जगदलपुर। छत्तीसगढ़ की वाचिक परम्पराओं और छत्तीसगढ़ी काव्य धारा विषय पर राजधानी में साहित्य परब 2022 में शामिल होकर लौटे बस्तर जिले के वरिष्ठ साहित्यकार एवं बस्तर के संस्कृति परंपरा के जानकार रुद्रनारायण पाणिग्रही ने बताया कि साहित्य परब 2022 में बस्तर संभाग में बोली जाने वाली गोंडी, हल्बी और भतरी बोली में प्रचलित कथाओं और लोकगीतों में छिपे ज्ञान के विषय को शामिल किया गया था। उन्होने बताया कि नारायणपुर के गोंडी बोली के जानकार शिवकुमार पाण्डेय और वे स्वयं हल्बी-भतरी में बस्तर की कहावतें मुहावरों को साहित्य परब 2022 में अपनी प्रस्तुति दी।
रुद्रनारायण पाणिग्रही ने बताया कि देश की अन्य भाषाओं और बोलियों की तरह हल्बी-भतरी और गोंडी बोली में भी कहावतें, लोकोक्तियां और मुहावरे भरपूर संख्या में हैं, इस संबध में प्रकाशित किताबे गोदाय, बस्तर के लोकोक्ति-मुहावरे एवं बांड़ा बाघ जयगोपाल उपलब्ध हैं। श्री पाणिग्रही ने बताया कि समय के साथ स्थानीय बोलियां लुप्त हो रही हैं, इससे उनकी परंपरा और संस्कृति भी लुप्त हो रही है। हल्बी गोंडी की समृद्ध वाचिक परंपरा है, जिसे पोषण की आवश्यकता है। शिवकुमार पाण्डेय ने गोंडी के विभिन्न गीतों पर प्रकाश डाला। इस सत्र की प्रस्तोता साहित्यकार शकुंतला तरार ने बस्तर के गीतों के बारे में बताया।
उन्होने बताया कि इस साहित्य परब 2022 में छत्तीसगढ़ी साहित्य व हिन्दी साहित्य से संबंधित पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। भगवती साहित्य संस्थान द्वारा प्रकाशित भारतीय संस्कृति में विज्ञान पुस्तक का विमोचन राम माधव ने किया। समापन सत्र के मुख्य अतिथि राजीव रंजन प्रसाद ने साहित्यिक आयोजनों को अधिक विस्तार देने पर जोर दिया। उन्होंने साहित्य की सफलता पर बधाई देते हुए कहा कि क्षेत्रीय, स्थानीय साहित्यकारों पर सार्थक चर्चा हुई है।