नई दिल्ली
आयकर विभाग कुछ पुराने और बड़े मामलों को री-ओपन करने की तैयारी में है। इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने कर अधिकारियों को जरूरी निर्देश दिए हैं। बीते 23 अगस्त को दिए गए निर्देश में कहा गया है कि केवल उन मामलों को री-ओपन और री-असेसमेंट नहीं किया जाएगा जहां अपीलीय अधिकारियों का निर्णय अंतिम हो गया है।
किन मामलों में राहत: रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के वकील दीपक जोशी ने बताया कि सीबीडीटी के ताजा निर्देश की अच्छी बात यह है कि कम से कम उन मामलों को नहीं टच किया जाएगा, जिससे जुड़े अपील, अपीलीय अधिकारियों के समक्ष लंबित नहीं है और कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल महीने के फैसले से पहले फाइनल स्टेज में पहुंच चुकी है। दीपक जोशी के मुताबिक कुछ टैक्सपेयर्स के लिए यह संभवतः मुकदमेबाजी का एक और दौर है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल महीने में प्रधान आयकर आयुक्त बनाम अभिसार बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड मामले की सुनवाई करते हुए माना था कि आईटी अधिकारी किसी भी आपत्तिजनक सामग्री के अभाव में, आयकर अधिनियम की धारा 153-ए के तहत री-असेसमेंट कार्यवाही के दौरान टैक्सपेयर्स की आय में कोई वृद्धि नहीं कर सकते हैं। धारा 153ए उस व्यक्ति की कमाई तय करने की प्रक्रिया बताती है, जिसके खिलाफ तलाशी ली गई है। इसका मकसद अघोषित आय को टैक्स के दायरे में लाना है।
क्या है इसके मायने: हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा था कि धारा 147/148 के तहत शर्तें पूरी होने की स्थिति में री-असेसमेंट किया जा सकता है। बता दें कि आयकर विभाग के पास धारा 147 के तहत किसी व्यक्ति के पहले से जमा किए गए आयकर रिटर्न की समीक्षा करने का अधिकार है। धारा 148 के तहत किसी भी कर योग्य आय का आकलन किया जा सकता है, जिसका मूल्यांकन अधिनियम के सिद्धांतों के अनुसार नहीं किया गया है।