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ऐसा नाम, जिसे याद करने से सिहर जाता है चीन, रेजांग ला में उतारा था 1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट

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चीनी सेना ने मेजर शैतान सिंह को बताया था महान योद्धा
नई दिल्ली।
सामरिक रूप से चुशूल एक ऐसा इलाका है, जिसका इस्तेमाल युद्ध के दौरान लॉन्च पैड के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। 1962 की लड़ाई में भी चीन ने पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किया था। ब्लैक टॉप से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर रेजांग ला में मेजर शैतान सिंह और उनके शूरवीरों ने चीनी फौजियों के मंसूबों को नेस्तनाबूद कर दिया था। 1300 से ज्यादा चीनी सैनिक रेजांग ला की लड़ाई में मारे गए। चीन आजतक उस लड़ाई की खौफनाक यादों से उबर नहीं पाया है।
पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारों पर खड़े ब्लैक टॉप की चोटी से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर रेजांल ला है। रेजांग ला शब्द सुनते ही चाइनीज आर्मी के जवान सन्नाटे में आ जाते हैं, उनके दिमाग में 1962 की जंग का वो मंजर याद आने लगता था जिसमें 1300 से ज्यादा चीनी सैनिक मारे गए थे। ब्लैक टॉप से कुछ किलोमीटर की दूरी पर रेजांग ला है। 20 किलोमीटर से भी कम की दूरी ब्लैक टॉप की चोटी ने 1962 की जंग देखी है। चुशूल घाटी में हुई भीषण जंग देखी है, चीन का धोखा देखा है और मेजर शैतान सिंह और उनके जवानों का अदम्य शौर्य देखा है।
लद्दाख घाटी की इसी चुशूल घाटी की सुरक्षा की जिम्मेदारी मेजर शैतान सिंह की यूनिट पर थी। बात 58 साल पुरानी है जब LAC पर चाइनीज आर्मी की हलचल बढ़ने लगी थी। लद्दाख में तैनात भारतीय फौज के जवानों को अंदाजा होने लगा था कि चीन इस इलाके में कुछ बड़ा करने की फिराक में है। भारतीय फौज भी चीन की हर हिमाकत का जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार थी। लेकिन भारतीय जवानों के पास उतने अत्याधुनिक हथियार नहीं थे, जितने चीन के पास थे। यहां तक की माइनस तापमान वाले इस इलाके में ठंड से बचाव के भी पूरे इंतजाम नहीं थे। हालांकि हिमालय जैसे बुलंद हौसलों के साथ भारतीय फौज के शूरवीर लद्दाख में अलग-अलग मोर्चों पर डटे हुए थे।
अक्टूबर 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। 13वीं कुमाऊ बटालियन की C कंपनी लद्दाख में तैनात थी, जिसके कमांडर मेजर शैतान सिंह थे। बटालियन में 120 जवान थे। जब चीन ने भारत में हमला किया तो हमारे जवानों के पास ना बेहतर हथियार थे, न भीषण ठंड से बचने का मुकम्मल इंतजाम, लेकिन हौसलों के दम पर मेजर शैतान सिंह और उनके जवानों ने दुश्मनों पर प्रचंड प्रहार किया। हिंदुस्तान के 120 जवानों के सामने चीन के दो हजार जवान थे।
चुशूल घाटी, लद्दाख-
18 नवंबर 1962। 17 तारीख की रात से ही रेजांग ला पर तैनात भारतीय सेना की टुकड़ी का संपर्क अपने बेस से टूट गया। बेहद सर्द रात में 120 सैनिक पूरी मुस्तैदी से रात भर पहरेदारी करते रहे। सुबह की पहली किरण निकली तो पूरी चुशूल घाटी बर्फ से ढकी हुई थी। सब कुछ शांत था, लेकिन अचानक पूरी घाटी गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठी।
चाइनीज आर्मी के हजारों जवानों ने गोला-बारूद और तोप के साथ हमला बोल दिया। चुशूल घाटी की रक्षा की जिम्मेदारी मेजर शैतान सिंह और उनके 120 शूरवीरों के हाथों में थी। भारतीय फौज का पहले ही संपर्क टूट चुका था। इसलिए पीछे से मदद की भी कोई उम्मीद नहीं थी। भारतीय फौज के 120 जांबाजों ने तय किया कि आखिरी सांस तक लड़ेंगे। ये वो दौर था जब 1962 में चीनी सैनिक हिंदुस्तान पर भारी पड़े थे।
मेजर शैतान सिंह की जवानों से आखिरी बातचीत
पूरी तैयारी के साथ दुश्मन के प्रचंड हमले को देखते हुए मेजर शैतान सिंह ने अपने जवानों से कहा, हम 120 है, दुश्मनों की संख्या हमसे ज्यादा हो सकती है। पीछे से हमें कोई मदद नहीं मिल रही है। हो सकता है कि हमारे पास मौजूद हथियार कम पड़ जाए, हो सकता है कि हमसे कोई न बचे और हम सब शहीद हो जाए। जो भी अपनी जान बचाना चाहते हैं वह पीछे हटने के लिए आजाद हैं, लेकिन मैं मरते दम तक मुकाबला करूंगा।
पूरी कंपनी ने दुश्मनों का आखिरी सांस तक मुकाबला करने का फैसला किया। रणनीति बनी कि एक भी गोली बर्बाद न जाए। एक गोली, एक दुश्मन। दुश्मन के मारे जाते ही उनसे बंदूक छीन ली जाए। जिससे हथियार और गोला-बारूद की कमी पूरी की जा सके।
भारतीय जवानों ने अदम्य शौर्य का परिचय देते हुए दुश्मनों का डट कर सामना किया। 13वीं कुमाऊं के वीर सैनिकों ने सही जवाबी कार्रवाई शुरू की। मेजर शैतान सिंह ने इस युद्ध में अहम भूमिका निभाई, उन्होंने गोलियों की बौछार के बीच एक प्लाटून से दूसरी प्लाटून तक जाकर सैनिकों का हौसला बढ़ाया। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व और युद्धनीति से भारतीय जवानों का जोश उफान मारने लगा। एक-एक कर चाइनीज आर्मी के जवानों की लाशें गिरने लगी। 18 हजार फुट की ऊंचाई पर हुई इस भीषण लड़ाई की गवाही चुशूल घार्टी का जर्रा-जर्रा दे रहा है। चाइनीज आर्मी के मंसूबों को नाकाम करने के दौरान मेजर शैतान सिंह को कई गोलियां लगीं।
बुरी तरह से जख्मी मेजर शैतान सिंह का काफी खून बह चुका था। उनके दो साथी उठाकर ले जा रहे थे। इसी बीच चीनी सैनिकों ने उन पर मशीन गन से हमला कर दिया। मेजर शैतान सिंह ने अपने साथियों की जान खतरे में देखते हुए तुरंत पीछे जाने के लिए कहा, लेकिन साथी सैनिकों ने उन्हें एक पत्थर के पीछे छिपा दिया। बुरी तरह से जख्मी होने के बाद भी मेजर शैतान सिंह दुश्मनों पर हमला करते रहे। एक-एक कर चीनी सैनिक उनकी गोलियों ढेर होते रहे। रेजांग ला की इस लड़ाई में चीन को घुटने टेकने पड़े।
इस युद्ध में 1300 सैनिकों को 120 भारतीय सैनिकों ने मार गिराया जबकि 120 में से 114 भारतीय सैनिक भी शहीद हुए। खुद चीनी सेना ने शैतान सिंह को महान योद्धा बताया। मेजर शैतान सिंह और उनके शूरवीरों ने अपने प्राणों की आहूति देकर चीन के मंसूबों पर पानी फेर दिया। चुशूल घाटी में चाइनीज आर्मी की कब्र बना दी। 13वीं कुमाऊंनी बटालियन की इस पराक्रमी पलटन के शौर्य का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ 14 भारतीय जवान ही जिंदा बचे। इस लड़ाई में 1300 से ज्यादा चीनी सैनिक मारे गए।
चुशूल में अदम्य शौर्य के लिए मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार पदक परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया, वहीं इस बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मेडल प्रदान किया गया। इस वीर गाथा की वजह से रेज़ांग ला को अहीर धाम भी कहा जाने लगा।
चाइनीज आर्मी के सामने जब भी परमवीर मेजर शैतान सिंह का जिक्र आता है, जब भी चुशूल घाटी में आज से 58 साल पहले हुई जंग का जिक्र आता है तो सन्नाटा पसर जाता है। क्योंकि हिंदुस्तान के मुट्ठी भर जवानों ने रेजांग ला में चीन को एहसास करा दिया था कि किसी भी हिमाकत का अंजाम कितना खतरनाक हो सकता है? हिंदुस्तान का एक-एक फौजी कैसे दुश्मन के 100 फौजियों पर भारी पड़ता है।