लखनऊ
घोसी के चुनावी रण में भाजपा और सपा की सोशल इंजीनियरिंग का इम्तहान है। दलित और मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता वाली इस सीट के उपचुनाव पर सबकी निगाहें हैं। बसपा के चुनावी मैदान में न उतरने से भगवा खेमा उत्साहित है। परंपरागत वोट बैंक के साथ भाजपा की कोशिश मुस्लिमों के बीच मिशन पसमांदा को आगे बढ़ाने की भी है। ऐसे में बाहुबली मुख्तार अंसारी के प्रभाव वाले इलाके में सपा के सामने मुस्लिमों में सेंधमारी रोकने की भी चुनौती है।
घोसी के चुनावी अखाड़े में अब भाजपा और सपा के बीच आमने-सामने की लड़ाई है। बसपा और कांग्रेस ने इस उपचुनाव से किनारा कर लिया है। भाजपा ने पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान के रूप में दलित (नूनिया) तो सपा ने सुधाकर सिंह के रूप में अगड़े चेहरे पर दांव लगाया है। भाजपा का प्रयास यहां पसमांदा में सेंध लगाने के साथ ही सपा को माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण में समेटने का है। दलित प्रत्याशी देने वाली भाजपा की कोशिश बसपा की गैरहाजिरी में उसके वोट बैंक को भी अपने पाले में खींचने की है।
पसमांदा पर किया सरकार से संगठन तक निवेश
भाजपा काफी समय से पसमांदा मुस्लिमों में पैठ बढ़ाने को प्रयासरत है। केंद्र और प्रदेश की योजनाओं का लाभ देने की बात हो या सरकार और संगठन में प्रतिनिधित्व, पार्टी ने हर जगह दरियादिली दिखाई है। अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि योगी-1.0 में सरकार में मुस्लिम चेहरे के रूप में मोहसिन रजा शामिल थे। मगर योगी-2.0 में उनकी जगह पसमांदा समाज से आने वाले दानिश अंसारी ने ले ली। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को पार्टी ने सिर्फ एमएलसी ही नहीं बनाया, सीधे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बना दिया। वहीं सपा के सामने उपचुनाव में अपनी इस सीट को बरकरार रखने की चुनौती है।