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ओडिशा ने झेले तूफानों के सबसे गहरे घाव, 24 सालों से मौसम को कैसे दे रहा है मुंहतोड़ जबाव

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भुवनेश्वर

चक्रवाती तूफान बिपरजॉय, बांग्लादेश से आया यह नाम आज भारत में सबसे ज्यादा चर्चा में है। जनता और जानकार इसके तार तबाही से जोड़कर देख रहे हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब देश ऐसे किसी तूफान का गवाह बन रहा है। गुजरात से पहले भी कई राज्य ऐसी आपदा का शिकार हुए। तूफानों से जूझने के मामले में ओडिशा का रिकॉर्ड बहुत पुराना है। साथ ही बिपरजॉय ने साल 1999 में तटीय राज्य में आए तूफान की बुरी यादें ताजा कर दी हैं।  एक ओर जहां ओडिशा के लिए वो तूफान मील का पत्थर बना। वहीं, इसके बाद हुईं ओडिशा की तैयारियां पूरे देश के लिए मिसाल बन गईं।

1999 में क्या हुआ था?
29 अक्टूबर 1999 में ओडिशा के जगतसिंहपुर समेत कई गांवों और इलाकों को सुपर साइक्लोन ने आगोश में ले लिया था। कहा जाता है कि भारत ने तूफान के चलते ऐसी तबाही शायद पहले नहीं देखी थी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि तब राज्य में करीब 10 हजार लोगों की मौत हो गई थी, 3.5 लाख से ज्यादा घर तबाह हो गए थे। कई गांवों का नामो निशान तक मिट गए। 2 लाख से ज्यादा जानवर मारे गए और 25 लाख लोग बेघर हो गए।इतना ही नहीं 14 जिलों पर पड़ी मौसम की मार के बाद कटी बिजली ने पूरे राज्य को अंधेरे में धकेल दिया। इलाकों का आपस में संपर्क टूट गया। साथ ही इसका असर दक्षिण रेलवे पर भी पड़ा। नौबत यहां तक आ गई कि राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग को इस्तीफा देना पड़ा।

फिर उठ खड़ा हुआ ओडिशा
1999 में मौसम विभाग के पास आज की तुलना में उतनी मजबूत व्यवस्था नहीं थी। हालांकि, 26 अक्टूबर को ही अधिकारी ने तूफान को लेकर सचेत कर दिया था, लेकिन तब तक राज्य के पास हरकत में आने के लिए दो ही दिनों का समय बाकी रह गया था। साल 2000 में सत्ता में बीजू जनता दल की सरकार आई और नए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अगुवाई में आपदाओं से निपटने की तैयारियां शुरू हुईं।

1999 के बाद ओडिशा सरकार ने आपदाओं से निपटने की मजबूत रणनीति तैयार की और कई बदलाव किए। इनमें ओडिशा स्टेट डिजाज्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी, ब्लॉक स्तरीय आपदा प्रबंधन समितियों का गठन, सावधान करने के लिए वॉर्निंग सिस्टम और तटीय इलाकों में रहने वालों को पक्का घर देना शामिल है। खास बात है कि 1891 से लेकर अब तक ओडिशा ने 100 से ज्यादा तूफानों का सामना किया है, जो किसी भी राज्य की तुलना में सबसे ज्यादा है।

अप्रैल 2018 में ओडिशा ने अर्ली वॉर्निंग डिसेमिनेशन सिस्टम यानी EWDS को तैयार किया। इसके जरिए तटीय क्षेत्र में रहने वालों को तूफानों और सुनामी से बचाने के लिए अलर्ट किया जाना था। साथ ही ओडिशा ने ओडिशा डिजाज्टर रैपिड एक्शन फोर्स यानी ODRAF की 20 इकाइयां तैयार कीं, जो आपदा से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार और प्रशिक्षित थीं।

ओडिशा ने कैसे कम किया असर
साल 2013 में आए फैलिन तूफान में ओडिशा में 44 मौतें हुईं। 2018 के तितली तूफान में आंकड़ा 77 पर पहुंच गया। 2019 के साइक्लोन फानी में 64 लोगों की जान गई। 2020 में आए अम्फान में आंकड़ा तेजी से घटकर 3 पर आ गया। वहीं, 2021 में यास तूफान के दौरान 10 से भी कम लोगों को जान गंवानी पड़ी। 2013 में संयुक्त राष्ट्र ने भी ओडिशा की तारीफ की थी।