हिन्दू धर्म में सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह का विशेष महत्व बताया गया है. इन चारों महीनों को मिलाकर चातुर्मास बनता है. देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो कार्तिक के देव प्रबोधिनी एकादशी तक चलती है. इस समय में श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं, इसलिए शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं. इसी अवधि में आषाढ़ के महीने में भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया था. इस बार चातुर्मास 29 जून से 23 नवंबर तक रहेगा.
चातुर्मास के चारों महीने हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र माने जाते हैं.
आषाढ़ के महीने में अंतिम समय में भगवान वामन और गुरु पूजा का विशेष महत्व होता है. सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना होती है और उनकी कृपा सरलता से मिलती है. भाद्रपद में भगवान कृष्ण का जन्म होता है और उनकी कृपा बरसती है. आश्विन के महीने में देवी और शक्ति की उपासना की जाती है. कार्तिक के महीने में पुनः भगवान विष्णु का जागरण होता है और सृष्टि में मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं.
चातुर्मास में खान-पान के नियम
चातुर्मास में एक ही वेला भोजन करना उत्तम माना जाता है. इन चार महीनों में जितना सात्विक रहा जाए, उतना ही उत्तम होगा. श्रावण में शाक, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक माह में दाल का त्याग करना चाहिए. इस अवधि में जल का अधिक से अधिक प्रयोग करें. जितना सम्भव हो मन को ईश्वर में लगाने का प्रयत्न करें.
चातुर्मास पूजा-उपासना के नियम
आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु की पूजा उपासना करें. इससे जीवन के हर संकट दूर होंगे. सावन में भगवान शिव की पूजा करें. इससे विवाह, सुख और आयु की प्राप्ति होगी. भाद्रपद में भगवान कृष्ण की उपासना करें. इससे संतान और विजय का वरदान मिलेगा. आश्विन में देवी और श्रीराम की उपासना करें. इससे विजय, शक्ति और आकर्षण का वरदान मिलेगा. कार्तिक में श्री हरि और तुलसी की उपासना होती है. इससे राज्य सुख और मुक्ति मोक्ष का वरदान मिलता है.
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