुभव हो
जिनका समूह नियमित रूप से पंचसूत्र का पालन कर रहा हूं
संसाधन पुस्तक संचालक का चिन्ह अंकन गांव में गठित सभी समूहों से जुड़ी हुई
महिला सदस्यों के द्वारा आपसी सहमति से इनका चयन किया जाता है संसाधन पुस्तक संचालक को मिशन के माध्यम से समय-समय पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है ताकि इन के माध्यम से अन्य पुस्तक संचालकों को आवश्यकता अनुसार प्रशिक्षण दिया जा सके।
एक ही गांव या आसपास के 2 गांव में गठित 6 अधिक समूह सदस्य से स्वयं सहायता समूह जो कि पंचसूत्र का पालन कर रहे हो के द्वारा आपस में मिलकर बनाया गया संगठन ग्राम संगठन कहलाता है।सुश्री शर्मा ने आगे बताया कि समूह को निरंतरता प्रदान करने तथा गांव की सामाजिक समस्याओं का निराकरण करने के लिए ग्राम संगठन का गठन किया जाता है। ग्राम संगठन के अंतर्गत समस्त समूह के सदस्य ग्राम संगठन के सामान्य सभा कहलाते हैं।प्रत्येक ग्राम संगठन के अंतर्गत समस्त समूहों के प्रतिनिधि ग्राम संगठन की कार्यकारिणी समिति कहलाते हैं कार्यकारिणी समिति का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है। ग्राम संगठन के कार्य कार्यनीति कार्यकारिणी समिति आपस में मिलकर अपने बीच में से किन्ही 3 या 5 सदस्यों को ग्राम संगठन के पदाधिकारियों के रूप में चयन करते हैं ओबी का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है,ग्राम संगठन के सामान्य सभा के द्वारा ग्राम संगठन से जुड़े सभी समूहों के पुस्तक संचालकों में से किसी एक पुस्तक संचालक को ग्राम संगठन सहायिका के रूप में चुना जाता है ग्राम संगठन सहायिका का चयन निम्नलिखित मापदंडों के आधार पर किया जाता है
वह स्वयं सहायता समूहों के पुस्तक संचालकों में से पुस्तक संचालक जिनको 75 बैठक लिखने का अनुभव हो
जिनका समूह नियमित रूप से पंचसूत्र का पालन कर रहा हूं
जिनको जिनके मन में गरीब के प्रति सम्मान की भावना हो।
ग्राम संगठन सहायिका को समय-समय पर मिशन के माध्यम से प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है ताकि उसके द्वारा ग्राम संगठन में होने वाले लेन-देन का सही हिसाब किताब निर्धारित रजिस्टर में लिखा जा सके।
संकुल स्तरीय संगठन क्लस्टर लेवल फेडरेशन
सुश्री शर्मा ने आगे बताया कि एक संकुल अंतर्गत गठित समस्त ग्राम संगठनों के द्वारा लिख मिलकर बनाए गए एक संगठन को संकुल स्तरीय संगठन कहा जाता है संकुल स्तरीय संगठन का मुख्य उद्देश्य सभी ग्राम संगठनों को संगठित कर उन्हें विभिन्न विभाग एजेंसी से समन्वय बनाए रखने में मदद करना तथा स्वयं सहायता समूहों व ग्राम संगठनों की पात्रता अनुसार विभागीय योजनाओं का लाभ पहुंचाना है तथा हर संभव मदद पहुंचाना ताकि ग्रामीण गरीब परिवारों को सतत विकास हो सके प्रत्येक ग्राम संगठन के पदाधिकारी संकुल स्तरीय संगठन की कार्यकारिणी समिति कहलाते हैं संकुल स्तरीय संगठन की कार्यकारिणी समिति का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
संकुल स्तरीय संगठन
कार्यकारिणी समिति आपस में मिलकर अपने बीच में से किन्ही तीन या पांच सदस्यों को संकुल स्तरीय संगठन के पदाधिकारियों के रूप में चयन करते हैं संकुल स्तरीय संगठन की कार्यकारिणी का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है।
संकुल स्तरीय संगठन मुख्य तौर पर सामुदायिक निवेश कोष सीआईएफ के प्रबंधन का कार्य करता है साथी कम्युनिटी कैडर का चुनाव कर उन्हें प्रशिक्षित कराकर प्रबंधन सेवाएं सभी इकाइयों को प्रदान करता है संकुल संगठन सुनिश्चित करता है कि संबंधित सभी गायों का समय पूर्वक ऑडिट सामुदायिक ऑडिटर ऑडिटर द्वारा हो सके संकुल संकुल अंतर्गत सभी सदस्यों को स्वयं सहायता समूहों को एक एवं ग्राम संगठनों को प्रशिक्षण प्रदान करता है करता है
संकुल स्तरीय संगठन की कार्यकारिणी समिति संकुल संगठन के प्रबंधन एवं खाता हेतु लेखन हेतु संकुल अंतर्गत आने वाले सभी स्वयं सहायता समूह से जुड़े हुए सदस्यों में से एक के सदस्य को सीएलएफ अकाउंटेंट या प्रबंधक के रूप में चयन करती है
सीएलएफ अकाउंटेंट प्रबंधक का चयन निम्नलिखित मापदंडों के आधार पर किया जाता है
सुश्री शर्मा ने आगे बताया कि स्वयं सहायता समूह की तरफ से जो कम से कम स्नातक उत्तीर्ण हो अपने स्वयं सहायता समूह की 75 बैठकों में उपस्थित हुई हो
जिसका समूह नियमित रूप से पंचसूत्र का पालन कर रहा हूं
जिसके मन में गरीबों के प्रति मान सम्मान की भावना हो।
ब्लॉक संगठन ब्लॉक लेवल फेडरेशन
राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत प्रत्येक विकासखंड में चार संकुल स्तरीय संगठन सीएलएफ का गठन किया जाता है इन्हीं सीएलएफ को मिलाकर विकासखंड स्तर पर बनाए गए संगठन को ब्लॉक स्तरीय संगठन कहा जाता है ब्लॉक संगठन का मुख्य उद्देश्य सीएलएफ को आजीविका संबंधी गतिविधियों वित्तीय प्रबंधन इत्यादि पर मार्गदर्शन प्रदान करता है।
आंतरिक सीआरपी रणनीति क्या है
इंटरनल सीआरपी स्टेटस जी स्ट्रेटजी राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत प्रदेश में संसाधन के रूप में विकसित विकासखंड से प्रशिक्षित समुदायिक सोमवार को जैसे सक्रीय महिलाएं पुस्तक संचालक एवं पुस्तक संसाधन पुस्तक संचालक के माध्यम से मिशन कार्यों का विस्तार प्रदेश विशेष विकास खंडों में किए जाने वाली प्रक्रिया को आंतरिक सीआरपी रणनीति कहा जाता है
कुल आंतरिक सीआरपी दल में 5 सदस्य होते हैं जिसमें 3 सक्रिय महिला तथा 2 पुस्तक संचालक जो 30 दिनों के चक्र में 2 गांव में मिशन का कार्य संपादित करते हैं। आंतरिक सीआरपी का 30 दिनों का होता है जिसमें 15 -15 दिन 2 गांव में कार्य किया जाता हैआंतरिक सीआरपी दल को 15 दिवस की अवधि में प्रत्येक गांव में कम से कम 6 नए स्वयं सहायता समूह गठित करने होते हैं तथा दो पुराने समूहों को पुनर्गठित करना होता है आंतरिक के प्रत्येक सदस्यों को दैनिक रूप से मानदेय दिया जाता है।
चक्रीय निधि रिवाल्विंग फंड उद्देश्य
सुश्री शर्मा ने आगे बताया कि स्वयं सहायता समूह की पूंजी कोष में वृद्धि करने आंतरिक लेनदेन को बढ़ाने एवं समूह सदस्यों की छोटी-छोटी उपभोग व आजीविका संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्वयं सहायता समूहों को चक्रीय निधि अनुदान के रूप में उपलब्ध कराई जाती है जिनकी पात्रता
ऐसे समूह जिन्होंने 3 माह पूर्व किया हो एवं कम से कम 12 बैठकों या उससे अधिक में पंचसूत्र का पालन किया हो
ऐसा संभव जिसका बचत खाता बैंक में खुला हो एवं
ग्रेडिंग में कम से कम 60 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हो उन्हें राशि रुपये 15000 अधिकतम अनुदान के रूप में दिया जाता है
सामुदायिक निवेश कोष सीआईएफ कम्युनिटी इन्वेस्टमेंट फंड उद्देश्य
समूह के सदस्यों के व्यक्तिगत आवश्यकता उत्पादक गतिविधि बीमारी आदि जैसे आवश्यकता की पूर्ति हेतु उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना विशेषता समूह द्वारा सदस्यों को दिए जाने वाला रेन समूह के तैयार सूचना ऋण योजना में तय प्राथमिकता के आधार पर दिया जाएगा समूह द्वारा इस प्रश्न राशि का पुनर भुगतान अपने ग्राम संगठन सीएलएफ को किया जाता है जिसे ग्राम संगठन सीएलएफ पुणे अन्य समूहों को उनकी मांग के आधार पर ऋण के रूप में उपलब्ध कराता है पात्रता ऐसे समूह जिन्होंने पूर्ण किया हो एवं कम से कम 24 बैठकों या उससे अधिक में पंच सूत्र का पालन किया योजना तैयार की गई हो राशि अधिकतम रु 50,000 से रुपये75000 तक समूह तोरण परंतु सेल्फ हेतु अनुदान।
स्वयं सहायता समूह के वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बैंकों के माध्यम से उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना एवं उनके साथ व विश्वसनीयता को बढ़ाना विशेषता उत्तरण नगर साख सीमा के रूप में उपलब्ध कराया जाता है जो कि 6 से 7 वर्षों तक रिपीट लोन के माध्यम से समूह को ऋण उपलब्ध कराता है ताकि समूह को चीर स्थाई आजीविका प्रारंभ करने व जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक ऋण प्राप्त करने हेतु सक्षम बनाया जा सके
पात्रता
समूह पंचसूत्र का पालन कर रहा हूं राशि इसके अंतर्गत ऋण विभिन्न या दो डोज के रूप में प्रदान किया जाता है प्रथम अंश वर्ष के दौरान समूह के वास्तविक कोष का 4 से 8 गुना या रु 50,000 इसमें से जो भी अधिक हो।मौजूदा कोष एवं आगामी 12 महीनों की प्रस्तावित बचत का 5 से 10 गुना या रुपये100000 जो भी अधिक होअंक स्वयं सहायता समूह की सूचना ऋण योजना एवं पिछले साल के आधार पर न्यूनतम रुपये200000।
या उसके बाद के अंश चौथे अंश के लिए ऋण की राशि 5 से 1000000 रुपए के मध्य तथा अथवा उसके बाद के अंशों में उच्चतर हो सकती है जो कि समूह वासियों की सूचना के आधार पर तय होती है।जिसका उद्देश्य स्वयं सहायता समूह को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना बैंक ऋण के प्रति जिम्मेदार बनाना एवं उनकी साख और विश्वसनीयता को बढ़ाना विशेषता समूह द्वारा बैंकों के प्राप्त ऋण की अदायगी और समयानुसार करने पर उनके द्वारा दें ब्याज की राशि पर छूट का प्रावधान किया गया है इससे समूह में बैंक ऋण हेतु हुनर भुगतान की प्रवृत्ति प्रबल होती है एवं उक्त बैंक ऋण पर ब्याज दर का भार मात्र 3% हो जाती है पात्रता समूह द्वारा बैंक से लिए गए ऋण खाते में 30 दिन से अधिक समय के लिए अमृत शक्ति से अधिक से सुना रहे एवं खाते में नियमित रुप से लेन-देन होता रहे साथी साथ प्रत्येक माह कम से कम एक ग्राहक प्रेरित एडिट का जरूर किया जाए जो कि इस माह की ब्याज राशि को कवर करता हूं राशि इसके अंतर्गत समूह को रुपये 300000 तक के ऋण पर ब्याज की राशि में नियमानुसार छूट प्रदान की जाती है सुश्री शर्मा ने बताया कि बिहान के बारे में जाने की ये योजना किस तरह से चलता है और कैसे फायदा मिलता है अगर हम वास्तविक रूप में देखे तो ये योजना ग्रामीण परिवारों के लिए वरदान की तरह है क्योकि ये योजना मूल रूप से लोगो को लाभ पंहुचा रहा है यह केवल विभागों तक सिमित नही है बल्कि इसका जमीनी स्तर पर कार्य हो रहा है।
सनातन संस्कृति में हैं चूड़ियाँ और कंगन का बड़ा महत्व:सुश्री शर्मा
चूड़ियाँ और कंगन एक पारम्परिक गहना है जिसे भारत सहित दक्षिण एशिया में महिलाएँ कलाई में पहनती हैं। चूड़ियाँ वृत्त के आकार की होती हैं। चूड़ी नारी के हाथ का प्रमुख अलंकरण है, भारतीय सभ्यता और समाज में चूड़ियों का महत्वपूर्ण स्थान है। सनातन(हिंदू)समाज में यह सुहाग का चिह्न मानी जाती है।भारत में जीवितपतिका नारी का हाथ चूड़ी से रिक्त नहीं मिलेगा।
भारत के विभिन्न प्रांतों में विविध प्रकार की चूड़ी पहनने की प्रथा है। कहीं हाथीदाँत की, कहीं लाख की, कहीं पीतल की, कहीं प्लास्टिक की, कहीं काच की, आदि। आजकल सोने चाँदी की चूड़ी पहनने की प्रथा भी बढ़ रही है। इन सभी प्रकार की चूड़ियों में अपने विविध रंग रूपों और चमक दमक के कारण काच की चूड़ियों का महत्वपूर्ण स्थान है। सभी धर्मों एवं संप्रदायों की स्त्रियाँ काच की चूड़ियों का अधिक प्रयोग करने लगी हैं।