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अपराध हो जाये तो उसे स्वीकार कर उसका प्रायश्चित करना चाहिये : शंभूशरण लाटा

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रायपुर। जीवन में यदि गलती हो जाये, कोई अपराध हो जाये तो उसका उसे प्रायश्चित करना चाहिये और दोबारा ऐसा न हो इसका उसे ध्यान रखना चाहिये। जीवन में गलती का होना या पाप होना कोई बड़ी बात नहीं हैं, मनुष्य से गलतियां होती हैं लेकिन उन गलतियों व पापों को छुपाने के बजाये उसे स्वीकार कर लेना चाहिये। पाप जीतना छुपाएंगें उतना ही बढ़़ता है और पुण्य को जीतना बताएंगें उतना वह घटता है इसलिये पाप को बताना चाहिये और पुण्य को छुपाना चाहिये।
गौतम ऋषि-अहिल्या के प्रसंग पर संत शंभूशरण लाटा ने श्रद्धालुओं को यह बातें बताते हुए कहा कि। पाप और गलती को होना स्वभाविक है और जाने अनजाने में यह हो जाये तो उसका प्रायश्चित करना चाहिये इसका अर्थ बिल्कुल नहीं है कि एक गलती और पाप का प्रायश्चित कर फिर कोई नई गलती अथवा पाप करें। जो पाप हो गया जो गलतियां हो गई उसे सुधारने का केवल एक ही उपाय है वह भगवान के नाम का स्मरण करते रहना उनके नाम से ही उन गलतियों और किये पाप को धोया जा सकता है।
उन्होंने विश्वामित्र के यज्ञ में श्रीराम द्वारा असुरों के वध का दृष्टांत देते हुए बताया कि हकीकत में तारका मनुष्य के जीवन की दुरासा है और जब यह दुरासा जीवन में रहेगी तब तक मनुष्य कभी शांत नहीं हो सकता। हमेशा वह उसे पाने के लिए कुछ न कुछ जतन करते रहता है फिर चाहे वह गलत तरीके से किए गए कार्य ही क्यों न हो। जीवन में आशाएं बहुत होती है लेकिन सभी आशाएं पूरी नहीं हो सकती, कुछ आशाएं ऐसी होती है जिसे पाने के लिए मनुष्य किसी भी हद तक नीचे गिर सकता है। यही इसकी सबसे बड़ी दुरासा है, जब तक यह दुरासा उसके जीवन में है तो उसका कोई भी यज्ञ सफल नहीं हो सकता। शंभूशरण लाटा ने यज्ञ की महिमा का संक्षिप्त में वर्णन कर बताया कि यज्ञ में जितना तन, मन और धन लगाते है उससे कहीं अधिक मनुष्य को प्राप्त होता है। कथा भी ज्ञान यज्ञ है लेकिन मैं इसे नाम यज्ञ कहता हूं क्योंकि भगवान के नाम में ही इतनी महिमा है कि मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है। यज्ञ में उसकी गति केवल भगवान के शरणों में होनी चाहिए। मन में किसी भी प्रकार की कोई कामना अथवा राग, द्वेष नहीं होना चाहिए तभी वह यज्ञ सफल होता है। यज्ञ दिखावा नहीं है, उसका फल तत्काल प्राप्त होता है यह रामचरित्र मानस में स्पष्ट दिखाई देता है। भगवान के चरणों में अपना सब कुछ समर्पित कर देना चाहिए, यह मानकर कि यह सब कुछ भगवान का दिया हुआ जब वापस प्राप्त होता है तो वह प्रसाद बन जाता है और प्रसाद को ग्रहण करने से जीवन के सारे विकार दूर हो जाते है। विकार दूर होने से मनुष्य को विवादों से भी दूर रहना चाहिए।
शंभूशरण लाटा ने कहा कि इस सृष्टि में, सभी में प्राण है फिर चाहे वह झाड़, पेड़, पौधे अथवा शिलाएं ही क्यों न हो। प्राणों के प्राण भगवान श्रीराम को जो प्यारे लगते है सब उनके प्रिय हो जाते है। रामजी ब्रम्ह है वे प्राणों की रक्षा करते है। संसार में जीव फंस जाए तो भगवान उसे भी निकाल लेते है और उसके प्राणों की रक्षा करते है। मनुष्य को केवल इतना करना होता है कि वह भगवान से निच्छल प्रेम और उनकी भक्ति बिना कामना के करें और अपना सर्वस उनके चरणों में न्यौछावर कर दें।