नई दिल्ली
चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अगले महीने के प्रारंभ में ‘सूर्य मिशन’ की तैयारी में है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि Aditya L1 मिशन से अंतरिक्ष में मौसम की गतिशीलता, सूर्य की सबसे बाहरी परत (कोरोना) के तापमान, सौर तूफान व उत्सर्जन एवं पराबैगनी किरणों के धरती, खासकर ओजोन परत पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा सकेगा। आदित्य-एल1 मिशन को दो सितंबर को भेजे जाने की संभावना है। यह सूर्य के अवलोकन के लिए पहला भारतीय अंतरिक्ष मिशन होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि मिशन के तहत विभिन्न प्रकार का डाटा इकट्ठा किया जाएगा ताकि कोई ऐसी व्यवस्था बनायी जा सके कि नुकसानदेह सौर पवन और तूफान की जानकारी मिलते ही सावधानी का अलर्ट जारी किया जा सके।
15 लाख किलोमीटर तक जाएगा
आदित्य-एल1 मिशन के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण ‘सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप’ (SUIT) को पुणे स्थित इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA) ने तैयार किया है। आईयूसीएए के वैज्ञानिक और एसयूआईटी के मुख्य अन्वेषक प्रो. दुर्गेश त्रिपाठी ने बताया कि इसरो का सूर्य मिशन आदित्य-एल1 है जो धरती से सूरज की तरफ 15 लाख किलोमीटर तक जाएगा और सूरज का अध्ययन करेगा। आदित्य-एल1 को सूर्य-पृथ्वी की व्यवस्था के लाग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा। यहां से सूर्य को बिना किसी व्यवधान या ग्रहण के लगातार देखने का लाभ मिलेगा।
उन्होंने बताया कि सूरज से काफी मात्रा में पराबैंगनी किरणें निकलती है और इस टेलीस्कोप (एसयूआईटी) से 2000-4000 एंगस्ट्रॉम के तरंग दैर्ध्य की पराबैंगनी किरणों का अध्ययन किया जाएगा। त्रिपाठी ने बताया कि इससे पहले दुनिया में इस स्तर की पराबैंगनी किरणों का पहले अध्ययन नहीं किया गया। आदित्य-एल1 मिशन का लक्ष्य चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है।
चार पेलोड सूर्य और तीन कणों का करेंगे अध्ययन
यह अंतरिक्ष यान सात पेलोड लेकर जाएगा, जो अलग-अलग वेव बैंड में फोटोस्फेयर (प्रकाशमंडल), क्रोमोस्फेयर (सूर्य की दिखाई देने वाली सतह से ठीक ऊपरी सतह) और कोरोना का अवलोकन करने में मदद करेंगे। आईयूसीएए के एक अन्य वैज्ञानिक प्रो. एएन रामप्रकाश ने बताया कि आदित्य-एल1 के साथ सात पेलोड भी अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे। ये पेलोड सूरज की प्रकाशमंडल, वर्णमंडल और सबसे बाहरी परत का अध्ययन करेंगे। सात में से चार पेलोड लगातार सूर्य पर नजर रखेंगे जबकि तीन पेलोड परिस्थितियों के हिसाब से कणों और मैग्नेटिक फील्ड का अध्ययन करेंगे।