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दलित वोटरों को लुभा नहीं पा रही BJP, तीन उपचुनावों के आंकड़े; 2024 के लिए टेंशन?

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 नई दिल्ली

हाल ही में हुए घोसी उपचुनाव में भाजपा नीत एनडीए को हार का सामना करना पड़ा है। उत्तर प्रदेश के मऊ जिला स्थित घोसी सीट पर सपा के सुधाकर सिंह ने भाजपा के दारा सिंह चौहान को हरा दिया। इस चुनाव के परिणाम से इतर भाजपा के लिए बड़ी चिंता यह रही कि तमाम कोशिशों के बावजूद वह यहां पर दलित वोटरों को लुभाने में नाकाम रही। इससे भी बड़ी परेशानी यह है कि 2022 से अभी तक तीन विधानसभा उपचुनावों में भाजपा को इस मामले में मुश्किल हुई है। इससे पहले खटौली और मैनपुरी के विधानसभा उपचुनाव में भाजपा मन मुताबिक ढंग से दलित-जाटव वोट हासिल नहीं कर सकी थी। अब जबकि 2024 लोकसभा चुनाव के लिए माहौल बनने लगा है, भाजपा के लिए टेंशन जरूर बढ़ेगी।

घोसी के नतीजों की बात
हालिया घोसी उपचुनाव की बात करें तो यहां पर भाजपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान का मुकाबला सपा के सुधाकर सिंह से था। भाजपा को उम्मीद थी कि बसपा की गैरमौजूदगी में वह दलित वोटरों के दम पर सपा को आसानी से हरा देगी। यहां पर दलितों को लुभाने के लिए भाजपा ने पैंतरे भी खूब आजमाए थे। मायावती से सहानुभूति जताने के लिए 1995 के स्टेट गेस्ट हाउस कांड का जिक्र खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने किया था। लेकिन इसके बावजूद चुनाव परिणाम उनके मन-मुताबिक नहीं रहा। सपा के सुधाकर सिंह को 57.2 और भाजपा को 37.5 फीसदी वोट मिले। जबकि 2022 में सपा ने यहां पर 42.21, भाजपा ने 33.57 फीसदी और बसपा ने 21.12 फीसदी वोट पाए थे। इस बार बसपा मैदान में थी, लेकिन परिणाम देखकर लगता है दलित वोट भाजपा की बजाए सपा की तरफ खिसक गए।

खटौली में भी ऐसा ही हुआ था
दिसंबर 2022 में खटौली में विधानसभा उपचुनाव हुए थे, जिसमें भाजपा को आरएलडी के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था। इससे पहले आम चुनाव में यहां पर भाजपा के विक्रम सिंह सैनी ने 45.34 फीसदी पाकर जीत हासिल की थी। तब आरएलडी के राजपाल सिंह सैनी 38 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर थे और बसपा 14.15 फीसदी वोट लेकर तीसरे नंबर पर थी। बाद में मुजफ्फरनगर दंगों में सजा के बाद विक्रम अयोग्य घोषित हो गए और यहां दोबारा चुनाव कराने पड़े। इस चुनाव में आरएलडी-सपा गठबंधन के मदन भैया ने 54.23 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की, जबकि भाजपा उम्मीदवार राजकुमारी सैनी 41.72 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर पहुंच गईं। यहां पर पर मुस्लिमों के बाद दलितों के वोट सबसे अधिक थे और यह आरएलडी के पक्ष में गए थे। सूत्रों का दावा है कि आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने आरएलडी उम्मीदवार के पक्ष में दलितों के बीच प्रचार किया था। इसी का नतीजा रहा कि दलित वोट आरएलडी-सपा गठबंधन उम्मीदवार को मिले।

मैनपुरी में भी कुछ ऐसा ही हाल
मैनपुरी लोकसभा का उपचुनाव पिछले साल दिसंबर में हुआ था। सपा सांसद मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। यहां पर सपा की उम्मीदवार डिंपल यादव ने 64.49 फीसदी वोटों के साथ जीत हासिल की थी। वहीं, भाजपा के रघुराज सिंह शाक्य को मात्र 34.39 फीसदी वोट मिले थे। जबकि इसे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में जब सपा-बसपा का गठबंधन था तो मुलायम को 53.66 फीसदी वोट मिले थे, जबकि भाजपा का वोट प्रतिशत 44 था। यह बात गौर करने वाली है कि 2022 के उपचुनाव में बसपा चुनाव से दूर थी। बताया जाता है कि बसपा गैरमौजूदगी में बड़ी संख्या में दलित वोट डिंपल के खाते में गए थे।