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राजस्थान में किस बात से डर रही है भाजपा? क्यों वसुंधरा राजे पर ही टिकी हैं नजरें

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राजस्थान  

राजस्थान में भाजपा को जहां सत्ता विरोधी माहौल व हर बार सत्ता बदलने के रिवाज का लाभ मिलने की उम्मीद है, वहीं पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर खींचतान का संकट भी है। केंद्रीय नेतृत्व लगातार सामूहिक नेतृत्व पर जोर दे रहा है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का समर्थक खेमा लगातार मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने के लिए दबाब बनाए हुए हैं।

इस साल के आखिर में होने वाले राजस्थान समेत पांच राज्यों के चुनाव इसलिए भी अहम हैं, क्योंकि इसके नतीजों से अगले साल अप्रैल मई में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए माहौल बनेगा। ऐसे में भाजपा की कोशिश इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने का दबाब भी है। इनमें राजस्थान अपनी राजनीति की वजह से भाजपा के लिए काफी मुफीद माना जा रहा है। राज्य में अभी कांग्रेस की सरकार है और बीते दो दशकों से वहां पर सत्ता बदलती रही है। राज्य में सत्ता विरोधी माहौल का लाभ भी भाजपा को मिलने की उम्मीद है।

बीते सालों में कांग्रेस का अंदरूनी कलह भी भाजपा का मददगार हो सकता है, हालांकि इस समय कांग्रेस काफी एकजुट दिख रही है। साथ ही कांग्रेस की सरकार ने कई ऐसी घोषणाएं व कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिससे सत्ता विरोधी माहौल कम होने की उम्मीद भी जताई जा रही है। इससे भी भाजपा काफी सतर्क है। बीते दो दशकों में भाजपा व कांग्रेस की राजनीति दो नेताओं के बीच ही सिमटी रही है। भाजपा की सरकार का नेतृत्व वसुंधरा राजे और कांग्रेस की सरकार का नेतृत्व अशोक गहलौत के पास रहा है। ऐसे में में भाजपा का एक खेमा पार्टी पर वसुंधरा राजे के चेहरे को घोषित करने के लिए दबाब बना रहे हैं।

हालांकि भाजपा के लिए सबसे बड़ी दिक्कत राज्य में पार्टी नेताओं के बीच समन्वय की कमी है। बीते पांच साल में यहां पर काफी प्रयोग किए हैं, लेकिन अभी भी राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर सबसे ज्यादा दारोमदार है। हालांकि पार्टी के पास राज्य में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला जैसे चेहरे भी हैं। इस दौरान पार्टी वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी को राज्यसभा में लेकर आई और गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाया। जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति बनाकर पार्टी ने राजस्थान की राजनीति को साधने की एक और कोशिश की है।

राजस्थान में बीते विधानसभा चुनाव में राज्य की 200 सीटों में कांग्रेस को100, भाजपा को 73, बसपा को छह, आरएलपी को तीन, सीपीएम को दो, बीटीपी को दो, आरएलडी को एक व 13 निर्दलीय जीते थे। जबकि इसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा (24) और उसकी सहयोगी आरएलपी (एक) ने सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी।