नई दिल्ली
चंद्रमा की सतह पर 23 अगस्त को विक्रम लैंडर के उतरने के बाद उसमें मौजूद रोवर प्रज्ञान तुरंत अपना काम शुरू कर देगा। वह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को आंकड़े भेजने लगेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, इसरो ने इन आंकड़ों के विश्लेषण के लिए भी व्यापक इंतजाम किए हैं। इसके लिए अलग-अलग वैज्ञानिकों की टीम तैयार की है। इसरो की कोशिश है कि चंद्रयान-3 के आंकड़ों पर आधारित कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी की घोषणा या शोधपत्र का प्रकाशन सबसे पहले एजेंसी के द्वारा ही किया जाए। दरअसल, 2008 में चंद्रयान के भेजे आंकड़ों की मदद से नासा ने पहले घोषणा कर दी थी। इसलिए इसरो इस बार अपनी तैयारी में कोई कमी नहीं रखना चाहता है।
लैंडिंग के बाद प्रज्ञान रोवर चंद्रमा की सतह पर 14 दिन तक घूम-घूम कर आंकड़े एकत्र करेगा। इसमें लगे दो उपकरणों में से एक अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्टोमीटर (APXS) चंद्रमा की सतह का रासायनिक विश्लेषण करेगा, जबकि दूसरा लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडुन स्पेक्टोस्कोप (LIBS) सतह पर किसी धातु की खोज और उसकी पहचान करेगा। ISRO अधिकारियों के मुताबिक, दोनों उपकरणों की तकनीक अलग-अलग है और काम करीब-करीब एक जैसा ही है। ये उपकरण स्वत: ही कार्य करेंगे और उसके आंकड़े रोवर से सीधे लैंडर विक्रम और फिर प्रोपल्शन मॉड्यूल के पास पहुंचेंगे। ये दोनों उपकरण इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDSN) से जुड़े रहेंगे। कर्नाटक के ब्यालालु में स्थित इस प्रयोगशाला में सीधे आंकड़े प्राप्त होंगे और वैज्ञानिक उनका विश्लेषण शुरू करेंगे।
नासा ने पहले कर दी थी घोषणा
दरअसल, 2008 में जब चंद्रयान-1 ने आंकड़े भेजने शुरू किए थे, तो उसके आधार पर पहली घोषणा नासा ने 24 सितंबर, 2009 में की। उसने बताया कि चांद के दक्षिण हिस्से में बर्फ की मौजूदगी के प्रमाण मिलते हैं। नासा ने यह घोषणा चंद्रयान-1 में भेजे गए अपने उपकरण मून मिनरोलॉजी मैपर (एम3) के आंकड़ों के आधार पर की। बकायदा साइंस जर्नल में इस बारे में जानकारी प्रकाशित हुई। इसके एक दिन बाद इसरो ने दावा किया कि उसके उपकरण मून इंपेक्ट प्रोब (एमआईपी) के आंकड़ों ने पहले ही इसकी पुष्टि कर दी थी, लेकिन घोषणा करने में वह चूक गया। लेकिन इस बार इसरो ने कोई विदेशी उपकरण नहीं भेजा है, इसलिए कोई भी नतीजा वह सबसे पहले निकालने की तैयारी में है।
नई जानकारी मिलने की संभावना ज्यादा
चंद्रयान-3 के आंकड़े इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि चांद के जिस दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में प्रज्ञान रोवर उतरेगा, वहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है। चंद्रयान-1 ने भी दक्षिणी क्षेत्र से ही आंकड़े जुटाए थे। इस क्षेत्र में गहरी खाइयां और ऐसे स्थान हैं, जहां सूर्य की रोशनी कभी नहीं पहुंची है, इसलिए नई जानकारी सामने आने की संभावनाएं ज्यादा है। चंद्रयान-3 के आकंड़े इसरो के पास ही रहेंगे, लेकिन विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ पूर्व में हुए समझौतों के तहत इन्हें साझा भी किया जाता है। जिसके आधार पर दूसरे देश की एजेंसियों भी इनका विश्लेषण करती हैं। लेकिन इस बार इसरो इस मामले में भी आगे रहने की कोशिश करेगा। इसके लिए पहले ही रणनीति तैयार हो चुकी है।